Sunday, 31 December 2017

नववर्ष का शुभारम्भ


    2k18: नववर्ष,नया हौसला,नया जोश

नई ऊर्जा का प्रवाह हर ओर होना चाहिए
नई किरण के साथ ,नववर्ष का भोर होना चाहिए
खुशियाँ, प्रेम और सफ़लता मिल जाये सभी को
प्रेम के बंधन में ,मज़बूत डोर होना चाहिए।।


जिंदगी में हौसलों की,उड़ान होना चाहिए
सभी के सपनो में,नई जान होना चाहिए
चमकना चाहिए,सभी के क़िस्मत का सितारा
मजिंलो की राह में, नई पहचान होना चाहिए

   नफ़रतें मिट जाये, ये प्रतीत होना चाहिए
   प्यार सबको मिले ये रीत होनी चाहिए
     सभी के दिल से, बुराई का अंत हो
    और अच्छाई की जीत होनी चाहिए

दुःख और दर्द का किस्सा,समाप्त होना चाहिए
सभी को सुख की अनुभूति,प्राप्त होना चाहिए।
नववर्ष में आप सभी को मेरी शुभकामनाएं
शुभ का संदेश ,हर जगह व्याप्त होना चाहिए।।
                
                                                  (मेरा ज़िक्र)
                                                शुभांक शुक्ला

                                     














   






Sunday, 24 December 2017

इश्क का इज़हार (भाग -1)

ब पहली बार तुम्हे देखा था ना..तो सच्ची बता रहा हूँ तुमसे बिल्कुल प्यार नही हुआ था ..लेकिन अब तुम्हारी अदाओ से प्यार हो गया है, तुम्हारी सादगी का दीवाना हो गया हूँ। मेरा दिल भी मुस्कुराने लगता है तुम्हारे मुस्कुराते हुए चेहरे को देखकर। तुम्हारा उदास चेहरा मेरे दिल में बेचैनी का तूफान ला देता है। तुम जब मेरे पास नही होती तो मुझे लगता है जैसे मैं भी नही हूँ, लेकिन जब तुम मेरे पास होती है तो लगता है तुम्हारे होने से ही ,मै हूँ। बेजान,बेरुख़ी सी पड़ी मेरे सपनो की दुनिया तुम्हारे आने से रंगीन हो गई है। तुम जब किसी और के साथ बाते करती है तो दिल तड़प उठता है,क्योंकि इस नासमझ आशिक को लगता है कि तुम पर सिर्फ़ मेरा हक़ है। शायद तुम्हे भी ऐसा लगता होगा जब मै किसी और की बातें तुमसे करता हूँ। मेरे हसीन ख्याबो में हरदम तुम्हारा ही हसीन पहरा हो। सोने से पहले और जागने के बाद तुम्हारा मुस्कुराता सा चेहरा हो। मै ये बिल्कुल नही कहूँगा की तुम मेरी जिंदगी हो क्योंकि जिंदगी के लिए धड़कनों की जरूरत होती है और तुम्हे अपनी जिंदगी मानकर तुम्हारी धड़कनो को मै लेना नही चाहता हूँ लेकिन  मै तुम्हारी जिंदगी बनना चाहता हूँ, तुम्हारे नाम अपनी सारी धड़कने करना चाहता हूँ। मेरी धड़कनों में सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारा हक़ हो।

                                                                                                                                                                                       "तुम्हारा शुभांक"

Saturday, 16 December 2017

आखिर क्यों


विश्वास है आज का दिन आपको नही याद होगा
क्योंकि आपका खुद का हँसी परिवार होगा
कैसे हम तोड़,अपने उसूल गए
कैसे हम 16 दिसम्बर भूल गए
आज के दिन ही तो,उसने दम तोड़ा था।
बेवजह हैवानियत का शिकार होकर,घर छोड़ा था
आज से पाँच साल पहले की बात है
आँसू से निकल रहे,मेरे जज़्बात है
जब देश के पाँच शैतानो ने
माँ की कोख के बेइमानो ने
निर्भया के साथ किया था बलात्कार
मरणोपरांत हुआ उसका,अंतिम संस्कार
आज के दिन राजधानी हुई थी शर्मसार
झुक गई थी दिल्ली की सरकार
दामिनी के स्वर्ग जैसे घर का,उजड़ गया था सारा संसार
अपराधियों को सजा की,लगी थी गुहार
फिर भी आज क्यों नही है
लड़कियों को स्वतंत्रता का अधिकार
क्यों उनको घर में छुपना पड़ता है
क्यों उनको हैवानियत के सामने झुकना पड़ता है
क्यों बलात्कार के गलियारों में,घूम रहे दरिदों से
शिक्षा के आधे पथ पर,उनको रुकना पड़ता है
आखिर कब पहुंचेगी , निर्भया की चीख पुकार
आखिर कब टूटेगा,दरिंदों का अंहकार
"अच्छे दिन" के नारे ,देश में खूब लगे थे
तो फिर कब जागेगी अपनी,भारत सरकार?
                                               
                                                मेरा ज़िक्र
                                                ( शुभांक शुक्ला)

Tuesday, 12 December 2017

महिला सुरक्षा पर सरकार और समाज का असुरक्षित व्यवहार

हमारे समाज में जंहा बेटियों को देवी दर्जा देकर पूजा जाता है और स्वर्णिम भारत बनाये जाने का सपना देखा जाता है। वंही दूसरी ओर समाज में आयदिन छेड़खानी, बदसलूकी और बलात्कार की वारदात सामने आती है,जोकि बेहद शर्मनाक और गंभीर विषय है। सरकार द्वारा इन घटनाओं में ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है बल्कि महिलाओँ को  सांत्वना दी जाती है अथवा राजनीती का महत्वपूर्ण विषय बनाकर महिला सुरक्षा के लिए पर्वत से भी ऊँचे विशाल वादे किए जाते है। जब प्रत्येक सरकार महिला सुरक्षा के वादों पर पार्टी की नींव बनाती है तो फिर क्यों कलाकार जायरा वसीम जैसी मासूम बेटियों को छेड़खानी का सामना करना पड़ता है। धाकड़ पहलवान का क़िरदार निभाने वाली बेटी जायरा के साथ हालही में हवाईयात्रा के दौरान होने वाली छेड़खानी हमारे देश के लिए बेहद शर्मनाक है और समाज व सरकार की गाल पर करारा तमाचा है,उनकी असफ़लता के लिए। होने वाली घटना से सवाल उठता है कि क्या सरकार द्वारा चलाये जा रहे महिला सुरक्षा सहायता नम्बर ,हवाईयात्रा में किसी महिला की सहायता करने में सक्षम है? कई राज्यो में राज्य सरकार द्वारा महिलाओं की सुरक्षा के लिए हेल्पलाइन नम्बर चलाये जा रहे है परंतु हवाईयात्रा के दौरान होने वाले दुर्व्यवहार,अभद्रता और छेड़खानी की ज़िम्मेदारी कौन सी सरकार लेगी? हालांकि एयरलाइन्स ने जायरा वसीम के साथ होने वाली छेड़खानी की जिम्मेदारी ली है और विश्वाश जताया है कि मामला सही पाया गया तो संबंधित व्यक्ति को सदा के लिए हवाईयात्रा से प्रतिबंधित किया जा सकता है। परन्तु निष्पक्ष जाँच की कार्यविधि की तारीख़ क्या होगी? यह सवाल सभी बच्चियों और महिलाओं के मन में खटक रहा है।

जब हमारे देश में विकास के लिए नोटबन्दी और जीएसटी जैसे बड़े और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक फैसले त्वरित किये जा सकते है तो फिर केंद्र सरकार द्वारा महिलाओं से छेड़खानी पर ठोस कदम त्वरित क्यों नही उठाये जा सकते है। ‌मध्यप्रदेश में महिलाओं के साथ बलात्कार पर आरोपी को फांसी की सजा का कानून विधेयक पारित होना राज्य सरकार द्वारा महिला सुरक्षा पर कड़ा कदम है। परन्तु विपक्ष पार्टीयों द्वारा कानून के दुरूपयोग होने की आंशका को राजनीतिक मुद्दा बनाकर बहस करना दर्शाता है कि विपक्ष महिला सुरक्षा पर गंभीर नही है। जबकि समाज में होने वाली छेड़खानी,बदसलूकी और बलात्कार जैसे गंभीर घटना पर राजनीतिक फायदे के नजरिये से नही बल्कि सभी को मानवता के नजरिये से देखना चाहिए।

                                                ( शुभांक शुक्ला )



Saturday, 2 December 2017

कलयुग बोल रहा है.......

आज कलयुग हर जगह व्याप्त है और ख़ुद के पाप का बखान कर रहा है। मानव की सच्चाई और अच्छाई पर कलयुग के बुराई की जीत हो रही है। कलयुग का पाप स्वयं को प्रबल मानकर "सत्य" को कुछ इस प्रकार ललकार रहा है!



मैं ही हूँ जो पृथ्वी में,पाप को बढ़ाने आया हूँ।
मित्रता को छोड़कर,शत्रुता निभानें आया हूँ
हैं नही इस भूमि में,जो की मुझको ठग सके
सवेरे को मैं बाँधकर, अँधेरा दिखाने आया हूँ
पाप को बढ़ाने आया हूँ, पाप को बढ़ाने आया हूँ....

शस्त्र भी वो है नही,जिससे मेरा संहार हो
पाप,छल और कपट पे,ना मेरा प्रहार हो
प्रहलाद को जो जन्म दे,वो हिरण्यकश्यप मैं नहीं
पूजे जो पत्थरों को,ऐसी भक्ति ना मेरा आधार हो.

मैं खड़ा रणक्षेत्र में,लड़ने की तैयारी में हूँ मैं
कलयुगी इस राम के ,सत्य से भी भारी हूँ मैं
सत्य और प्रेम के वश में ,मैं आता नहीं
जो मुझे है रोकता,उसका भी प्रतिहारी हूँ मैं
मैं खड़ा रणक्षेत्र में,लड़ने की तैयारी में हूँ मैं

                                                                                                 शुभांक शुक्ला

               (मेरा ज़िक्र)
     


Wednesday, 15 November 2017

फ़ोटोग्राफी वाला प्यार : शुभांक शुक्ला

जंहा हम पहली बार मिले थे,क्या तुम आज शाम उस जगह पर आ सकते हो? मेरे मोबाइल ऑन करतें ही प्रिया का मैसेज पड़ा था। मेरे मन में ख़ुशी के साथ-साथ हैरानी ने भी दस्तक दे दी थी. आख़िर 8 महीनों बाद प्रिया ने मुझे क्यों मैसेज किया और मिलने के लिए बुला रही है।  प्रिया ठीक तो है ना? क्या कोई बड़ी प्रॉब्लम हो गई है? मन में लिए इन्ही बोझिल सवालों के साथ माथे में शिकन लिए मैंने उसे मैसेज किया और उससे मिलने के लिए हाँ कर दिया। जैसे ही मैं घर से निकल रहा था कि अचानक कोनें में पड़ी मेरी "यादों की डायरी"  दिखाई दी,जिसे मैं सपनों के शहर बनारस में, मन की बातों को,जीवन की यादों को लिखा करता था. मैनें जाने से पहले उस डायरी को उठाकर कवर का पहला पेज ही पलटाया था कि उसमें एक बोलती हुई हँसती सी तस्वीर लगी थी,जिसमें एक लड़की भूखे ग़रीब बच्चों को खाना खिलाते हुए उन्हें भारत का तिरंगा दे रही थी तभी मैंने तस्वीर खींच ली थी,उस तस्वीर में कोई और लड़की नही बल्कि प्रिया थी। पहली नज़र में ही मुझे एकतरफ़ा प्यार हो गया था,वो उसी वक़्त मेरी जिंदगी बन गई थी। ये वही तस्वीर थी जब 15 अगस्त के दिन नेशनल फोटोग्राफी प्रतियोगिता में अपनी बेस्ट फ़ोटो देना चाहता था। और मुझे अच्छी तस्वीर ही नही बल्कि जिंदगी जीने का नया मकसद मिल गया था। मैंने कैमरें में उस तस्वीर को कैद के साथ दिल के कैमरे में भी उसकी तस्वीर क़ैद कर ली थी। पहली नज़र में उसकी खूबसूरती ने मुझ पर जादू कर दिया था। मन को प्रिया की शरारती आँखों ने चुरा लिया था। उसकी सादगी,मुझे दीवाना कर गई थी।
और दूर से आ रही हल्की-हल्की मध्यम आवाज़ का नशा मुझ पर चढ़ गया था। मै उससे बात करना चाहता था,पर शायद मुझमे हिम्मत नही थी,उससे जाकर बात करने के लिए इसीलिए उसकी इन्ही यादों और अदाओं को लिए मैं घर लौट आया। दूसरे दिन उस तस्वीर को प्रतियोगिता के लिए भेज दिया। मुझे यकीन था कि मेरी खींची हुई तस्वीर बेस्ट फ़ोटो ऑफ़ द ईयर का अवार्ड जरूर पायेगी क्योंकि कहते है "दिल से किया गया काम" और "दिल के लिये किया गया काम" हमेशा ही अच्छा होता है। और ठीक वही हुआ जिसका मुझे यकीन था, मुझे मेल आया और पता चला की इस बार का अवॉर्ड मुझे मिला है। मेरे मन में ख़ुशी तो हुई लेकिन साथ-साथ उससे मिलकर उसे शुक्रिया कहने का भी मन कर रहा था। और मैं कई टीवी चैनलों में इंटरव्यू देकर,सीधे उसी जगह गया जंहा मैंने फोटो खींची थी ,जब मै वंहा गया तो मुझे पता चला कि प्रिया एक NGO में काम करती है और उसका नाम प्रिया है,मेरा प्यार कई गुना तब बढ़ गया है जब लोगों ने बताया कि प्रिया हमेशा सब ग़रीबो की मदद करती है। सभी बच्चो की देखभाल करती है और उन्हे कभी-कभी पढ़ाती भी है। मैंने लोगों से उसका एड्रेस लेकर उससे मिलने चला गया। रास्ते में जाते वक़्त मेरे मन में कई सवालों का घेरा बन गया जो मुझे कमज़ोर कर रहा था,क्योंकि मुझे पता नही था कि मैं प्रिया से मिलकर उसे क्या कहूंगा,उससे क्या बातें करूँगा? उसकी तस्वीर को बिन पूँछे मैे प्रतियोगिता में भेज दिया था इस बात से कंही वो नाराज़ तो नही होगी? सवाल कई थे ,लेकिन दिल जवाब ढूंढ नही पा रहा था.कुछ सोच नही पा रहा था। चंद घंटों में ही मैं उसकी ऑफिस पहुँच गया था। लेकिन ऑफ़िस के बाहर कई घंटों खड़ा रहा। दिल कहता की जाकर उससे मिलूँ ...लेकिन दिमाग,जिसका प्यार से दूर-दूर का संबंध नही है वो कहता कि वापस लौट जाओ,मत मिलो....ऐसा कई बार होता है जब हम दिल और दिमाग़ की गलियों में भटकते रहते है,लेकिन रास्ता नही मिलता। लेकिन आज मैं दिल की आवाज़ सुनना चाहता था,प्रिया का प्यार पाना चाहता था। इसीलिये बिना देर किए मैं प्रिया की ऑफिस के अंदर चला गया,और देखते ही मैं चौक गया..अंदर कई लोग प्रिया को घेरे खड़े हुए थे और प्रिया केक काट रही थी..सभी लोग उसे जन्मदिन की बधाइयाँ दे रहे थे। मैं भी उसकी जिंदगी में सभी लोगो की तरह शामिल होना चाहता था,लेकिन उसकी जिंदगी में कुछ स्पेशल बनकर। इसी चाहत के साथ मैं उसके पास गया और हाथ बढ़ाकर "हैप्पी बर्थडे प्रिया" इस तरह बोला जैसे मै प्यार का इज़हार कर रहा हूँ। उसने थैंक्स बोला और मुझसे कहा 'माफ़ कीजिये ,मैं आपको पहचान नही पाई..आप कौन? मैं इस सवाल का कुछ जवाब दे पाता,इससे पहले ही पीछे से एक जोर से आवाज़ आई कि "प्रिया जल्दी आओ,हॉल में...प्रिया को मैं कुछ कह पाता,इससे पहले ही प्रिया जाने लगी और मैं उसके पींछे जाने लगा..अंदर जाने पर मैंने देखा कि ऑफिस के सभी लोग,टीवी देख रहे है और उसमें प्रिया की वही फोटो दिखाई जा रही है जो मैंने खींची थी और
मेरा इंटरव्यू चल रहा था...मैं अपनी बेताब भरी नजरों से प्रिया को देखने लगा और प्रिया पूरी तरह से "सरप्राइस" थी कि आखिर हो क्या रहा और कुछ पल टीवी की चमचमाहट में नजरे टिकाकर मेरी तरफ देखने लगी.और मेरी तरफ छोटे-छोटे कदमो को बढ़ाते हुए आने लगी..इन्ही कुछ सेकंडों में मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी जिंदगी मेरे पास आ रही है..जैसे मेरा प्यार मुझे हाथ बढ़ाकर जिंदगी जीने के लिए कह रहा हो..पास आकर उसने ख़ुशी और प्यार के साथ मुझसे कहा कि "आज मेरा जन्मदिन है और कई तोहफे मिले है लेकिन आपने मुझे जो तोहफ़ा दिया है,इतना खूबसूरत तोहफा,मैं कभी नही भूलूँगी।" हाथ बढ़ाते हुए उसने थैंक यू" बोला.....मै उसकी आँखों में देखते हुए कहा कि मै आपसे दोस्ती करना चाहता हूँ, क्या आप मेरी दोस्त बनेगी.उसने एकदम से 'हाँ' कह दिया..और हम दोस्ती के नए रिश्तों का ताना-बाना बुनने लगे थे.हम रोज मिलने लगे थे,घूमने लगे थे..फिल्में  साथ-साथ देखने लगे थे,व्हाट्सएप पर बाते करने लगे और फेसबुक में साथ में आइसक्रीम खाते हुए,फोटो अपलोड करने लगे थे और बचपन की कई किस्सो को आपस में सुनाने लगे थे,जवानी की कहानियां बताने लगे थे। एक दिन प्रिया ने बताया कि तुम मुझे बहुत अच्छे लगने लगे हो,तूम्हारी बातो में खोने लगी हो,तुम्हारे साथ और घूमना चाहती हूँ,जिंदगी के सारे क़दम मैं तुम्हारे साथ चलना चाहती हूँ, तुम्हारे साथ सात फेरे लेकर, सात जन्मों के बंधन में ख़ुद को बाँधना चाहती हूँ। लेकिन......इतना कहकर प्रिया अचानक से शान्त हो गई। उसका चेहरा शाम को ढ़लते सूरज की तरह बुझ गया। मेरे दिल की धड़कन जोर से धड़कने लगी और कई सवाल मन में चलने लगे आखिर "लेकिन" के आगे प्रिया क्या बोलेगी? लेकिन शब्द जीवन में बहुत मायने रखता है। दो लोगों को मिलवा भी देता है और जुदा भी कर देता है। कुछ देर रुकने के बाद प्रिया ने कहा कि 'मेरे पापा ने मेरा रिश्ता कई साल पहले अपने दोस्त के बेटे के साथ कर दिया था और इस समय मेरे घर में उससे शादी की बाते चलने लगी है।" और फिर से शांत हो गई। "हाँ" सुनने की चाहत में मैंने प्रिया से कहा कि तो अब तुम्हारा क्या फ़ैसला है? प्रिया की आँखे नम थी,उसके होंठ कुछ कहने से पहले

‌थरथरा रहे थे। लेकिन उसने ना चाहते हुए भी अपने मन की बात रखी और बोली की जितना प्यार मैं तुमसे करने लगी हूँ, उससे भी ज्यादा प्यार मैं अपने मम्मी और पापा से करती हूँ। और पापा की बात को आखिर मैं कैसे मना कर दूँ? आखिर "लेकिन" जैसे हल्के शब्द ने हम दोनों के प्यार को जुदा कर दिया था। मेरे कुछ समझ में नही आ रहा था। मै उसकी मन की बात और उसके फैसले को समझ चुका था लेकिन मैं उसे अपने प्यार को एक और मौका देने के लिए मनाना नही चाहता हूँ। क्योंकि उसके मन में अपने परिवार के लिए ,देश के लिए जो प्यार था। उसी प्यार से तो मुझे प्यार हुआ था। तो आखिर मैं अपने प्यार को पाने के लिए उस प्यार को बदलने के लिए कैसे कह सकता हूँ जिस प्यार से मैं बेइंतहा प्यार करने लगा था। और उसके इस फैसले का ना चाहते हुए भी,मैंने अपना लिया था। और उसने जाने से पहले मुझे कभी ना मिलने का वादा किया था। तो आखिर आज इतने महीनों बाद उसने मैसेज करके मुझे क्यों बुलाया है? मै उस डायरी को साथ में लेकर और उसकी बातों में डूब करके उससे मिलने चला गया। और जहाँ हम पहली बार ना मिलकर भी मिले थे,उसी जगह पहुँच गया और देखा कि प्रिया कई गरीब बच्चो के साथ खेल रही थी और खेलते-खेलते उसकी नज़र मेरी तरफ़ पड़ी और मेरे पास आई। आते ही प्रिया,मुझे गले से लगा ली और रोने लगी। मैंने उसके सिर में हाथ फेरते हुए पूंछा की आखिर क्या हुआ? उसने अपने आप को संभालते हुए बोली कि अभी तक मेरे जिंदगी में तुम ही ऐसे दोस्त हो जो मुझे अच्छी तरह से समझते हो और मैं तुम्हे कभी नही भुला पाऊँगी लेकिन मेरे शादी कुछ ही दिनों में होने वाली है और जिससे मेरी शादी होने वाली है वो लड़का मुझसे कई दिनों से बात कर रहा था और अचानक उसने एक दिन फेसबुक में अपलोड मेरी और तुम्हारी तस्वीर का ज़िक्र करने लगा और मेरे बार-बार समझाने के बाद भी मुझसे झगड़ा कर लिया है.इसलिए प्लीज़ अभिषेक अपने फेसबुक से मेरी फोटो हटा दो और मेरी जिंदगी से दूर चले जाओ। अगर तुम्हारा नाम मेरी जिंदगी में बार-बार आता रहेगा तो मेरी जिंदगी मुश्किल हो जायेगी।
 मै उससे और कुछ कह पाता कि इससे पहले ही मै समझ चुका था कि वो पगली लड़की आज भी मुझसे प्यार करती है। लेकिन अपने मम्मी और पापा के लिए ख़ुद के प्यार को छोड़ रही है। दुःखी होते हुए भी मुझे ख़ुशी थी कि मुझे प्रिया जैसी लड़की प्यार करती है।मैं ख़ुद को हारकर भी उसे जीत चुका था। "जो मिल जाये केवल उसे प्यार नही कहते है बल्कि प्यार होकर भी ना मिले उसे भी प्यार कहते है। क्योंकि ईश्वर मिलते नही है लेकिन ईश्वर के लिए सभी के मन में प्यार सबसे ज्यादा पवित्र होता है।"


‌"मेरी हर बात में लिखा मेरा ज़िक्र है,तू दूर हुआ तो क्या हुआ,मेरी हर बात में तेरी फ़िक्र है!
                                                                                                                              "शुभांक शुक्ला"


Friday, 10 November 2017

जन्मदिन विशेष : श्री आशुतोष राणा

मध्यप्रदेश की पावन वसुंधरा में अनेक  वीर,योद्धा,कवि,साहित्यकार,नेता और अभिनेता ने जन्म लिया है। इन्ही सर्वश्रेष्ठ महापुरुषों में है अभिनेता आशुतोष राणा रामनारायण नीखरा उर्फ़ "आशुतोष राणा" का जन्म 10 नवंबर 1964 नरसिंह के गाडरवारा मध्यप्रदेश में हुआ था। आशुतोष जी का लालन-पोषण बचपन से ही सांस्कारिक परिवार में हुआ है। जिसके कारण आशुतोष जी ने भारत की संस्कृति को अपनाकर  व अध्यात्म को जीवन का आदर्श बनाया। पवित्र रामायण के श्रवण कुमार की तरह माता-पिता की सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बनाकर सन्मार्ग में चलते रहे और सफ़लता की अनन्त बुलंदियों को प्राप्त किया। इन्होंने गाडरवारा से ही शुरुआती बचपन की शिक्षा ग्रहण की। व बचपन की शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत सागर जिले के डॉ॰ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय से कॉलेज अध्ययन प्रारम्भ किया तथा इसी दौरान रामलीला नाट्य समारोह में रावण का क़िरदार निभाया,जिसे देश के हर कोने में सराहा गया। इन्होंने करियर की शुरुआत छोटे पर्दे से की थी और काफ़ी हिट शोज़ किये। आशुतोष जी का विवाह सन 2001 में अभिनेत्री "रेणुका शाहने" जी से हुआ है। इनके दो बेटे है-शौर्यमान और सत्येंद्र।
शास्त्रों में कहा गया है की मोह,माया रूपी जगत में जन्म लेने वाला व्यक्ति अगर धरती में ही अपना भगवान "गुरु" को बनाता है और गुरु ज्ञान की दिशा में अग्रसर रहता है तो पृथ्वी में उसका जन्म सार्थक होता है और उसे जीवनपथ में हमेशा सफलताएँ प्राप्त होती। शास्त्र के इसी बात का अनुसरण करते हुए आशुतोष जी ने परमपूज्यनीय पंडित देव प्रभाकर शास्त्री जी को अपना भगवान रूपी गुरु बनाया। आशुतोष जी ,गुरूजी को प्रेम से श्री दद्दा जी कहकर पुकारतें है।  दद्दा जी के आशीर्वाद व स्वयं की प्रतिभा की वज़ह से आशुतोष जी आज फिल्मों की रंगीन दुनिया के चमकते हुए सितारें है। और आशुतोष जी से जब भी सवाल किया जाता है कि " कँहा फ़िल्मी दुनिया की चमक-धमक व रंगीन जिंदगी और कँहा ईश्वर की भजन भक्ति..आखिर कैसे दोनों मंचों में ख़ुद को ढाल पाते है आप? तब आशुतोष जी इस बारे में स्वयं के विचार को प्रस्तुत करतें है और कहते है कि " मैं अपने गुरु के कहने पर ही फ़िल्म जगत में आया था और अबतक 32 से अधिक फिल्में तथा अनेक टीवी धारावाहिकों में काम कर चुका हूं। आशुतोष राणा जी कहते है कि वे मध्यप्रदेश के रहने वाले सामान्य से छात्र थे और एलएलबी की पढ़ाई के बाद वक़ालत में अपना करियर बनाने की सोच रहे थे,लेकिन उनके गुरु दद्दा जी का आदेश हुआ की मैं फिल्मों में जाऊँ और इसके लिए मैं एनएसडी से अभिनय प्रशिक्षण लूँ।' आशुतोष जी कहते है कि प्रशिक्षण के बाद उन्हें एनएसडी में ही नौकरी का ऑफ़र हुआ और वह भी मोटी सैलरी पर,लेकिन उन्होंने फ़िल्म जगत में आने का रास्ता चुना। वे कहते है कि वे चाहे शूटिंग में कितने ही व्यस्त क्यों ना हो लेकिन हर सुबह और शाम श्री दद्दा जी से आशीर्वाद अवश्य लेतें है।आशुतोष जी के जीवन का गुरुर उनके गुरु है। आशुतोष जी स्वयं के जीवन रोचक किस्सा हमेशा सुनाते है और कहते है कि " मुझे फिल्म निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट से मिलने को कहा गया। मैं भट्ट से मिलने गया और जाकर भारतीय परंपरा के अनुसार उनके पाँव छू लिए। पांव छूते ही वे भड़क उठे क्योंकि उन्हें पैर छूने वालों से बहुत नफ़रत थी। उन्होंने मुझे अपने सेट से बहार निकलवा दिया तथा सहायक निर्देशकों पर भी काफ़ी गुस्सा हुए की आख़िर उन्होंने मुझे सेट के अंदर जाने कैसे दिया? आशुतोष जी के उच्च व्यक्तिव का अनुमान आप यंही से लगा सकतें है कि इतने अपमान के बाद भी उन्होंने हिम्मत नही हारी और जब भी महेश भट्ट जी से मिलते या कंही देखते तो तुरंत संस्कृति का मान रखते हुए उनके पैर छू लेते और वह
गरम होते। आशुतोष जी बताते है कि '" आखिर भट्ट जी  ने एक दिन मुझसे पूँछ ही लिया की तुम मेरे पैर क्यों छूते हो जबकि मुझे इससे नफ़रत है। मैंने जवाब दिया कि "बड़ो के पैर छूना मेरे संस्कार में है,जिसे मैं नही छोड़ सकता।" इस वाक्य को सुनकर भट्ट जी ने मुझे गले से लगा लिया और टीवी सीरियल स्वाभिमान में मुझे पहला रोल ऑफ़र किया। बाद में मैंने महेश भट्ट जी के साथ कई फ़िल्मो में काम किया। आशुतोष राणा जी ने हिंदी फिल्मों के अलावा तमिल,तेलुगु,मराठी और कन्नड़ फ़िल्मो में भी अपनी प्रतिभा की गहरी छाप छोड़ी है। इनकी प्रमुख फिल्में बंगारम,कलयुग,शबनम मौसी,चोट,जहर,अब के बरस,जानवर,दुश्मन,गुलाम,ज़ख्म इत्यादि है। इन्हें सन 1999 में फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार दुश्मन फ़िल्म में और सन 2000 में फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार फिल्म संघर्ष में श्रेष्ठ अभिनय के लिए प्राप्त हुआ। आजतक न्यूज़ चैनल के प्रोग्राम साहित्य आजतक में सोशल मीडिया में चले रहे क्रांतिकारी आंदोलन के विषय में आशुतोष जी ने करारा व्यंग प्रस्तुत किया और बताया कि कैसे समाज में अदृश्य क्रांतिकारी आंदोलन चलाये जा रहे है,जंहा हर दिन किसी ना किसी मुद्दे पर जुलूस और रैलियाँ निकाली जाती है और विभिन्न समूह के लोग इस आंदोलन में भाग लेते है। तथा बताया कि " देश चलता नहीं मचलता है ,मुद्दा हल नहीं होता सिर्फ़ उछलता है। जंग मैदान पे नहीं मीडिया पे जारी है ,आज तेरी तो..कल मेरी बारी है।" आशुतोष जी विगत चार वर्षों से सोशल मीडिया पर गहरी चेतना और चिंतन के साथ-साथ स्वयं के दिव्य विचारों और सार्थक आलेखों को स्वयं के प्रसंशको के साथ साझा करते है,तथा स्वयं की प्रतिक्रिया द्वारा लोगों के सवालों और समस्याओं का समाधान करतें है। आशुतोष जी साहित्य प्रेमी है व स्वयं की मातृभाषा की गरिमा को विश्वभर में बनाये हुए है।और स्वयं की मातृभाषा के लिए कहते है कि अगर आप भाषा का स्वरुप बिगाड़ेंगे तो भाषा आपका स्वरुप बिगाड़ देगी परन्तु अगर आप भाषा की गरिमा देंगे तो भाषा आपकी गरिमा देगी। आशुतोष जी का साहित्य लेखन,देश के हर उम्र व हर वर्ग को प्रभावित करती है।
आज का दिन हम सभी देशवासियों के लिए उत्साह और ख़ुशी का दिन है क्योंकि आज के दिन ही आशुतोष राणा के रूप में बेहतरीन अभिनेता,प्रवक्ता,विचारक और शालीन,उदार तथा विद्वान दिव्य पुरुष का जन्म हुआ था। आशुतोष जी आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं। ईश्वर से प्रार्थना है,      आप उस सूरज की तरह रहें जिसके पास पश्चिम हो ही नहीं. आपकी आभा हमेशा अमिट रहे. आप स्वस्थ और दीर्घायु रहें!!                                                        शुभम् भवतु🙏🙏🙏

Sunday, 5 November 2017

एक बार फिर मासूम बेटी के साथ-साथ सरकार और समाज का गैंगरेप


हमारे भारत देश में जंहा बेटीयों को देवी का दर्जा देकर पूजा जाता है और भारत को स्वर्णिम भारत बनाये जाने का सपना देखा जाता है वही दूसरी ओर 16 दिसम्बर 2012 में मासूम दामिनी के साथ गैंगरेप के साथ दरिंदगी की सारी हदे पार कर दी जाती है और भारत के इतिहास को काले अक्षरों में तब्दील कर जाता है। यही वारदात मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 31 अक्टूबर को बलात्कार के काले उदाहरण का काला दाग हमेशा के लिये अंकित हो जाता है। 19 वर्षीय छात्रा पीएससी की कोंचिग करने के बाद शाम 7 बजे घर लौट रही थी लेकिन घर पहुँचने से पहले ही  हैवानियत से लिप्त चार नशेड़ियों ने अपनी हवस का शिकार बना लिया और लड़की के साथ मारपीट कर उसे बेहाल कर दिया और 3 घंटे तक लगातार दुष्कर्म करते रहे। लड़की का मोबाइल, कान की बूंदे और घड़ी लूट ली। लड़की को मरा समझकर बेहोशी की हालत में छोड़कर आरोपी वंहा से भाग निकले। जब लड़की को होश आया तो आरपीएफ थाने पहुंची और अपने पिता को फोन कर पूरा वाकया बताया। इस सनसनीखेज में वारदात को लेकर न जीआरपी गंभीर नजर आई और न ही जिला पुलिस के अफसर। आपको पढ़कर हैरानी होगी की जिस जगह वारदात को अंजाम दिया गया वंहा से हबीबगंज सीआरपीएफ,जीआरपी थाना महज 100 मीटर और एमपी नगर की पुलिस चौकी 500 मीटर के दायरे में है। जब लड़की रिपोर्ट दर्ज करवाने mp नगर थाने पहुंची तो उसे हबीबगंज थाने का मामला बताकर भगा दिया गया। हबीबगंज पुलिस ने जीआरपी थाने में जाने की सलाह दी और लड़की जब अपने परिवार के साथ दूसरे पुलिस चौकी पहुंची और अपने साथ हुई वारदात को बता रही थी तब अंहकार के सिंहासन में बैठे कुछ पुलिस कर्मियों ने लड़की की बातों को फ़िल्मी बताकर उसे भगा दिया। कानून की इस गैरकानूनी काम को क्या समाज भुला पायेगा ये सवाल हमेशा के लिए खड़ा हो गया है? हालांकि जिन पुलिस अधिकारी द्वारा रिपोर्ट दर्ज नही की गई उन्हे सस्पेंड कर दिया गया है। लड़की के माता-पिता दोनों पुलिस सेवा में है फिर भी रिपोर्ट तब लिखी गई जब पिता ने वारदात के 24 घंटे बाद तीन आरोपी को पकड़कर थाने पहुंचा। अहम सवाल यह उठता है कि समाज में जब किसी व्यक्ति के साथ वारदात होगी तो क्या पहले उस पीड़ित व्यक्ति को आरोपी को पकड़कर लाना होगा तभी रिपोर्ट दर्ज करवाई जा सकेगी? पिता द्वारा आरोपियों को पकड़वाए जाने पर पता चलता है कि आरोपी रेलवे ट्रेक पर पन्नी,बोतल बीनने वाले है। इन आरोपी के नाम गोलू बिहारी,अमर, राजेश और रमेश है। फिल्मों में कहते है कि कानून अँधा होता है पर आजतक किसी ने नही बताया था कि कानून दिमाग से अँधा होता है। जी हाँ भोपाल पुलिस ने आरोपी राजेश की जगह इंदौर के बेगुनाह राजेश को पकड़ लेती है और उसे सवालो के घेरो में खड़ा कर देती है लेकिन इंदौर के निर्दोष राजेश को तब छोड़ा जाता है जब भोपाल में वारदात के समय निर्दोष राजेश इंदौर में रहता है और उसकी छवि की पुष्टि सीसीटीवी से होती है। कुछ घंटों बाद चौथा आरोपी भी पकड़ा जाता है और सभी आरोपियों में भीड़ के द्वारा आशंका के चलते उन्हें सेंट्रल जेल भेज दिया गया है। लेकिन भीड़ में अभी भी आक्रोश देखने को मिल रहा है। शनिवार को जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि हम मामले की जांच एसआईटी से करवा रहे हैं। किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। "मुख्यमंत्री ने हमेशा की तरह कहा, 'मैं इस घटना से बहुत दुखी हूं। रात भर सो नहीं पाया।"
पीड़िता और उसकी माँ द्वारा सरकार से न्याय में आरोपियों को फाँसी की सज़ा की मांग की जा रही है लेकिन क्या हमारे देश की बेटी और उसकी माँ को इंसाफ मिल पायेगा? क्या सरकार हर बार की तरह केवल सांत्वना ही देगी? क्या फिर कोई वक़ील पैसो की लालच के लिए आरोपियो के पक्ष में केस लड़ेगा और पीड़िता को इंसाफ के लिए कई वर्ष लग जायेंगे? 
इन्ही बोझिल सवालो के साथ पूरे देश को "शक्ति" के साथ हुए दुष्कर्म को न्याय मिलने का इंतजार है।
राजधानी की छात्राओं का है कहना-
जब राजधानी भोपाल में बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ और लाडली लक्ष्मी योजना की तरह कई योजनाओ का बेटियों को लाभ प्राप्त होता है। उसी राजधानी में अगर "शक्ति" जैसी बेटी के साथ दुष्कर्म की बात सामने आती है तो सरकार की सभी योजनाएं और कानून असफ़ल हो जाते है और सभी बेटियाँ असुरक्षित महसूस करने लगती है।  -- अक्षिका यादव

हाल ही में हुए सामूहिक बलात्कार ने ये साबित कर दिया है कि, चाहे कितने भी कानून बने , चाहे कितनी भी सभाएं हो, कैंडल मार्च हो किन्तु उससे कुछ भी नही होने वाला। लड़कियां कहीं से भी सुरक्षित नही है। उन्हें अपनी रक्षा खुद करनी होगी और बलात्कार जैसे घिनौने कार्य करने वाले पुरुषों को सीधा फांसी होनी चाहिए!  --  अनामिका पाण्डेय 

क्या करते हैं हम उन लड़कियों के लिए जिनके साथ ये सब होता हैं?हम किसी सड़क पर जाकर मोमबत्तियां जलाते हैं। हम उस लड़की की जिंदगी के उन दर्दनाक पलो को अखबार के पहले पन्ने पर जगह देते हैं।उसके घर जाकर बार बार इसके जख्मो को कुरेदते हैं और सालो साल कोर्ट में उसे बुला बुला कर इस घटना को उसकी पूरी जिंदगी का हिस्सा बना देते हैं। जब सरकार बेटियों को न्याय दिलाने में सक्षम नही है और ऐसे कानून और ऐसे कानून के रखवालो पर जिन्होंने  समाज की रक्षा का ठेका लिया है,अगर तुम लोगो को कुछ नही करना तो सारा हक जनता को सौंप दो और आराम करो तुम जैसे लोगो के जागने का भी कोई फायदा नही है, कुछ करना है तो समस्या से पहले करो किसी की जिंदगी बर्बाद होने के बाद नही।  --  शिवानी यादव

भोपाल मे जो सामूहिक बलात्कार की वारदात हुई हैं। इससे तो यही पता चलता हैं,की लड़कियाँ आज भी सुरक्षित नही हैं। अब ऐसा लगता हैं कि लडकियो को अपनी सुरक्षा खुद करनी होगी.हमारे देश में बलात्कारियों के लिए कानून में सिर्फ फाँसी की सजा होनी चाहिए।  --  प्रिया सिंह रघुवंशी   

   भोपाल में हुए सामूहिक बलात्कार की खबर दिल दहला देने वाली है। इससे हम यह आंकलन लगा सकते है कि ना हम लड़कियाँ इस देश के किसी गाँव में सुरक्षित है और न ही भोपाल जैसे विकसित राजधानी में। मैं यही कहूँगी कि भविष्य में हमारे देश के किसी बेटी के साथ दुष्कर्म ना हो इसके लिए इन हैवानो को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिये।    --  सोनाली सिंह

शक्ति ने आखिरी तक हार नही मानी और चार दरिंदों के साथ संघर्ष करती रही। जी हाँ "शक्ति" देश की जनता ने उस छात्रा को काल्पनिक नाम दिया है। जो 31 अक्टूबर की शाम हबीबगंज स्टेशन के पास चार दरिंदों का शिकार हुई और उसके साथ हैवानियत की तमाम हदों को पार करते हुए ,छह बार ज्यादती की गई। लेकिन इन तीन घंटो में शक्ति ने ख़ुद का नियंत्रण खोये बिना हौसला बनाये रखा।और खुद पुलिस स्टेशन पहुंचकर चारो दरिंदो के नाम और कपड़ो का कलर हुबहु बताया और बाद में आरोपी को ख़ुद की पकड़कर पुलिस के हवाले भी किया। शक्ति की पूरी कहानी एक मिसाल है,जिसमे एक बहादुर बेटी की निर्भयता,जीवटता,संघर्ष और विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत न हारने का सबक मिलता है। पूरा देश "शक्ति" के इस हौसले का सम्मान करता है। 

Wednesday, 25 October 2017

शान्त हुई ठुमरी की मधुर तान

बनारस की मिट्टी में जन्म लेकर विश्वभर में ठुमरी संगीत को पहचान दिलाने वाली प्रख्यात शास्त्रीय गायिका पदमविभूषण गिरिजादेवी का मंगलवार की रात कोलकाता के निजी अस्पताल में निधन हो गया। बताया जा रहा है मंगलवार की सुबह 11:30 बजे सीेने में दर्द की शिकायत होने से कोलकाता के बीएम बिरला हार्ट रिसर्च सेंटर के आईसीयू में भर्ती कराया गया था। वंहा इलाज के दौरान रात के करीब 8:55 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। 88 वर्ष की गिरिजादेवी ने 68 वर्ष शास्त्रीय संगीत में दिये थे। भूमिहार जमीदार रामदेव रॉय के घर में 8 मई 1929 को घाटो के शहर वाराणसी में जन्मी थी। उनके पिता हारमोनियम बजाया करते थे और प्राम्भिक शिक्षा उन्होंने अपने पिता से ली फिर 5 साल की उम्र से गायक और सारंगी वादक सरजू प्रसाद मिश्रा से ख्याल  और टप्पा गायन की शिक्षा लेना शुरू की। गिरिजादेवी ने 9 वर्ष की आयु में फ़िल्म याद रहे में अभिनय किया था और साथ-साथ संगीत की विभिन्न शैलियों की पढाई भी जारी रखी थी। गिरिजा देवी ने गायन की सार्वजनिक शुरुआत 1949 में ऑलइंडिया रेडियो इलाहाबाद पर की थी। 1990 के दशक के दौरान बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संगीत संकाय के एक सदस्य के रूप में काम किया, और उन्होंने संगीत विरासत को संरक्षित करने के लिए कई छात्रों को पढ़ाया। गिरिजा देवी को ठुमरी की रानी के रूप में माना जाता है। गायिका के क्षेत्र में ऐतिहासिक योगदान देने के लिए उन्हें वर्ष 1972 में पद्मश्री ,वर्ष 1989 में पद्मभूषण और वर्ष 2016 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। गिरिजादेवी को संगीत नाटक अकादमी द्वारा भी सम्मानित किया गया था। गिरिजादेवी ने अपने जीवन वृतांत में जिन्दा शहर बनारस के अटूट प्रेम को दर्शाया और कहा था कि " गंगा तट पर बसा बनारस दुनिया का प्राचीन व जीवन्त शहर है।" उन्होंने बचपन की यादों को जीवन वृतांत में बताया कि हम गंगा नदी के किनारे दोस्तों के साथ घंटो तक खेलते-खेलते संगीत का अभ्यास किया करते थे। उनका मानना था कि गंगा के किनारे से किया गया अभ्यास ही ठुमरी संगीत को विश्वभर में लोकप्रिय बनाया है। गिरिजादेवी के 85वें जन्मदिन पर उनके मुरीदों ने छहः नवम्बर 2014 को बनारस के आईपी माल में उन्हें एक फिल्म का उपहार दिया। ढाई घन्टे के फ़िल्म में उनके जन्म से लेकर अब तक के सफर को संजोया गया। संगीत परिषद काशी व स्वरांगना ललित कला केंद्र के संयोजन में पाँच दिवसीय कार्यक्रम किया गया। जिनमे गिरिजादेवी के सुरो पर बिरजू महाराज थिरके। हरिहरन ने सुर मिलाया,अमजद अली खां व किशोरी अमोनकर ने भी प्रस्तुति दी थी। उन्हें भारत रत्न देने की आवाज़ भी उठी। स्वरांगना ललित कला केंद्र के सुरेंद्र मिश्र सीलू के अनुसार 90 वें जन्मदिन पर बड़े स्तर पर उत्सव की तैयारी की जा रही थी, मगर यह ईश्वर को मंजूर नही था।
उनके निधन पर पद्मभूषण पं. राजन मिश्र,पं. साजन मिश्र, पं. छन्नूलाल मिश्र, पद्मश्री सोमा घोष, पं. शिवनाथ मिश्र, राजेश्वर आचार्य, प्रो. ऋत्विक सान्याल समेत संगीत जगत की हस्तियों ने गहरा शोक जताया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गिरिजा देवी के निधन पर दुख जताते हुए ट्वीट किया, ''गिरिजा देवी का संगीत हर पीढ़ी को आकर्षित करता था. भारतीय शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाने के लिए उनकी कोशिशें हमेशा हमारी यादों में रहेंगी.'' 
लता मंगेश्कर ने गिरिजा देवी के साथ उनका एक बहुत पुराना फोटो ट्वीट किया और लिखा कि "महान शास्त्रीय और ठुमरी गायिका गिरिजा देवी जी हमारे बीच नहीं रहीं ये सुनके मुझे बहुत दुख हुआ। हमारे उनके बहुत अच्छे संबध थे। गिरिजा देवी जी बहुत अच्छी महिला थीं। मैं उनको श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।"

जावेद अख्तर ने ट्वीट किया, "गिरिजा देवी केनिधन के साथ एक युग का अंत हुआ है. अब ऐसे लोग नहीं होंगे. गिरिजा जी, मेरा आपको सलाम.''

Friday, 20 October 2017

ट्रेन वाला प्यार ( लेखक : शुभांक शुक्ला)

प्रेम कथा
अचानक मेरी नजर एक पुरानी धुँधले फोटो फ्रेम में जा पड़ी जो कई दिनों से बेज़ुबान ठहरे हुए दिवार पर लटका हुआ था,और कुछ दिन पहले ही मेरी मां ने फोटो फ्रेम से फोटो निकाल दी थी। बिना किसी फोटो का लगा यह फ़ोटो फ्रेम बिल्कुल अकेला और तनहा सा लग रहा था। उसे जरूरत थी पुरानी यादों की जो कुछ दिन पहले फोटो के साथ बिताए हुए थे और शायद मुझे भी। फ्रेम भले ही धुंधला हो गया था,लेकिन मेरी यादें अभी भी आईने की तरह साफ है। उसके साथ बिताया हुआ हसीन से भी ज्यादा रंगीन पल जिसके बिना मैं जीने की कल्पना भी नही कर सकता। उसका नाम कल्पना था। मेरे ख़्वाब की कल्पना थी वो.उसकी हँसी जैसे चाँद का मुस्कुराना था। उसका बात करना जैसे मन में प्यारी धुन का बजना था। उसकी आवाज़ में वो नशा था जो किसी को भी आकर्षित करनें में मजबूर कर दें और मुझे भी मज़बूर कर दिया था ,उसका चेहरा देखनें के लिए। 31दिसम्बर साल का अंतिम लेकिन मेरे जिंदगी का प्यारा और यादगार दिन था जब मैं ख़ुद के यादों के शहर बनारस जा रहा था। ट्रेन के s5 कोच के 32 नम्बर सीट में जाते समय कुछ किताबों को हमसफ़र बनाकर उनमें खोया हुआ था तभी मेरें कानो में एक शबनमी आवाज़ आ गिरी ,जिसमें एक प्यार था। वो ऐसा प्यार था जिसकी मुझे कई अरसों से तलाश थी। शबनमी आवाज कुछ ही पल में मेरे दिल में प्यार का महल बना चुकी थी। शीतल आवाज़ में छुपे उस चाँद के चेहरे को देखनें के लिए मन में एक अज़ीब सी तड़प ने जन्म ले लिया था। लेकिन उसकी आवाज उसी कोच के सीट नम्बर 25 से आ रही थी जो की मेरे सीट से बहुत आगें थी। उसकी मद्धम-मद्धम आवाज़ मेरें दिल को सुनाई दे रही थी। मैंने थोड़ी सी हिम्मत के साथ उसके सीट के पास जा पहुंचा। ख़ुद की झुकी पलकों को उठाते हुए उसकी ओर देखनें की कोशिश ही कर रहा था कि वो मुझे अपनी प्यारी आँखों से इशारे करते हुए बोल पड़ी,"क्या आपकी 24 नम्बर की सीट है" लेकिन मेरे कुछ कहने से पहले ही फिर बोली"प्लीज आप ये सीट हमें दे दो मेरी एक  दोस्त 64 नम्बर सीट में बैठी है,मैं उसे यंहा बुला लूँ" । मैंने लड़खड़ाती हुई आवाज़ में माफ़ कीजियेगा मेरी सीट 32 पर है,मैंने आते वक़्त यंहा पर किसी को "लवस्टोरी" नाम की किताब पढ़ते हुए देखा था सोचा मेरे दिल के सबसे करीब ये पुस्तक है मुझे मिल जाती तो मै भी पढ़ लेता और मेरा सफ़र प्यार में कट जाता.उसने मुझसे आँखे चुराते हुए बोली वो किताब मैं ही पढ़ रही थी। और एक भारी से बैग से "लव स्टोरी" को निकालते हुए मेरें हाथों में थमा दी और शरारती अंदाज में बोली मेरा भी ये दिल है ,पढ़कर वापस कर दीजियेगा। उसका किताब का देना जैसे सच में उसके दिल देनें के बराबर था। मेरी धड़कने जोर-जोर से चलनें लगी थी। मेरे आँखों में उससे बात करने की तीव्र इच्छा होने लगी। मैंने कुछ बहाना बनाते हुए उससे कहा मैं यहीं पर बैठकर कुछ कहानियां पढता हूँ फिर आपको वापस कर दूंगा। वो अचानक बोली लेकिन एक शर्त है आप ख़ुद नही पढेंगे बल्कि हम सब को भी अपनी आवाज में सुनाएंगे। शायद वो लंबे सफर को कहानियों के टुकड़ों में जीना चाहती थी। मैंने बिना देर करते हुए उसकी शर्त को मान गया और कहानी सुनाने लगा। कुछ समय कहानी सुनाते-सुनाते हमने एक-दूसरे से बातें की,नाम जानें, और सफर की मंजिल का पता लगाया। और बातें करते करतें कब एक दूसरे के दोस्त बन गए पता ही नही चला। उसके लिए मै दोस्त था लेकिन वो मेरे लिए पहला प्यार थी। उसकी आवाज़ से ही मुझे प्यार हो गया था उस प्यार को मैं मन में ही छुपाये रखना चाहता था क्योंकि मुझे उसकी दोस्ती उम्र भर के लिए चाहिए थी। हम दोनो के बात करते वक्त वक़्त ट्रेन के शोर में एक आवाज सुनाई दी की "90 रूपये में तस्वीर बनवाये-90रूपये में तस्वीर बनाये" और मैंने तस्वीर बनाने वाले को पास बुलाकर हम दोनो की तस्वीर बनवाई। वो तस्वीर मेरी याद ही नही बल्कि मेरी जिंदगी की हसीन पल था जिसे मैंने तस्वीर में कैद कर लिया था। जिसे मैंने घर पर आकर फोटोफ्रेम में सजाकर रख लिया था। उसकी याद आज भी मेरे साथ है और वो प्यार भी। लेकिन कुछ दिन पहले ही मेरे मना करने के बाद भी मेरी मां ने मेरे रिश्ता बगल के शहर में कर दिया था और मुझे देखने के लिए लड़की वाले आ रहे थे शायद इसी लिए माँ ने फोटोफ्रेम से तस्वीर निकाल दी थी। वो दिन आज ही था,जब मेरे घर में खुशियों का माहौल होने के बावजूद भी और चाहकर भी मैं खुश नही था। लड़की वाले आ चुके थे। माँ मुझे आवाज लगा रह थी लड़की वालो के पास बैठने के लिए लेकिन मेरे कदम वहां तक जा न सके कुछ देर बाद माँ मेरे पास आई और शरारती अंदाज में बोली की लड़की वाले लड़की की फोटो लाएं है मुझे तो लड़की पंसद है और घर के सभी लोगो को भी पंसद है। तुम भी देख लो और पंसद ना हो तो बोल दो हम मना कर देंगे।
मेरे   ड्रेसिंग टेबल के पास रख कर चली गई।अचानक मेरी नजर जैसे ही फोटो में पड़ी तो मुझे माँ के शरारती अंदाज का पता चला की जो कई दिनों से मेरी शादी कराना चाहती थी आज क्यों लड़की की फोटो पसंद न आने पर शादी से मना करने के लिए कही थी। क्योंकि उनको पता था कि ये उसी लड़की की तस्वीर थी जो दीवार पर तन्हा लटके फोटो फ़्रेम में थी। हाँ वो कल्पना थी जिसकी शादी की बात मेरे लिए चली थी।

" कहतें है सच्चे दिल से माँगो तो हर दुआ क़बूल होती है,मेरी भी दुआ क़बूल हुई है"

                                                                                                                              शुभप्रेम(शुभांक शुक्ला)

Monday, 16 October 2017

यादों की बारात

    
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                              तनहा सा छोड़ गई तुम
                         तन्हाई है साथ मेरे
                         याद रखोगी ना तुम
                        दूर जानें के बाद मेरें
                       अपनीं यादें देके गई हो
                       साथ मेरें यादों की बारात
                       आँखों में आँसू के समंदर
                       कैसे रोकूँ अपनें जज़्बात
                       दिल को अब कैसे समझाऊँ
                       तेरे बिन कैसे रह पाऊँ
                       याद तेरी जो आएगी
                       कैसे अब तुझसे मिल पाऊँ
                       रात अँधेरी आज हुई है
                       जानें कब होगी सुबह
                       उम्मीदों की किरणे निकलें
                       ख़ुदा से है मेरा आग्रह.....
                                                            (मेरा ज़िक्र)
                                                           शुभांक शुक्ला


"माँ" तू मुझसे इतना क्यू प्यार करती है

 ____________"माँ"___________

"माँ" तू मुझसे इतना क्यू प्यार करती है
दुआओं में भी मेरी फरियाद करती है
मेरी फ़िक्र और कोई ,क्यू नही करता
तू ही क्यू मेरी फ़िक्र, दिन रात करती है..

माँ तू हरवक्त मेरा इतना क्यू ख्याल रखती है
घर से निकलते ही तू लौटने की राह तकती है
माँ तेरा दिल किसी जलनिधि (सागर)से कम नही
ईश्वर से प्रार्थना में भी मेरी ख़ुशी की मांग करती है
माँ तू मुझसे इतना क्यू प्यार करती है.....

माँ तू भूखा होकर भी, मुझे भूखा क्यू नही रखती है
दुःखी होकर भी ,मुझे दुःखी क्यू नही करती है
मेरी परवाह और कोई,क्यू नही करता
तू ही क्यू मेरी परवाह ,दिन रात करती है..

माँ तू मुझसे इतना क्यू प्यार करती है
जो दुआओं में भी मेरी फरियाद करती है।
     
                                                                                      मेरा ज़िक्र
                                                                                      (शुभांक शुक्ला)





क्यों असफल रही भारत सरकार लापता विमान खोजनें में?


ज का दिन इतिहास में सुनहरे अक्षरों से संयोजित कर संविधान में दर्ज किया गया है। भारत का राष्ट्रीय ध्वज 22 जुलाई 1947 भारत के संविधान द्वारा अपनाया गया था। जिसे हम भारतीय "राष्ट्रीय झंडा अंगीकरण दिवस" के रूप में मनाते है। जँहा भारत का संविधान 22 जुलाई को गौरव के साथ स्वर्णिम दिन के रूप में याद करते हैं वहीं दूसरी दिशा में भारत के 29 परिवारों के द्वारा इसी दिन (22 जुलाई ) को काले दिन के रूप में 1 साल से याद किया जा रहा है। क्योंकि 22 जुलाई 2016 को 29 परिवारों ने अपने घर के लाल को लापता पाया था। माँ ने अपनें बेटे ,बहन ने भाई ,पिता ने अपने बेटे,बेटे ने अपने पिता और पत्नी ने अपनें पति से दूर जाकर देश सेवा के लिए भारतीय वायुसेना विमान AN 32 से उड़ान भरी थी लेकिन उड़ान इतनी लम्बी हुई की परिवार से लेकर भारत सरकार भी इस उड़ान तक पँहुच नही पाया। भारतीय वायुसेना का AN 32 विमान शुक्रवार 22 जुलाई 2016 को चेन्नई से पोर्ट ब्लेयर लौट रहा था जो सप्ताह में तीन बार कूरियर लेकर जाता था। लेकिन तमिलनाडु के ताम्बरम से अंडमान के लिए सुबह साढ़े आठ बजे उड़ान भरने के घण्टे भर के भीतर ही राडार से गायब हो गया ।

एएन-32 ने सुबह 8.30 बजे उड़ान भरी. इसे पोर्ट ब्लेयर 11.30 बजे पहुंचना था. लेकिन ठीक आधे घंटे बाद ही 9.00 बजे इसका एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल (एटीसी) से संपर्क टूट गया। और संपर्क इस तरह टूटा की आज तक उस विमान से किसी भी तरह का संपर्क नही जुड़ पाया। लेकिन भारत देश की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि
भारत के राजनेता हर छोटे मुद्दे पर अपनी आवाज़ को बुलंदी के साथ उठाते है। देश के लिए अहित में किये जाने वाले बिल के लिए संसद में नेता हंगामा करता है लेकिन विमान लापता होने के बाद उन्तीस जवानों के लिए संसद में किसी नेता ने आज तक आवाज नही उठाई। अपनी-अपनी पार्टियों को देशप्रचलित करनें के लिए पार्टी कार्यकर्ता सड़क आंदोलन हर दिन करतें है लेकिन जब देश सेवा कर रहें जवानों की बात आती है तो किसी भी पार्टी के कार्यकर्ता सड़क पर नही दिखते। ये बात तो आईने की तरह साफ़ है अगर ये 29 जवान, नेताओं के वोटबैंक होते तो अभी तक प्रत्येक पार्टी द्वारा सहानभूति का पिटारा लेकर 29 जवानों के परिजनों से मिलकर देश में विमान लापता होने पर जमकर भाषणबाजी की जा रही होती। लेकिन किसी भी पार्टी का इन 29 जवानों से वोटबैंक और निजी स्वार्थ ना होने के कारण आजतक AN-32 लापता विमान को मुद्दा भी नही बनाया गया। लेकिन रक्षा मंत्री होनें के कारण मनोहर पर्रिकर ने इस संबंध में विमान के लापता होते ही छह दिन पश्चात राज्य सभा में जानकारी दी थी और कहा था "विमान में संवेदनशील मौसम की जानकारी देने वाली रडार प्रणाली मौजूद थी. विमान चालक ने बिजली और तेज बारिश के कारण विमान को दाहिने ले जाने की अनुमति मांगी लेकिन तुरंत यह बायीं ओर मुड़ गया और 23,000 फ़ीट की ऊंचाई से समुद्र में गिर गया. लेकिन उसके बाद किसी तरह की कोई तत्काल सूचना नहीं मिली. रडार से ओझल होते हुए यह तुरंत लापता हो गया. ये बात सबसे परेशान करने वाली है."।लेकिन उससे भी ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि हमारे द्वारा चाँद और मंगल में तिरंगा लहराया गया है लेकिन भारत के तिरँगे की शान को बचाये रखने वाले जवानों के लापता होनें के एक साल बाद भी पता नही लगाया जा सका है। इसरो से लेकर नासा तक AN-32 को खोज रहे सभी सेटलाइट की लाइन अब डेडलाइन हो गई है। हमारे देश के लिए इससे बुरा दिन और क्या हो सकता है कि विमान की एक पिन तक को ढूंढने में हमारा देश पूरी तरह असफ़ल रहा। भारत सरकार ने विमान खोज पर अपनी रोक जरूर लगा दी लेकिन उन परिवारों का क्या जो आज भी अपनें बेटे-बेटियोँ का राह ताकते है और भगवान से प्रार्थना करते है कि कोई चमत्कार हो जाये और हमारे घर का चिराग़ फिर जल उठे।

 AN-32 विमान लापता होने की हेडिंग मैन आज से एक साल पहले किसी अखबार में पढ़ी थी लेकिन मेरे मित्र अश्वनी झा ने बताया कि मेरें मामा राजीव रंजन जोकि बिहार के मधुबनी के रहनें वाले थे वो भारतीय वायुसेना में फ्लाइट इंजीनियर थे और 22 जुलाई 2016 में लापता हुए एएन-32 विमान में राजीव रंजन बतौर फ्लाइट इंजीनियर मौजूद थे।

उनके पत्नी और बच्चे कोयम्बटूर में रहते हैं और माता-पिता,भाई-बहन,बुआ सभी एक साथ सौरठ में रहते है। लेकिन जबसे पता चला की उनके वास्तव के नायक जिस विमान में थे वो विमान लापता है तब से आजतक उनके वापस आने की उम्मीद में प्रत्येक दिन घर के बाहर इंतजार करतें रहते है। लेकिन उनके परिवार को भारत सरकार से अभी तक विमान की खोज संबंध में एक भी संदेश नही आया है।
इस तरह के 28 परिवार और भी हैं जो हरदिन इसी उम्मीद से सुबह उठते है कि शायद आज का दिन कोई शुभ समाचार मिलें की हमारे घर का लाल जीवित है। हरियाणा के रोहतक से पंकज नांदल जोकि एएन-32 में को-पायलट थे,उनके बूढ़े पिता कृष्ण नांदल भी इंतजार की दीवारें हर दिन खड़े करतें है। बिहार के आरा जिले का ऐसा परिवार जिसके घर का प्रत्येक सदस्य भारतीय सेना में है उनके घर की शान अखिलेश इंडियन आर्मी में
टेक्नीशियन के पद में कार्यरत थे। उत्तरप्रदेश गाजीपुर के छेदी यादव व उत्तरप्रदेश के देवरिया के रघुवीर वर्मा भी एएन-32 में तैनात थे। उधमपुर के 26 वर्षीय लांसनायक लक्ष्मीकांत त्रिपाठी तथा पंजाब के 23 वर्षीय नवजोत सबसे कम उम्र के जवान थे। जब भारत के चहुँओर बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ का नारा गूँज रहा हो वंही दूसरी ओर हरियाणा की 26 वर्षीय बेटी लेफ्टिनेंट दीपिका भी लापता विमान एएन-32 में उपस्थित थी। दीपिका ने 2013 में एयरफोर्स में लेफ्टिनेंट पद पर आसीन हुई थी और 22 नवम्बर 2015 को शादी करके किसी घर की लक्ष्मी भी बनी थी लेकिन आजतक अपनें घर मे वापस नही आ सकी। इस तरह के ना जानें भारत में कितने परिवार है जो हरदिन बेबसी,दर्द में जी रहें है।

विमान के लापता होने के क्या कारण हो सकतें है?

1.क्या 26 साल पुराना होने की वजह से ये दुर्घटनाग्रस्त हो गया ?
2. क्या विमान ऑटोपायलट मोड में था जिससे इसका नियंत्रण बिगड़ने से यह बंगाल की ख़ाड़ी में डूब गया?
3.समुद्र में डूबने के बाद विमान का कोई सुराग क्यों नहीं मिल रहा?
4. क्या विमान का बीकन इसलिए काम नहीं कर रहा था क्योंकि विमान काफी पुराना था?
5.अब तलाशी और बचाव अभियान दल के सामने और क्या विकल्प बचे हैं?

अगर तलाशी और बचाव अभियान के अगर कोई भी विकल्प नही बचें तो क्या भारत सरकार द्वारा 29 जवानों को "शहीद" का दर्जा दिया जाएगा?
प्रधनमंत्री मोदी ने भारत के तिरँगे को विश्व में लहराया है लेकिन आजतक एएन-32 के विषय मे कभी भी ज़िक्र नही किया। मोदी के कार्यकाल को भले ही स्वर्ण वर्षों की तरह याद किया जाए लेकिन विमान खोज ना पानें का दाग ताउम्र उनके साथ जुड़ा रहेगा।


कर क्राँति से एक देश ,एक टैक्स तथा 1 मार्केट

‌हमारें देश में कई दिनों से एक मुद्दा हर एक की ज़ुबान से सुनने को मिल रहा है। कोई कंही भी खड़ा हो जाये यह मुद्दा इतने जोरों-सोरों से चल रहा है जैसे कोई नई क्रांति  आ गई हो। जो व्यक्ति इस मुद्दे की आपस पे चर्चा कर रहें हैं उनमें से कई लोगों को हकीकत में इस मुद्दे की परिभाषा भी नही पता है हालांकि की मैं भी उनमें से एक हूँ। जी मैं बात कर रहा हूँ GST जैसे ऐतिहासिक मुद्दों की। विभिन्न प्रकार के समूह आपस में GST पर कई प्रकारों से चर्चा कर रहें है। जिनमें से कई लोग GST का फुल फ़ॉर्म अजीबोगरीब बता रहें है तथा व्हाट्सअप,फेसबुक जैसे कई सोशल मीडिया संस्थानो में GST का फुल फॉर्म गई सरकार तुम्हारी,गन्दा सरकारी टैक्स ,गरीब शोषण टैक्स इत्यादि परिभाषाओं द्वारा चलाया जा रहा है जोकि पूर्णतः असत्य है। ज़्यादातर मीडिया चैनल कई दिनों से अपनी रिपोर्टिंग केवल जीएसटी पर दिखा रहें हैं। हमारे भारतीय एंकर कई दिनों की बेहद मेहनत ,खोजबीन और बड़े -बड़े चार्टेड एकाउंटेंट तथा इकोनॉमी सिलेबस समझने के बाद भी हमें समझाने में असफल रहें हैं। क्योंकि हमनें जब जीएसटी का फुल फ़ॉर्म  गूगल तथा किताबों पर सर्च किया तो गुड्स एंड सर्विस टैक्स द्वारा उल्लेखित किया जा रहा है लेकिन 30 जून की अंतिम रात व् 1 जुलाई के पहले सेकंड में भारत के माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा भाषण में जीएसटी का फुल फ़ॉर्म गुड एंड सिम्पल टैक्स बताया गया।  हिन्दी में जीएसटी को "वस्तु एवं सेवा" कर कहतें है लेकिन कई किताबोँ में अब इसकी परिभाषा बदलती हुई नजर आएगी क्योंकि माननीय प्रधानमंत्री जी के अनुसार आप इसे "वस्तु एवं साधारण कर" कह सकतें है।

मैंने सुबह जब अखबार उठाया तो दैनिक भास्कर के फ्रंट पेज पर "कर क्राँति "  जैसे नए शीर्षक से परिचित हुआ तथा दैनिक भास्कर द्वारा साफ़ भी किया गया की  शीर्षक पढ़कर चौकिएं । क्योंकि ये हेडलाइन
उत्सव का प्रतीक भी है और इंतजार का सूचक भी । 17 तरह के टैक्स और 23 तरह के सेस को मिलाकर एक जीएसटी निश्चित तौर पर आज़ादी के बाद की सबसे बड़ी कर (टैक्स) क्रांति है। दूसरी ओर सरकार जीएसटी के जरिये बड़े आर्थिक बदलाव का दावा भी कर रहीं है। देश ऐसे बदलाव की अपेक्षा भी कर रहा है। इसलिये सरकार, करिये क्राँति..... देश बेसब्री से इस बदलाव का इंतजार करेगा....।

कर क्राँति 30 जून रात 12 बजे संसद के सेन्ट्रल हॉल में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी व माननीय मोदी जी द्वारा एक क्रांतिकारी बटन दबाकर लांच किया गया। मोदी जी ने कहा ये किसी एक पार्टी की नहीं बल्कि हम सबकी साझी विरासत है लेकिन मैं इसे हास्य रूप में कहूँ तो यह कथन पूर्णतः असत्य है क्योंकि आज़ादी के बाद पहली बार संसद के किसी बड़े कार्यक्रम में काँग्रेस पूरी तरह से ग़ायब रही। भारत के हर राज्य को 500 तरह के टैक्स से  आज़ादी मिल रही है। आप इसे आर्थिक आज़ादी भी कह सकतें है। क्योंकि 17 साल की कड़ी मेहनत के बाद
इस क्राँति को देश में लागू किया गया है।
                   
 जीएसटी लागू करनें वाला भारत 161 वां देश है। सबसे पहले फ़्रांस ने 1954 में यह टैक्स प्रणाली अपनाई थी। भारत नें जीएसटी का ड्यूल मॉडल अपनाया है। कनाडा के बाद यह मॉडल अपनाने वाला भारत दूसरा देश है।आज शनिवार सुबह से 1 देश,1टैक्स और 1 बाज़ार यानि जीएसटी अमल में आ जायेगा। इस ऐतिहासिक समारोह में जंहा एक हज़ार से ज़्यादा वीआईपी शामिल हुए,वंही काँग्रेस ,ममता और लालू की पार्टी दूर रही। लांचिंग में टाटा सहित 1000 से ज़्यादा वीआईपी मौजूद थे पर लता मंगेशकर और अमिताभ बच्चन समारोह में शामिल नही हुए है। जबकि अमिताभ बच्चन को जीएसटी का ब्रांड एम्बेसडर बनाया गया था। मोदी जी ने गीता से तुलना और चाणक्य से प्रेरणा की बात भी अपनें भाषण में की उन्होंने कहा की गीता के 18 अध्याय हैं। संयोग देखिये की जीएसटी कॉउंसिल की 18 बैठकों के बाद आज यह लागू हो रहा है। चाणक्य के श्लोक का हवाला देते हुए कहा की कोई काम कितना भी कठिन क्यों न हो, अथक परिश्रम से इसे हासिल किया जा सकता है।

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जी ने कहा की जीएसटी से बहुत संतोष मिला है। मुझे उम्मीद थी कि जीएसटी लागू होगा। यह मेरें लिए ऐतिहासिक मौका है। क्योंकि वित्त मंत्री रहते मैंने इसके लिए काफ़ी पहल की थी।

जीएसटी लागू करनें के उद्देश्य

जीएसटी लागू होनें के बाद सभी राज्यों में एक समान कर लगेगा। इससे राज्यों के बीच होनें वाली अस्वस्थ प्रतियोगिता रुकेगी। जीएसटी का उद्देश्य माल और सेवाओं के प्रोडक्शन और डिस्ट्रीब्यूशन लागत पर करों के दोहरे प्रभाव को खत्म करना है। टैक्स पर टैक्स के व्यापक प्रभावों को ख़त्म कर उसे एक टैक्स में बदलनें से बाज़ार में वस्तुओं और सेवाओं की प्रतिस्पर्धा में काफ़ी सुधार होगा,जिससे जीडीपी में बढ़ोत्तरी होगी।

मोदी जी नें क्यों चुना ससंद सेंट्रल हॉल

मोदी जी ने GST लांच करनें के लिए संसद का सेंट्रल हॉल इसलिये चुना क्योंकि आज से 71 वर्ष पूर्व 9 दिसंबर 1946 को इसी सेंट्रल हॉल में संविधान सभा की पहली बैठक हुई थी तथा 14 अगस्त 1947 जब रात 12 बजे तब देश की आज़ादी की घोषणा हुई थी। तीसरा ऐतिहासिक फैसला 26 नवम्बर 1949 में इसी सेंट्रल हॉल में देश को संविधान को स्वीकार किया गया था।
जीएसटी लागू होनें के असर से परेशानी कम होगी और कारोबारी टैक्स देनें के लिए प्रोत्साहित होंगें। समान पर दर समान होगी तो महँगाई और कालाबाज़ारी पर रोक लगेगी। टैक्स ढाँचा मजबूत होगा। मल्टीपल टैक्स फाइलिंग ख़त्म होगी और टैक्स अदा करनें के लिए कई जगह दस्तावेज नही भरनें होगें। पहले 17 टैक्स,23 सेस यानि टैक्स पर टैक्स था पर अब 1 जीएसटी और टैक्स पर टैक्स ख़त्म हो जायेगा । जीएसटी तीन प्रकार की है पहला SGST जिसे हिंदी में राज्य वस्तु एवं सेवा कर कहते हैं इस कर को राज्य सरकार वसूलेगी दूसरा CGST जिसे हिन्दी में केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर कहतें है। इस कर को केंद्र सरकार वसूलेगी और तीसरा कर है IGST जिसे हिन्दी में एकीकृत एवं सेवा कर कहतें है। एक राज्य से दूसरों राज्यों में वस्तुओं एवं सेवाओं की बिक्री में यह कर लगेगा। 1 जुलाई से टैक्स के सिर्फ चार स्लैब- 5,12,18 और 28 % होंगें। जम्मू कश्मीर में अभी जीएसटी लागू नही है यानि जो भी समान यँहा से आएगा या जायेगा उस पर डबल टैक्स अभी भी लगेगा।



जब GST जैसे विशाल शब्द पर मैंने विश्लेषण किया तो मुझे इस बात पर विश्वास अवश्य हुआ की मोदी जी द्वारा लिया गया यह स्वर्णिम फैसला देश के लिए लाभदायक सिद्ध होगा और देश को विकास के नए शिखर पर विराजमान करेगा।


मोहम्मद अय्यूब पंडित के मौत का जिम्मेदार कौन?


पूरे विश्व सम्राट में सभी धर्मों को अभिमान के साथ अपनाने वाला लोकतांत्रिक देश भारत है। यँहा पर सभी धर्मों को अपनाया ही नही जाता अपितु सभी धर्म एक दूसरे का सम्मान भी करते हैं। पूरे विश्व में एकलौता ऐसा देश भारत है जंहा पर 80 प्रतिशत हिंदुओं पर शासन के लिए मुस्लिम राष्ट्रपति नियुक्त किया जाता है और अपनी जिम्मेदारी  बखूबी  निभाता है। केवल भारत में ही 20 से ज्यादा भाषाओँ का प्रचलन है जिसमें हिन्दी, उर्दू,बँगाली
और ना जाने कितनी भाषाओँ का संगम एक ही देश में होता है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत में हर जगह लोकतंत्र की पूजा की जाती है पूरी दुनिया लोकतंत्र को मानती है लेकिन कुछ अंश में  छुपे गद्दारों के कारण अब कश्मीर में भीड़तंत्र का कब्ज़ा हो गया है। इस भीड़ में आतंकवादी से लेकर पत्थरबाज और अलगाववादी से पीड़ित कुछ बुज़दिल लोग शामिल है। और इसी भीड़तंत्र के होनें से एक बार फिर भारत के बेटे मोहम्मद अय्यूब को निशाना बनाया गया और उसकी हत्या कर दी गई। इस तरह की वारदात जम्मू-कश्मीर जैसे जन्नत में भीड़तंत्र के कब्ज़ा होने का इशारा करती है। आज से 64 वर्ष पूर्व 23 जून 1953 को श्रीनगर में इसी प्रकार की दुःखद घटना का सामना करना पड़ा था। एक राष्ट्रभक्त की रहस्यमयी तरीके से हत्या कर दी गई थी। इसी व्यक्ति द्वारा भारत में पहली बार अनुच्छेद 370 का विरोध किया गया था, उस समय भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 में यह प्रावधान था की कोई भी व्यक्ति भारत सरकार से परमिट लिए बिना जम्मू कश्मीर की सीमा में प्रवेश नही कर सकता है लेकिन इसका विरोध करने वाले उस देशभक्त ने जम्मू-कश्मीर को भारत का एक अभिन्न अंग बताया था और यह भी कहा था की देश में दो विधान,दो प्रधान,दो निशान नही चलेंगे। इस देशभक्त का नाम श्यामा प्रसाद मुखर्जी था जोकि भारत के प्रख्यात शिक्षावेद चिंतक,राजनेता और भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारत के अनुच्छेद 370 को देश की एकता और अखण्डता के लिए बहुत बड़ा ख़तरा मानतें थे। उनकी ये सोच वर्षों पुरानी है लेकिन मोहम्मद अय्यूब की हत्या को देखकर यह अवश्य कहा जा सकता है की उनकी ये सोच शत् प्रतिशत सत्य थी।  23 जून आधी रात श्रीनगर में डीएसपी मोहम्मद अय्यूब को कुछ हिंसक भीड़ ने अपना शिकार बना लिया और उसे पीट-पीट कर मार डाला। यह वारदात उस वक्त की है जब मोहम्मद अय्यूब पंडित कश्मीर की सबसे बड़ी मस्जिद जामिया की सुरक्षा में तैनात थे। हिंसक भीड़ ने पत्थरों से मार-मार कर हत्या ही नही की अपितु मोहम्मद अय्यूब के शव को 300 मीटर से भी ज़्यादा घसीटते रहे। मोहम्मद अय्यूब पंडित हमले से पहले नमाज़ पढ़कर निकले थे और मस्जिद की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मस्जिद में आने-जानें वालों की तस्वीर ले रहे थे लेकिन वंही पास में खड़े कुछ असामाजिक तत्व पत्थरबाजों ने अय्यूब से इस बात की बहस करनें लगें की तुम मुसलमान नही हो बल्कि एक हिन्दू हो जो मस्जिद की मुखबिरी कर रहा है। और उन्ही गद्दारों में से एक ने चिल्ला कर भीड़ को इकट्ठा कर लिया की एक हिन्दू मस्जिद की मुखबिरी कर रहा है और 150 से भी ज़्यादा मुसलमान एकत्रित हो गए और मोहम्मद अय्यूब पर हमला कर दिया।
जब ये सब चल रहा था तब अलगाववादी नेता मीरवाईज उमर फारुख मस्जिद के अंदर लोगों को तक़रीर दे रहे थे । ये वही अलगाववादी नेता है जो हाल हीं में भारत-पाकिस्तान के मैच पर पाकिस्तान के जीतनें पर बधाई देता है और पटाखें फोड़ कर उत्सव मनाता है। मोहम्मद अय्यूब के हत्या की पुष्ठी होनें के बाद साफ हो गया है की अय्यूब पर जिन्होंने हमला किया था वें सब मीरवाईज के कार्यकर्ता थे। जिन्होंने ख़ुद के मुस्लिम भाई को इस तरह पीट-पीट कर मार डाला है की मोहम्मद अय्यूब के शव को आसानी से पहचाना भी नही जा सकता था अगर आप इस शव को देख लेते तो आपकी रूह काँप उठती। आप बिल्कुल यह कह सकतें है जैसे हमारें जवानों को पाकिस्तानी आतंकवादी द्वारा जिस तरह बेदर्दी से जवानों के अंगो को काट दिया जाता है कुछ इसी प्रकार से हिंसक भीड़ ने अय्यूब को भी मारा है। जरा सोचिये जब 3 दिनों बाद रमजान और ईद का त्योहार आनें वाला हो और उस घर का चाँद हमेशा के लिए छुप गया हो तो उस परिवार के लिए इससे बुरा दिन और क्या हो सकता है।

‌मोहम्मद अय्यूब की भतीजी ने कहा की " हमारें बेकसूर अंकल को मारा इन्होंने,हमारें ईमानदार अंकल को मारा। हम इंडियन है,हाँ हम इंडियन है। इंडियन है हम । हाँ हम इंडियन है....

  अय्यूब के रिश्तेदार ने भी कहा की "मीरवाईज से जाकर पूँछो। हमारा जिगर जल रहा है। कश्मीरी-कश्मीरी को मार रहा है,मुसलमान-मुसलमान को। कँहा गया तुम्हारा गिलानी"

पूरी घटना को देखकर वंहा की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने कहा की " अगर पुलिस के सब्र का पैमाना छलका तो लोगों के लिए बहुत मुश्किल होगी।"


कश्मीर घाटी में पिछले 4 महीनों में आतंकवादी हमलों में राज्य के 16 से ज्यादा पुलिसकर्मी शहीद हुए है। 16 जून को अंनतनाग में जम्मू कश्मीर पुलिस के 6 जवान शहीद हुए थे। जिनमें 32 वर्ष के फ़िरोज अहमद डार भी शामिल थे।


 पिछले माह 22 वर्ष के लेफ्टिनेंट उमर फयाज के शरीर को भी,आतंकवादियों ने गोलियों से छलनी कर दिया था। इन सुरक्षा कर्मियों को देश के संविधान में पूर्णतः विश्वास था, देश के हित में काम कर रहे थे इसलिए इन्हें मार दिया गया। डीएसपी अय्यूब की हत्या को भीड़ का हमला मानकर रफ़ा-दफ़ा नही किया जा सकता है। भीड़ को किसी की हत्या करनें का लाइसेंस नही दिया जा सकता है इस भीड़ पर कड़ी कार्यवाही होनी ही चाहिये.

अब पूरी दुःखद घटना पर विश्लेषण कीजिए और मेरें अंतर्मन में जो सवाल तूफ़ान फैला रहें है उन सवालों पर आप भी आत्ममंथन कीजिए...
1.अगर डीएसपी मोहम्मद अय्यूब हकीकत में हिन्दू होता तो क्या कुछ असामाजिक तत्व द्वारा हिसंक भीड़ का नाम देकर मस्जिद के बाहर उस हिन्दू को मारा जाना वाज़िब होता ?
2. अगर मोहम्मद अय्यूब अपनें मुस्लिम होनें का सबूत देनें में सफ़ल होते क्या हिसंक भीड़ उनकी हत्या ना करती?


     धर्म की बात करके क्यों एक दूसरे को डर देते हैं
धर्मों की बात भुलाकर चलो इंसानियत की बात कर लेतें हैं।
                                                                             (शुभांक शुक्ला)
                        




धांसू है रणबीर कपूर का एनिमल फिल्म में अवतार, बाप-बेटे की कहानी रोंगटे खड़े कर देगी

फिल्म एनिमल में रणबीर कपूर का अवतार धांसू है। यह 2023 की बड़ी फिल्मों में से एक साबित होगी। फिल्म का ट्रेलर काफी शानदार है और रणबीर कपूर का ...