प्रेम कथा
अचानक मेरी नजर एक पुरानी धुँधले फोटो फ्रेम में जा पड़ी जो कई दिनों से बेज़ुबान ठहरे हुए दिवार पर लटका हुआ था,और कुछ दिन पहले ही मेरी मां ने फोटो फ्रेम से फोटो निकाल दी थी। बिना किसी फोटो का लगा यह फ़ोटो फ्रेम बिल्कुल अकेला और तनहा सा लग रहा था। उसे जरूरत थी पुरानी यादों की जो कुछ दिन पहले फोटो के साथ बिताए हुए थे और शायद मुझे भी। फ्रेम भले ही धुंधला हो गया था,लेकिन मेरी यादें अभी भी आईने की तरह साफ है। उसके साथ बिताया हुआ हसीन से भी ज्यादा रंगीन पल जिसके बिना मैं जीने की कल्पना भी नही कर सकता। उसका नाम कल्पना था। मेरे ख़्वाब की कल्पना थी वो.उसकी हँसी जैसे चाँद का मुस्कुराना था। उसका बात करना जैसे मन में प्यारी धुन का बजना था। उसकी आवाज़ में वो नशा था जो किसी को भी आकर्षित करनें में मजबूर कर दें और मुझे भी मज़बूर कर दिया था ,उसका चेहरा देखनें के लिए। 31दिसम्बर साल का अंतिम लेकिन मेरे जिंदगी का प्यारा और यादगार दिन था जब मैं ख़ुद के यादों के शहर बनारस जा रहा था। ट्रेन के s5 कोच के 32 नम्बर सीट में जाते समय कुछ किताबों को हमसफ़र बनाकर उनमें खोया हुआ था तभी मेरें कानो में एक शबनमी आवाज़ आ गिरी ,जिसमें एक प्यार था। वो ऐसा प्यार था जिसकी मुझे कई अरसों से तलाश थी। शबनमी आवाज कुछ ही पल में मेरे दिल में प्यार का महल बना चुकी थी। शीतल आवाज़ में छुपे उस चाँद के चेहरे को देखनें के लिए मन में एक अज़ीब सी तड़प ने जन्म ले लिया था। लेकिन उसकी आवाज उसी कोच के सीट नम्बर 25 से आ रही थी जो की मेरे सीट से बहुत आगें थी। उसकी मद्धम-मद्धम आवाज़ मेरें दिल को सुनाई दे रही थी। मैंने थोड़ी सी हिम्मत के साथ उसके सीट के पास जा पहुंचा। ख़ुद की झुकी पलकों को उठाते हुए उसकी ओर देखनें की कोशिश ही कर रहा था कि वो मुझे अपनी प्यारी आँखों से इशारे करते हुए बोल पड़ी,"क्या आपकी 24 नम्बर की सीट है" लेकिन मेरे कुछ कहने से पहले ही फिर बोली"प्लीज आप ये सीट हमें दे दो मेरी एक दोस्त 64 नम्बर सीट में बैठी है,मैं उसे यंहा बुला लूँ" । मैंने लड़खड़ाती हुई आवाज़ में माफ़ कीजियेगा मेरी सीट 32 पर है,मैंने आते वक़्त यंहा पर किसी को "लवस्टोरी" नाम की किताब पढ़ते हुए देखा था सोचा मेरे दिल के सबसे करीब ये पुस्तक है मुझे मिल जाती तो मै भी पढ़ लेता और मेरा सफ़र प्यार में कट जाता.उसने मुझसे आँखे चुराते हुए बोली वो किताब मैं ही पढ़ रही थी। और एक भारी से बैग से "लव स्टोरी" को निकालते हुए मेरें हाथों में थमा दी और शरारती अंदाज में बोली मेरा भी ये दिल है ,पढ़कर वापस कर दीजियेगा। उसका किताब का देना जैसे सच में उसके दिल देनें के बराबर था। मेरी धड़कने जोर-जोर से चलनें लगी थी। मेरे आँखों में उससे बात करने की तीव्र इच्छा होने लगी। मैंने कुछ बहाना बनाते हुए उससे कहा मैं यहीं पर बैठकर कुछ कहानियां पढता हूँ फिर आपको वापस कर दूंगा। वो अचानक बोली लेकिन एक शर्त है आप ख़ुद नही पढेंगे बल्कि हम सब को भी अपनी आवाज में सुनाएंगे। शायद वो लंबे सफर को कहानियों के टुकड़ों में जीना चाहती थी। मैंने बिना देर करते हुए उसकी शर्त को मान गया और कहानी सुनाने लगा। कुछ समय कहानी सुनाते-सुनाते हमने एक-दूसरे से बातें की,नाम जानें, और सफर की मंजिल का पता लगाया। और बातें करते करतें कब एक दूसरे के दोस्त बन गए पता ही नही चला। उसके लिए मै दोस्त था लेकिन वो मेरे लिए पहला प्यार थी। उसकी आवाज़ से ही मुझे प्यार हो गया था उस प्यार को मैं मन में ही छुपाये रखना चाहता था क्योंकि मुझे उसकी दोस्ती उम्र भर के लिए चाहिए थी। हम दोनो के बात करते वक्त वक़्त ट्रेन के शोर में एक आवाज सुनाई दी की "90 रूपये में तस्वीर बनवाये-90रूपये में तस्वीर बनाये" और मैंने तस्वीर बनाने वाले को पास बुलाकर हम दोनो की तस्वीर बनवाई। वो तस्वीर मेरी याद ही नही बल्कि मेरी जिंदगी की हसीन पल था जिसे मैंने तस्वीर में कैद कर लिया था। जिसे मैंने घर पर आकर फोटोफ्रेम में सजाकर रख लिया था। उसकी याद आज भी मेरे साथ है और वो प्यार भी। लेकिन कुछ दिन पहले ही मेरे मना करने के बाद भी मेरी मां ने मेरे रिश्ता बगल के शहर में कर दिया था और मुझे देखने के लिए लड़की वाले आ रहे थे शायद इसी लिए माँ ने फोटोफ्रेम से तस्वीर निकाल दी थी। वो दिन आज ही था,जब मेरे घर में खुशियों का माहौल होने के बावजूद भी और चाहकर भी मैं खुश नही था। लड़की वाले आ चुके थे। माँ मुझे आवाज लगा रह थी लड़की वालो के पास बैठने के लिए लेकिन मेरे कदम वहां तक जा न सके कुछ देर बाद माँ मेरे पास आई और शरारती अंदाज में बोली की लड़की वाले लड़की की फोटो लाएं है मुझे तो लड़की पंसद है और घर के सभी लोगो को भी पंसद है। तुम भी देख लो और पंसद ना हो तो बोल दो हम मना कर देंगे।
मेरे ड्रेसिंग टेबल के पास रख कर चली गई।अचानक मेरी नजर जैसे ही फोटो में पड़ी तो मुझे माँ के शरारती अंदाज का पता चला की जो कई दिनों से मेरी शादी कराना चाहती थी आज क्यों लड़की की फोटो पसंद न आने पर शादी से मना करने के लिए कही थी। क्योंकि उनको पता था कि ये उसी लड़की की तस्वीर थी जो दीवार पर तन्हा लटके फोटो फ़्रेम में थी। हाँ वो कल्पना थी जिसकी शादी की बात मेरे लिए चली थी।
" कहतें है सच्चे दिल से माँगो तो हर दुआ क़बूल होती है,मेरी भी दुआ क़बूल हुई है"
शुभप्रेम(शुभांक शुक्ला)
मेरे ड्रेसिंग टेबल के पास रख कर चली गई।अचानक मेरी नजर जैसे ही फोटो में पड़ी तो मुझे माँ के शरारती अंदाज का पता चला की जो कई दिनों से मेरी शादी कराना चाहती थी आज क्यों लड़की की फोटो पसंद न आने पर शादी से मना करने के लिए कही थी। क्योंकि उनको पता था कि ये उसी लड़की की तस्वीर थी जो दीवार पर तन्हा लटके फोटो फ़्रेम में थी। हाँ वो कल्पना थी जिसकी शादी की बात मेरे लिए चली थी।
" कहतें है सच्चे दिल से माँगो तो हर दुआ क़बूल होती है,मेरी भी दुआ क़बूल हुई है"
शुभप्रेम(शुभांक शुक्ला)
No comments:
Post a Comment