पृथ्वी में दिखाई देनें वाले भगवान हैं माता-पिता
जब भी हमारें मनुसमृति में पिता शब्द का ज़िक्र होता है तब-तब हमारें आसपास स्वाभिमान ,संघर्ष,ईमानदारी,मान-सम्मान,त्याग,प्रतिष्ठा,विवेक ,आदर्श ,जिम्मेदारी जैसे महत्वपूर्ण शब्दों का संग्रह हो जाता है।क्योंकि ये सारे शब्द पिता के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है और पिता जैसे महत्वपूर्ण शब्द को
सुपरिभाषित करतें है। हमारें बचपन के अच्छे और सच्चे संस्कार का संचार पिता के द्वारा ही दिया जाता है। पिता द्वारा ही हमें समाज की गरिमा को समझाकर सामजिक व्यक्ति की पहचान दिलाई जाती है। संसार में किसी भी धर्म ,जाति, समुदाय या किसी भी वर्ग का मानव जीवन हो उसके लिए पिता का महत्व सभी रिश्तों में श्रेष्ठ होता है। क्योंकि पिता के जीवन का एकमात्र उद्देश्य होता है ख़ुद के बच्चों की अच्छी परवरिश करके बच्चों के भविष्य का निमार्ण करना। पिता हमेशा से ही चाहता है की जितनी सफ़लता उसनें प्राप्त की है उससे 10 गुना ज़्यादा सफ़लता उसका पुत्र प्राप्त करें।बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए पिता हमेशा दिन दुगनी और रात चौगनी ईमानदारी से मेहनत करता है इसीलिए तो हमारें पुराणों और धर्मों में कहा गया है की पिता का कद आसमान से भी ऊँचा है और पिता का कंधा पर्वत से भी मजबूत होता है। हमारें धर्म में बताया गया है की जो पुत्र सुबह उठकर अपनें माता-पिता के पैरों को छूता है वह कभी भी भाग्यहीन नही हो सकता और जीवन में हमेशा सफ़लता अर्जित करता रहता है। संपूर्ण संसार को चलाने की जिम्मेदारी है इसलिए ईश्वर परमपिता कहलातें है। ईश्वर हर क्षण विश्व के लिए चुनौती लाता है। पिता भी तो ऐसे ही कठोर नियम बनाकर बच्चों को श्रेष्ठ बनाता है। पिता हमेशा न्यायसंगत होतें है कुछ भी बच्चों को ऐसे ही नही सौंप देते। बल्कि उन्हें इस योग्य बनातें है की वह स्वयं के पैरों में खड़ा हो सके।
धर्मों में माता-पिता का महत्व
इस्लाम में भी माता-पिता की भूमिका को बताया गया है की माता पिता का आज्ञापालन और उनका आदर एवं सम्मान करना, स्वर्ग में प्रवेश करने का कारण है। हिन्दू धर्म के शुभ कार्य के पूर्व हम श्री गणेश जी की प्रार्थना
और पूजा करतें है क्योंकि सर्वप्रथम गणेश जी द्वारा ही माता-पिता स्वरूपी सृष्टि की परिक्रमा करके स्वयं की श्रेष्ठता सिद्ध की तथा माता-पिता को समस्त ब्रम्हाण्ड में सर्वश्रेष्ठ बताया और मायारूपी संसार को माता-पिता के महत्व के विषय में बताया। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य के पूर्व हम श्री गणेश जी की वंदना करता हैं। महाभारत
के वनपर्व में यक्ष-युधिष्ठिर संवाद में भी माता व पिता के विषय में प्रश्नोत्तर हुए हैं जिसमें इन दोनों मूर्तिमान चेतन देवों के गौरव का वर्णन है। यक्ष युधिष्ठिर से प्रश्न करते हैं कि
"कास्विद्गुरुतराभूमेःस्विदुच्चतरंचखात्।
किंस्विच्छीघ्रतरंवायोःकिंस्विद्बहुतरंतृणात्।।"
अर्थात् पृथ्वी से भारी क्या है? आकाश से ऊंचा क्या है? वायु से भी तीव्र चलनें वाला क्या है? और तृणों से भी असंख्य (असीम-विस्तृत) एवं अनन्त क्या है?इसके उत्तर में युधिष्ठिर ने यक्ष से बताया की
"मातागुरुतराभूमेःपिताचोच्चतरंचखात्।
मनःशीघ्रतरंवाताच्चिन्ताबहुतरीतृणात्।।"
अर्थात् माता पृथ्वी से भारी है। पिता आकाश से भी ऊंचा है। मन वायु से भी अधिक तीव्रगामी है और चिन्ता तिनकों से भी अधिक विस्तृत एवं अनन्त है।महाभारत में पिता को आकाश से भी ऊंचा माना है,अथार्त् पिता के हृदय–आकाश में अपने पुत्र के लिए जो असीम प्यार होता है,वह अवर्णनीय है।
जिंदगी की हर एक बात ,आप हमें बताते हो
ख़ुद के जीवन के तज़ुर्बे ,आप हमें सिखाते हो।
सच्चाई और ईमानदारी का हमेशा पाठ पढ़ाते हो
पिता जी आप ही दुनियाँ में मेरें आदर्श कहलाते हो।।

सुपरिभाषित करतें है। हमारें बचपन के अच्छे और सच्चे संस्कार का संचार पिता के द्वारा ही दिया जाता है। पिता द्वारा ही हमें समाज की गरिमा को समझाकर सामजिक व्यक्ति की पहचान दिलाई जाती है। संसार में किसी भी धर्म ,जाति, समुदाय या किसी भी वर्ग का मानव जीवन हो उसके लिए पिता का महत्व सभी रिश्तों में श्रेष्ठ होता है। क्योंकि पिता के जीवन का एकमात्र उद्देश्य होता है ख़ुद के बच्चों की अच्छी परवरिश करके बच्चों के भविष्य का निमार्ण करना। पिता हमेशा से ही चाहता है की जितनी सफ़लता उसनें प्राप्त की है उससे 10 गुना ज़्यादा सफ़लता उसका पुत्र प्राप्त करें।बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए पिता हमेशा दिन दुगनी और रात चौगनी ईमानदारी से मेहनत करता है इसीलिए तो हमारें पुराणों और धर्मों में कहा गया है की पिता का कद आसमान से भी ऊँचा है और पिता का कंधा पर्वत से भी मजबूत होता है। हमारें धर्म में बताया गया है की जो पुत्र सुबह उठकर अपनें माता-पिता के पैरों को छूता है वह कभी भी भाग्यहीन नही हो सकता और जीवन में हमेशा सफ़लता अर्जित करता रहता है। संपूर्ण संसार को चलाने की जिम्मेदारी है इसलिए ईश्वर परमपिता कहलातें है। ईश्वर हर क्षण विश्व के लिए चुनौती लाता है। पिता भी तो ऐसे ही कठोर नियम बनाकर बच्चों को श्रेष्ठ बनाता है। पिता हमेशा न्यायसंगत होतें है कुछ भी बच्चों को ऐसे ही नही सौंप देते। बल्कि उन्हें इस योग्य बनातें है की वह स्वयं के पैरों में खड़ा हो सके।
धर्मों में माता-पिता का महत्व
इस्लाम में भी माता-पिता की भूमिका को बताया गया है की माता पिता का आज्ञापालन और उनका आदर एवं सम्मान करना, स्वर्ग में प्रवेश करने का कारण है। हिन्दू धर्म के शुभ कार्य के पूर्व हम श्री गणेश जी की प्रार्थना
और पूजा करतें है क्योंकि सर्वप्रथम गणेश जी द्वारा ही माता-पिता स्वरूपी सृष्टि की परिक्रमा करके स्वयं की श्रेष्ठता सिद्ध की तथा माता-पिता को समस्त ब्रम्हाण्ड में सर्वश्रेष्ठ बताया और मायारूपी संसार को माता-पिता के महत्व के विषय में बताया। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य के पूर्व हम श्री गणेश जी की वंदना करता हैं। महाभारत
के वनपर्व में यक्ष-युधिष्ठिर संवाद में भी माता व पिता के विषय में प्रश्नोत्तर हुए हैं जिसमें इन दोनों मूर्तिमान चेतन देवों के गौरव का वर्णन है। यक्ष युधिष्ठिर से प्रश्न करते हैं कि
"कास्विद्गुरुतराभूमेःस्विदुच्चतरंचखात्।
किंस्विच्छीघ्रतरंवायोःकिंस्विद्बहुतरंतृणात्।।"
अर्थात् पृथ्वी से भारी क्या है? आकाश से ऊंचा क्या है? वायु से भी तीव्र चलनें वाला क्या है? और तृणों से भी असंख्य (असीम-विस्तृत) एवं अनन्त क्या है?इसके उत्तर में युधिष्ठिर ने यक्ष से बताया की
"मातागुरुतराभूमेःपिताचोच्चतरंचखात्।
मनःशीघ्रतरंवाताच्चिन्ताबहुतरीतृणात्।।"
अर्थात् माता पृथ्वी से भारी है। पिता आकाश से भी ऊंचा है। मन वायु से भी अधिक तीव्रगामी है और चिन्ता तिनकों से भी अधिक विस्तृत एवं अनन्त है।महाभारत में पिता को आकाश से भी ऊंचा माना है,अथार्त् पिता के हृदय–आकाश में अपने पुत्र के लिए जो असीम प्यार होता है,वह अवर्णनीय है।
जिंदगी की हर एक बात ,आप हमें बताते हो
ख़ुद के जीवन के तज़ुर्बे ,आप हमें सिखाते हो।
सच्चाई और ईमानदारी का हमेशा पाठ पढ़ाते हो
पिता जी आप ही दुनियाँ में मेरें आदर्श कहलाते हो।।
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