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तनहा सा छोड़ गई तुम
तन्हाई है साथ मेरे
याद रखोगी ना तुम
दूर जानें के बाद मेरें
अपनीं यादें देके गई हो
साथ मेरें यादों की बारात
आँखों में आँसू के समंदर
कैसे रोकूँ अपनें जज़्बात
दिल को अब कैसे समझाऊँ
तेरे बिन कैसे रह पाऊँ
याद तेरी जो आएगी
कैसे अब तुझसे मिल पाऊँ
रात अँधेरी आज हुई है
जानें कब होगी सुबह
उम्मीदों की किरणे निकलें
ख़ुदा से है मेरा आग्रह.....
(मेरा ज़िक्र)
शुभांक शुक्ला
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