Wednesday, 25 October 2017

शान्त हुई ठुमरी की मधुर तान

बनारस की मिट्टी में जन्म लेकर विश्वभर में ठुमरी संगीत को पहचान दिलाने वाली प्रख्यात शास्त्रीय गायिका पदमविभूषण गिरिजादेवी का मंगलवार की रात कोलकाता के निजी अस्पताल में निधन हो गया। बताया जा रहा है मंगलवार की सुबह 11:30 बजे सीेने में दर्द की शिकायत होने से कोलकाता के बीएम बिरला हार्ट रिसर्च सेंटर के आईसीयू में भर्ती कराया गया था। वंहा इलाज के दौरान रात के करीब 8:55 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। 88 वर्ष की गिरिजादेवी ने 68 वर्ष शास्त्रीय संगीत में दिये थे। भूमिहार जमीदार रामदेव रॉय के घर में 8 मई 1929 को घाटो के शहर वाराणसी में जन्मी थी। उनके पिता हारमोनियम बजाया करते थे और प्राम्भिक शिक्षा उन्होंने अपने पिता से ली फिर 5 साल की उम्र से गायक और सारंगी वादक सरजू प्रसाद मिश्रा से ख्याल  और टप्पा गायन की शिक्षा लेना शुरू की। गिरिजादेवी ने 9 वर्ष की आयु में फ़िल्म याद रहे में अभिनय किया था और साथ-साथ संगीत की विभिन्न शैलियों की पढाई भी जारी रखी थी। गिरिजा देवी ने गायन की सार्वजनिक शुरुआत 1949 में ऑलइंडिया रेडियो इलाहाबाद पर की थी। 1990 के दशक के दौरान बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संगीत संकाय के एक सदस्य के रूप में काम किया, और उन्होंने संगीत विरासत को संरक्षित करने के लिए कई छात्रों को पढ़ाया। गिरिजा देवी को ठुमरी की रानी के रूप में माना जाता है। गायिका के क्षेत्र में ऐतिहासिक योगदान देने के लिए उन्हें वर्ष 1972 में पद्मश्री ,वर्ष 1989 में पद्मभूषण और वर्ष 2016 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। गिरिजादेवी को संगीत नाटक अकादमी द्वारा भी सम्मानित किया गया था। गिरिजादेवी ने अपने जीवन वृतांत में जिन्दा शहर बनारस के अटूट प्रेम को दर्शाया और कहा था कि " गंगा तट पर बसा बनारस दुनिया का प्राचीन व जीवन्त शहर है।" उन्होंने बचपन की यादों को जीवन वृतांत में बताया कि हम गंगा नदी के किनारे दोस्तों के साथ घंटो तक खेलते-खेलते संगीत का अभ्यास किया करते थे। उनका मानना था कि गंगा के किनारे से किया गया अभ्यास ही ठुमरी संगीत को विश्वभर में लोकप्रिय बनाया है। गिरिजादेवी के 85वें जन्मदिन पर उनके मुरीदों ने छहः नवम्बर 2014 को बनारस के आईपी माल में उन्हें एक फिल्म का उपहार दिया। ढाई घन्टे के फ़िल्म में उनके जन्म से लेकर अब तक के सफर को संजोया गया। संगीत परिषद काशी व स्वरांगना ललित कला केंद्र के संयोजन में पाँच दिवसीय कार्यक्रम किया गया। जिनमे गिरिजादेवी के सुरो पर बिरजू महाराज थिरके। हरिहरन ने सुर मिलाया,अमजद अली खां व किशोरी अमोनकर ने भी प्रस्तुति दी थी। उन्हें भारत रत्न देने की आवाज़ भी उठी। स्वरांगना ललित कला केंद्र के सुरेंद्र मिश्र सीलू के अनुसार 90 वें जन्मदिन पर बड़े स्तर पर उत्सव की तैयारी की जा रही थी, मगर यह ईश्वर को मंजूर नही था।
उनके निधन पर पद्मभूषण पं. राजन मिश्र,पं. साजन मिश्र, पं. छन्नूलाल मिश्र, पद्मश्री सोमा घोष, पं. शिवनाथ मिश्र, राजेश्वर आचार्य, प्रो. ऋत्विक सान्याल समेत संगीत जगत की हस्तियों ने गहरा शोक जताया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गिरिजा देवी के निधन पर दुख जताते हुए ट्वीट किया, ''गिरिजा देवी का संगीत हर पीढ़ी को आकर्षित करता था. भारतीय शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाने के लिए उनकी कोशिशें हमेशा हमारी यादों में रहेंगी.'' 
लता मंगेश्कर ने गिरिजा देवी के साथ उनका एक बहुत पुराना फोटो ट्वीट किया और लिखा कि "महान शास्त्रीय और ठुमरी गायिका गिरिजा देवी जी हमारे बीच नहीं रहीं ये सुनके मुझे बहुत दुख हुआ। हमारे उनके बहुत अच्छे संबध थे। गिरिजा देवी जी बहुत अच्छी महिला थीं। मैं उनको श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।"

जावेद अख्तर ने ट्वीट किया, "गिरिजा देवी केनिधन के साथ एक युग का अंत हुआ है. अब ऐसे लोग नहीं होंगे. गिरिजा जी, मेरा आपको सलाम.''

Friday, 20 October 2017

ट्रेन वाला प्यार ( लेखक : शुभांक शुक्ला)

प्रेम कथा
अचानक मेरी नजर एक पुरानी धुँधले फोटो फ्रेम में जा पड़ी जो कई दिनों से बेज़ुबान ठहरे हुए दिवार पर लटका हुआ था,और कुछ दिन पहले ही मेरी मां ने फोटो फ्रेम से फोटो निकाल दी थी। बिना किसी फोटो का लगा यह फ़ोटो फ्रेम बिल्कुल अकेला और तनहा सा लग रहा था। उसे जरूरत थी पुरानी यादों की जो कुछ दिन पहले फोटो के साथ बिताए हुए थे और शायद मुझे भी। फ्रेम भले ही धुंधला हो गया था,लेकिन मेरी यादें अभी भी आईने की तरह साफ है। उसके साथ बिताया हुआ हसीन से भी ज्यादा रंगीन पल जिसके बिना मैं जीने की कल्पना भी नही कर सकता। उसका नाम कल्पना था। मेरे ख़्वाब की कल्पना थी वो.उसकी हँसी जैसे चाँद का मुस्कुराना था। उसका बात करना जैसे मन में प्यारी धुन का बजना था। उसकी आवाज़ में वो नशा था जो किसी को भी आकर्षित करनें में मजबूर कर दें और मुझे भी मज़बूर कर दिया था ,उसका चेहरा देखनें के लिए। 31दिसम्बर साल का अंतिम लेकिन मेरे जिंदगी का प्यारा और यादगार दिन था जब मैं ख़ुद के यादों के शहर बनारस जा रहा था। ट्रेन के s5 कोच के 32 नम्बर सीट में जाते समय कुछ किताबों को हमसफ़र बनाकर उनमें खोया हुआ था तभी मेरें कानो में एक शबनमी आवाज़ आ गिरी ,जिसमें एक प्यार था। वो ऐसा प्यार था जिसकी मुझे कई अरसों से तलाश थी। शबनमी आवाज कुछ ही पल में मेरे दिल में प्यार का महल बना चुकी थी। शीतल आवाज़ में छुपे उस चाँद के चेहरे को देखनें के लिए मन में एक अज़ीब सी तड़प ने जन्म ले लिया था। लेकिन उसकी आवाज उसी कोच के सीट नम्बर 25 से आ रही थी जो की मेरे सीट से बहुत आगें थी। उसकी मद्धम-मद्धम आवाज़ मेरें दिल को सुनाई दे रही थी। मैंने थोड़ी सी हिम्मत के साथ उसके सीट के पास जा पहुंचा। ख़ुद की झुकी पलकों को उठाते हुए उसकी ओर देखनें की कोशिश ही कर रहा था कि वो मुझे अपनी प्यारी आँखों से इशारे करते हुए बोल पड़ी,"क्या आपकी 24 नम्बर की सीट है" लेकिन मेरे कुछ कहने से पहले ही फिर बोली"प्लीज आप ये सीट हमें दे दो मेरी एक  दोस्त 64 नम्बर सीट में बैठी है,मैं उसे यंहा बुला लूँ" । मैंने लड़खड़ाती हुई आवाज़ में माफ़ कीजियेगा मेरी सीट 32 पर है,मैंने आते वक़्त यंहा पर किसी को "लवस्टोरी" नाम की किताब पढ़ते हुए देखा था सोचा मेरे दिल के सबसे करीब ये पुस्तक है मुझे मिल जाती तो मै भी पढ़ लेता और मेरा सफ़र प्यार में कट जाता.उसने मुझसे आँखे चुराते हुए बोली वो किताब मैं ही पढ़ रही थी। और एक भारी से बैग से "लव स्टोरी" को निकालते हुए मेरें हाथों में थमा दी और शरारती अंदाज में बोली मेरा भी ये दिल है ,पढ़कर वापस कर दीजियेगा। उसका किताब का देना जैसे सच में उसके दिल देनें के बराबर था। मेरी धड़कने जोर-जोर से चलनें लगी थी। मेरे आँखों में उससे बात करने की तीव्र इच्छा होने लगी। मैंने कुछ बहाना बनाते हुए उससे कहा मैं यहीं पर बैठकर कुछ कहानियां पढता हूँ फिर आपको वापस कर दूंगा। वो अचानक बोली लेकिन एक शर्त है आप ख़ुद नही पढेंगे बल्कि हम सब को भी अपनी आवाज में सुनाएंगे। शायद वो लंबे सफर को कहानियों के टुकड़ों में जीना चाहती थी। मैंने बिना देर करते हुए उसकी शर्त को मान गया और कहानी सुनाने लगा। कुछ समय कहानी सुनाते-सुनाते हमने एक-दूसरे से बातें की,नाम जानें, और सफर की मंजिल का पता लगाया। और बातें करते करतें कब एक दूसरे के दोस्त बन गए पता ही नही चला। उसके लिए मै दोस्त था लेकिन वो मेरे लिए पहला प्यार थी। उसकी आवाज़ से ही मुझे प्यार हो गया था उस प्यार को मैं मन में ही छुपाये रखना चाहता था क्योंकि मुझे उसकी दोस्ती उम्र भर के लिए चाहिए थी। हम दोनो के बात करते वक्त वक़्त ट्रेन के शोर में एक आवाज सुनाई दी की "90 रूपये में तस्वीर बनवाये-90रूपये में तस्वीर बनाये" और मैंने तस्वीर बनाने वाले को पास बुलाकर हम दोनो की तस्वीर बनवाई। वो तस्वीर मेरी याद ही नही बल्कि मेरी जिंदगी की हसीन पल था जिसे मैंने तस्वीर में कैद कर लिया था। जिसे मैंने घर पर आकर फोटोफ्रेम में सजाकर रख लिया था। उसकी याद आज भी मेरे साथ है और वो प्यार भी। लेकिन कुछ दिन पहले ही मेरे मना करने के बाद भी मेरी मां ने मेरे रिश्ता बगल के शहर में कर दिया था और मुझे देखने के लिए लड़की वाले आ रहे थे शायद इसी लिए माँ ने फोटोफ्रेम से तस्वीर निकाल दी थी। वो दिन आज ही था,जब मेरे घर में खुशियों का माहौल होने के बावजूद भी और चाहकर भी मैं खुश नही था। लड़की वाले आ चुके थे। माँ मुझे आवाज लगा रह थी लड़की वालो के पास बैठने के लिए लेकिन मेरे कदम वहां तक जा न सके कुछ देर बाद माँ मेरे पास आई और शरारती अंदाज में बोली की लड़की वाले लड़की की फोटो लाएं है मुझे तो लड़की पंसद है और घर के सभी लोगो को भी पंसद है। तुम भी देख लो और पंसद ना हो तो बोल दो हम मना कर देंगे।
मेरे   ड्रेसिंग टेबल के पास रख कर चली गई।अचानक मेरी नजर जैसे ही फोटो में पड़ी तो मुझे माँ के शरारती अंदाज का पता चला की जो कई दिनों से मेरी शादी कराना चाहती थी आज क्यों लड़की की फोटो पसंद न आने पर शादी से मना करने के लिए कही थी। क्योंकि उनको पता था कि ये उसी लड़की की तस्वीर थी जो दीवार पर तन्हा लटके फोटो फ़्रेम में थी। हाँ वो कल्पना थी जिसकी शादी की बात मेरे लिए चली थी।

" कहतें है सच्चे दिल से माँगो तो हर दुआ क़बूल होती है,मेरी भी दुआ क़बूल हुई है"

                                                                                                                              शुभप्रेम(शुभांक शुक्ला)

Monday, 16 October 2017

यादों की बारात

    
  -------------------------------^---------------------------------

                              तनहा सा छोड़ गई तुम
                         तन्हाई है साथ मेरे
                         याद रखोगी ना तुम
                        दूर जानें के बाद मेरें
                       अपनीं यादें देके गई हो
                       साथ मेरें यादों की बारात
                       आँखों में आँसू के समंदर
                       कैसे रोकूँ अपनें जज़्बात
                       दिल को अब कैसे समझाऊँ
                       तेरे बिन कैसे रह पाऊँ
                       याद तेरी जो आएगी
                       कैसे अब तुझसे मिल पाऊँ
                       रात अँधेरी आज हुई है
                       जानें कब होगी सुबह
                       उम्मीदों की किरणे निकलें
                       ख़ुदा से है मेरा आग्रह.....
                                                            (मेरा ज़िक्र)
                                                           शुभांक शुक्ला


"माँ" तू मुझसे इतना क्यू प्यार करती है

 ____________"माँ"___________

"माँ" तू मुझसे इतना क्यू प्यार करती है
दुआओं में भी मेरी फरियाद करती है
मेरी फ़िक्र और कोई ,क्यू नही करता
तू ही क्यू मेरी फ़िक्र, दिन रात करती है..

माँ तू हरवक्त मेरा इतना क्यू ख्याल रखती है
घर से निकलते ही तू लौटने की राह तकती है
माँ तेरा दिल किसी जलनिधि (सागर)से कम नही
ईश्वर से प्रार्थना में भी मेरी ख़ुशी की मांग करती है
माँ तू मुझसे इतना क्यू प्यार करती है.....

माँ तू भूखा होकर भी, मुझे भूखा क्यू नही रखती है
दुःखी होकर भी ,मुझे दुःखी क्यू नही करती है
मेरी परवाह और कोई,क्यू नही करता
तू ही क्यू मेरी परवाह ,दिन रात करती है..

माँ तू मुझसे इतना क्यू प्यार करती है
जो दुआओं में भी मेरी फरियाद करती है।
     
                                                                                      मेरा ज़िक्र
                                                                                      (शुभांक शुक्ला)





क्यों असफल रही भारत सरकार लापता विमान खोजनें में?


ज का दिन इतिहास में सुनहरे अक्षरों से संयोजित कर संविधान में दर्ज किया गया है। भारत का राष्ट्रीय ध्वज 22 जुलाई 1947 भारत के संविधान द्वारा अपनाया गया था। जिसे हम भारतीय "राष्ट्रीय झंडा अंगीकरण दिवस" के रूप में मनाते है। जँहा भारत का संविधान 22 जुलाई को गौरव के साथ स्वर्णिम दिन के रूप में याद करते हैं वहीं दूसरी दिशा में भारत के 29 परिवारों के द्वारा इसी दिन (22 जुलाई ) को काले दिन के रूप में 1 साल से याद किया जा रहा है। क्योंकि 22 जुलाई 2016 को 29 परिवारों ने अपने घर के लाल को लापता पाया था। माँ ने अपनें बेटे ,बहन ने भाई ,पिता ने अपने बेटे,बेटे ने अपने पिता और पत्नी ने अपनें पति से दूर जाकर देश सेवा के लिए भारतीय वायुसेना विमान AN 32 से उड़ान भरी थी लेकिन उड़ान इतनी लम्बी हुई की परिवार से लेकर भारत सरकार भी इस उड़ान तक पँहुच नही पाया। भारतीय वायुसेना का AN 32 विमान शुक्रवार 22 जुलाई 2016 को चेन्नई से पोर्ट ब्लेयर लौट रहा था जो सप्ताह में तीन बार कूरियर लेकर जाता था। लेकिन तमिलनाडु के ताम्बरम से अंडमान के लिए सुबह साढ़े आठ बजे उड़ान भरने के घण्टे भर के भीतर ही राडार से गायब हो गया ।

एएन-32 ने सुबह 8.30 बजे उड़ान भरी. इसे पोर्ट ब्लेयर 11.30 बजे पहुंचना था. लेकिन ठीक आधे घंटे बाद ही 9.00 बजे इसका एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल (एटीसी) से संपर्क टूट गया। और संपर्क इस तरह टूटा की आज तक उस विमान से किसी भी तरह का संपर्क नही जुड़ पाया। लेकिन भारत देश की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि
भारत के राजनेता हर छोटे मुद्दे पर अपनी आवाज़ को बुलंदी के साथ उठाते है। देश के लिए अहित में किये जाने वाले बिल के लिए संसद में नेता हंगामा करता है लेकिन विमान लापता होने के बाद उन्तीस जवानों के लिए संसद में किसी नेता ने आज तक आवाज नही उठाई। अपनी-अपनी पार्टियों को देशप्रचलित करनें के लिए पार्टी कार्यकर्ता सड़क आंदोलन हर दिन करतें है लेकिन जब देश सेवा कर रहें जवानों की बात आती है तो किसी भी पार्टी के कार्यकर्ता सड़क पर नही दिखते। ये बात तो आईने की तरह साफ़ है अगर ये 29 जवान, नेताओं के वोटबैंक होते तो अभी तक प्रत्येक पार्टी द्वारा सहानभूति का पिटारा लेकर 29 जवानों के परिजनों से मिलकर देश में विमान लापता होने पर जमकर भाषणबाजी की जा रही होती। लेकिन किसी भी पार्टी का इन 29 जवानों से वोटबैंक और निजी स्वार्थ ना होने के कारण आजतक AN-32 लापता विमान को मुद्दा भी नही बनाया गया। लेकिन रक्षा मंत्री होनें के कारण मनोहर पर्रिकर ने इस संबंध में विमान के लापता होते ही छह दिन पश्चात राज्य सभा में जानकारी दी थी और कहा था "विमान में संवेदनशील मौसम की जानकारी देने वाली रडार प्रणाली मौजूद थी. विमान चालक ने बिजली और तेज बारिश के कारण विमान को दाहिने ले जाने की अनुमति मांगी लेकिन तुरंत यह बायीं ओर मुड़ गया और 23,000 फ़ीट की ऊंचाई से समुद्र में गिर गया. लेकिन उसके बाद किसी तरह की कोई तत्काल सूचना नहीं मिली. रडार से ओझल होते हुए यह तुरंत लापता हो गया. ये बात सबसे परेशान करने वाली है."।लेकिन उससे भी ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि हमारे द्वारा चाँद और मंगल में तिरंगा लहराया गया है लेकिन भारत के तिरँगे की शान को बचाये रखने वाले जवानों के लापता होनें के एक साल बाद भी पता नही लगाया जा सका है। इसरो से लेकर नासा तक AN-32 को खोज रहे सभी सेटलाइट की लाइन अब डेडलाइन हो गई है। हमारे देश के लिए इससे बुरा दिन और क्या हो सकता है कि विमान की एक पिन तक को ढूंढने में हमारा देश पूरी तरह असफ़ल रहा। भारत सरकार ने विमान खोज पर अपनी रोक जरूर लगा दी लेकिन उन परिवारों का क्या जो आज भी अपनें बेटे-बेटियोँ का राह ताकते है और भगवान से प्रार्थना करते है कि कोई चमत्कार हो जाये और हमारे घर का चिराग़ फिर जल उठे।

 AN-32 विमान लापता होने की हेडिंग मैन आज से एक साल पहले किसी अखबार में पढ़ी थी लेकिन मेरे मित्र अश्वनी झा ने बताया कि मेरें मामा राजीव रंजन जोकि बिहार के मधुबनी के रहनें वाले थे वो भारतीय वायुसेना में फ्लाइट इंजीनियर थे और 22 जुलाई 2016 में लापता हुए एएन-32 विमान में राजीव रंजन बतौर फ्लाइट इंजीनियर मौजूद थे।

उनके पत्नी और बच्चे कोयम्बटूर में रहते हैं और माता-पिता,भाई-बहन,बुआ सभी एक साथ सौरठ में रहते है। लेकिन जबसे पता चला की उनके वास्तव के नायक जिस विमान में थे वो विमान लापता है तब से आजतक उनके वापस आने की उम्मीद में प्रत्येक दिन घर के बाहर इंतजार करतें रहते है। लेकिन उनके परिवार को भारत सरकार से अभी तक विमान की खोज संबंध में एक भी संदेश नही आया है।
इस तरह के 28 परिवार और भी हैं जो हरदिन इसी उम्मीद से सुबह उठते है कि शायद आज का दिन कोई शुभ समाचार मिलें की हमारे घर का लाल जीवित है। हरियाणा के रोहतक से पंकज नांदल जोकि एएन-32 में को-पायलट थे,उनके बूढ़े पिता कृष्ण नांदल भी इंतजार की दीवारें हर दिन खड़े करतें है। बिहार के आरा जिले का ऐसा परिवार जिसके घर का प्रत्येक सदस्य भारतीय सेना में है उनके घर की शान अखिलेश इंडियन आर्मी में
टेक्नीशियन के पद में कार्यरत थे। उत्तरप्रदेश गाजीपुर के छेदी यादव व उत्तरप्रदेश के देवरिया के रघुवीर वर्मा भी एएन-32 में तैनात थे। उधमपुर के 26 वर्षीय लांसनायक लक्ष्मीकांत त्रिपाठी तथा पंजाब के 23 वर्षीय नवजोत सबसे कम उम्र के जवान थे। जब भारत के चहुँओर बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ का नारा गूँज रहा हो वंही दूसरी ओर हरियाणा की 26 वर्षीय बेटी लेफ्टिनेंट दीपिका भी लापता विमान एएन-32 में उपस्थित थी। दीपिका ने 2013 में एयरफोर्स में लेफ्टिनेंट पद पर आसीन हुई थी और 22 नवम्बर 2015 को शादी करके किसी घर की लक्ष्मी भी बनी थी लेकिन आजतक अपनें घर मे वापस नही आ सकी। इस तरह के ना जानें भारत में कितने परिवार है जो हरदिन बेबसी,दर्द में जी रहें है।

विमान के लापता होने के क्या कारण हो सकतें है?

1.क्या 26 साल पुराना होने की वजह से ये दुर्घटनाग्रस्त हो गया ?
2. क्या विमान ऑटोपायलट मोड में था जिससे इसका नियंत्रण बिगड़ने से यह बंगाल की ख़ाड़ी में डूब गया?
3.समुद्र में डूबने के बाद विमान का कोई सुराग क्यों नहीं मिल रहा?
4. क्या विमान का बीकन इसलिए काम नहीं कर रहा था क्योंकि विमान काफी पुराना था?
5.अब तलाशी और बचाव अभियान दल के सामने और क्या विकल्प बचे हैं?

अगर तलाशी और बचाव अभियान के अगर कोई भी विकल्प नही बचें तो क्या भारत सरकार द्वारा 29 जवानों को "शहीद" का दर्जा दिया जाएगा?
प्रधनमंत्री मोदी ने भारत के तिरँगे को विश्व में लहराया है लेकिन आजतक एएन-32 के विषय मे कभी भी ज़िक्र नही किया। मोदी के कार्यकाल को भले ही स्वर्ण वर्षों की तरह याद किया जाए लेकिन विमान खोज ना पानें का दाग ताउम्र उनके साथ जुड़ा रहेगा।


कर क्राँति से एक देश ,एक टैक्स तथा 1 मार्केट

‌हमारें देश में कई दिनों से एक मुद्दा हर एक की ज़ुबान से सुनने को मिल रहा है। कोई कंही भी खड़ा हो जाये यह मुद्दा इतने जोरों-सोरों से चल रहा है जैसे कोई नई क्रांति  आ गई हो। जो व्यक्ति इस मुद्दे की आपस पे चर्चा कर रहें हैं उनमें से कई लोगों को हकीकत में इस मुद्दे की परिभाषा भी नही पता है हालांकि की मैं भी उनमें से एक हूँ। जी मैं बात कर रहा हूँ GST जैसे ऐतिहासिक मुद्दों की। विभिन्न प्रकार के समूह आपस में GST पर कई प्रकारों से चर्चा कर रहें है। जिनमें से कई लोग GST का फुल फ़ॉर्म अजीबोगरीब बता रहें है तथा व्हाट्सअप,फेसबुक जैसे कई सोशल मीडिया संस्थानो में GST का फुल फॉर्म गई सरकार तुम्हारी,गन्दा सरकारी टैक्स ,गरीब शोषण टैक्स इत्यादि परिभाषाओं द्वारा चलाया जा रहा है जोकि पूर्णतः असत्य है। ज़्यादातर मीडिया चैनल कई दिनों से अपनी रिपोर्टिंग केवल जीएसटी पर दिखा रहें हैं। हमारे भारतीय एंकर कई दिनों की बेहद मेहनत ,खोजबीन और बड़े -बड़े चार्टेड एकाउंटेंट तथा इकोनॉमी सिलेबस समझने के बाद भी हमें समझाने में असफल रहें हैं। क्योंकि हमनें जब जीएसटी का फुल फ़ॉर्म  गूगल तथा किताबों पर सर्च किया तो गुड्स एंड सर्विस टैक्स द्वारा उल्लेखित किया जा रहा है लेकिन 30 जून की अंतिम रात व् 1 जुलाई के पहले सेकंड में भारत के माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा भाषण में जीएसटी का फुल फ़ॉर्म गुड एंड सिम्पल टैक्स बताया गया।  हिन्दी में जीएसटी को "वस्तु एवं सेवा" कर कहतें है लेकिन कई किताबोँ में अब इसकी परिभाषा बदलती हुई नजर आएगी क्योंकि माननीय प्रधानमंत्री जी के अनुसार आप इसे "वस्तु एवं साधारण कर" कह सकतें है।

मैंने सुबह जब अखबार उठाया तो दैनिक भास्कर के फ्रंट पेज पर "कर क्राँति "  जैसे नए शीर्षक से परिचित हुआ तथा दैनिक भास्कर द्वारा साफ़ भी किया गया की  शीर्षक पढ़कर चौकिएं । क्योंकि ये हेडलाइन
उत्सव का प्रतीक भी है और इंतजार का सूचक भी । 17 तरह के टैक्स और 23 तरह के सेस को मिलाकर एक जीएसटी निश्चित तौर पर आज़ादी के बाद की सबसे बड़ी कर (टैक्स) क्रांति है। दूसरी ओर सरकार जीएसटी के जरिये बड़े आर्थिक बदलाव का दावा भी कर रहीं है। देश ऐसे बदलाव की अपेक्षा भी कर रहा है। इसलिये सरकार, करिये क्राँति..... देश बेसब्री से इस बदलाव का इंतजार करेगा....।

कर क्राँति 30 जून रात 12 बजे संसद के सेन्ट्रल हॉल में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी व माननीय मोदी जी द्वारा एक क्रांतिकारी बटन दबाकर लांच किया गया। मोदी जी ने कहा ये किसी एक पार्टी की नहीं बल्कि हम सबकी साझी विरासत है लेकिन मैं इसे हास्य रूप में कहूँ तो यह कथन पूर्णतः असत्य है क्योंकि आज़ादी के बाद पहली बार संसद के किसी बड़े कार्यक्रम में काँग्रेस पूरी तरह से ग़ायब रही। भारत के हर राज्य को 500 तरह के टैक्स से  आज़ादी मिल रही है। आप इसे आर्थिक आज़ादी भी कह सकतें है। क्योंकि 17 साल की कड़ी मेहनत के बाद
इस क्राँति को देश में लागू किया गया है।
                   
 जीएसटी लागू करनें वाला भारत 161 वां देश है। सबसे पहले फ़्रांस ने 1954 में यह टैक्स प्रणाली अपनाई थी। भारत नें जीएसटी का ड्यूल मॉडल अपनाया है। कनाडा के बाद यह मॉडल अपनाने वाला भारत दूसरा देश है।आज शनिवार सुबह से 1 देश,1टैक्स और 1 बाज़ार यानि जीएसटी अमल में आ जायेगा। इस ऐतिहासिक समारोह में जंहा एक हज़ार से ज़्यादा वीआईपी शामिल हुए,वंही काँग्रेस ,ममता और लालू की पार्टी दूर रही। लांचिंग में टाटा सहित 1000 से ज़्यादा वीआईपी मौजूद थे पर लता मंगेशकर और अमिताभ बच्चन समारोह में शामिल नही हुए है। जबकि अमिताभ बच्चन को जीएसटी का ब्रांड एम्बेसडर बनाया गया था। मोदी जी ने गीता से तुलना और चाणक्य से प्रेरणा की बात भी अपनें भाषण में की उन्होंने कहा की गीता के 18 अध्याय हैं। संयोग देखिये की जीएसटी कॉउंसिल की 18 बैठकों के बाद आज यह लागू हो रहा है। चाणक्य के श्लोक का हवाला देते हुए कहा की कोई काम कितना भी कठिन क्यों न हो, अथक परिश्रम से इसे हासिल किया जा सकता है।

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जी ने कहा की जीएसटी से बहुत संतोष मिला है। मुझे उम्मीद थी कि जीएसटी लागू होगा। यह मेरें लिए ऐतिहासिक मौका है। क्योंकि वित्त मंत्री रहते मैंने इसके लिए काफ़ी पहल की थी।

जीएसटी लागू करनें के उद्देश्य

जीएसटी लागू होनें के बाद सभी राज्यों में एक समान कर लगेगा। इससे राज्यों के बीच होनें वाली अस्वस्थ प्रतियोगिता रुकेगी। जीएसटी का उद्देश्य माल और सेवाओं के प्रोडक्शन और डिस्ट्रीब्यूशन लागत पर करों के दोहरे प्रभाव को खत्म करना है। टैक्स पर टैक्स के व्यापक प्रभावों को ख़त्म कर उसे एक टैक्स में बदलनें से बाज़ार में वस्तुओं और सेवाओं की प्रतिस्पर्धा में काफ़ी सुधार होगा,जिससे जीडीपी में बढ़ोत्तरी होगी।

मोदी जी नें क्यों चुना ससंद सेंट्रल हॉल

मोदी जी ने GST लांच करनें के लिए संसद का सेंट्रल हॉल इसलिये चुना क्योंकि आज से 71 वर्ष पूर्व 9 दिसंबर 1946 को इसी सेंट्रल हॉल में संविधान सभा की पहली बैठक हुई थी तथा 14 अगस्त 1947 जब रात 12 बजे तब देश की आज़ादी की घोषणा हुई थी। तीसरा ऐतिहासिक फैसला 26 नवम्बर 1949 में इसी सेंट्रल हॉल में देश को संविधान को स्वीकार किया गया था।
जीएसटी लागू होनें के असर से परेशानी कम होगी और कारोबारी टैक्स देनें के लिए प्रोत्साहित होंगें। समान पर दर समान होगी तो महँगाई और कालाबाज़ारी पर रोक लगेगी। टैक्स ढाँचा मजबूत होगा। मल्टीपल टैक्स फाइलिंग ख़त्म होगी और टैक्स अदा करनें के लिए कई जगह दस्तावेज नही भरनें होगें। पहले 17 टैक्स,23 सेस यानि टैक्स पर टैक्स था पर अब 1 जीएसटी और टैक्स पर टैक्स ख़त्म हो जायेगा । जीएसटी तीन प्रकार की है पहला SGST जिसे हिंदी में राज्य वस्तु एवं सेवा कर कहते हैं इस कर को राज्य सरकार वसूलेगी दूसरा CGST जिसे हिन्दी में केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर कहतें है। इस कर को केंद्र सरकार वसूलेगी और तीसरा कर है IGST जिसे हिन्दी में एकीकृत एवं सेवा कर कहतें है। एक राज्य से दूसरों राज्यों में वस्तुओं एवं सेवाओं की बिक्री में यह कर लगेगा। 1 जुलाई से टैक्स के सिर्फ चार स्लैब- 5,12,18 और 28 % होंगें। जम्मू कश्मीर में अभी जीएसटी लागू नही है यानि जो भी समान यँहा से आएगा या जायेगा उस पर डबल टैक्स अभी भी लगेगा।



जब GST जैसे विशाल शब्द पर मैंने विश्लेषण किया तो मुझे इस बात पर विश्वास अवश्य हुआ की मोदी जी द्वारा लिया गया यह स्वर्णिम फैसला देश के लिए लाभदायक सिद्ध होगा और देश को विकास के नए शिखर पर विराजमान करेगा।


मोहम्मद अय्यूब पंडित के मौत का जिम्मेदार कौन?


पूरे विश्व सम्राट में सभी धर्मों को अभिमान के साथ अपनाने वाला लोकतांत्रिक देश भारत है। यँहा पर सभी धर्मों को अपनाया ही नही जाता अपितु सभी धर्म एक दूसरे का सम्मान भी करते हैं। पूरे विश्व में एकलौता ऐसा देश भारत है जंहा पर 80 प्रतिशत हिंदुओं पर शासन के लिए मुस्लिम राष्ट्रपति नियुक्त किया जाता है और अपनी जिम्मेदारी  बखूबी  निभाता है। केवल भारत में ही 20 से ज्यादा भाषाओँ का प्रचलन है जिसमें हिन्दी, उर्दू,बँगाली
और ना जाने कितनी भाषाओँ का संगम एक ही देश में होता है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत में हर जगह लोकतंत्र की पूजा की जाती है पूरी दुनिया लोकतंत्र को मानती है लेकिन कुछ अंश में  छुपे गद्दारों के कारण अब कश्मीर में भीड़तंत्र का कब्ज़ा हो गया है। इस भीड़ में आतंकवादी से लेकर पत्थरबाज और अलगाववादी से पीड़ित कुछ बुज़दिल लोग शामिल है। और इसी भीड़तंत्र के होनें से एक बार फिर भारत के बेटे मोहम्मद अय्यूब को निशाना बनाया गया और उसकी हत्या कर दी गई। इस तरह की वारदात जम्मू-कश्मीर जैसे जन्नत में भीड़तंत्र के कब्ज़ा होने का इशारा करती है। आज से 64 वर्ष पूर्व 23 जून 1953 को श्रीनगर में इसी प्रकार की दुःखद घटना का सामना करना पड़ा था। एक राष्ट्रभक्त की रहस्यमयी तरीके से हत्या कर दी गई थी। इसी व्यक्ति द्वारा भारत में पहली बार अनुच्छेद 370 का विरोध किया गया था, उस समय भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 में यह प्रावधान था की कोई भी व्यक्ति भारत सरकार से परमिट लिए बिना जम्मू कश्मीर की सीमा में प्रवेश नही कर सकता है लेकिन इसका विरोध करने वाले उस देशभक्त ने जम्मू-कश्मीर को भारत का एक अभिन्न अंग बताया था और यह भी कहा था की देश में दो विधान,दो प्रधान,दो निशान नही चलेंगे। इस देशभक्त का नाम श्यामा प्रसाद मुखर्जी था जोकि भारत के प्रख्यात शिक्षावेद चिंतक,राजनेता और भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारत के अनुच्छेद 370 को देश की एकता और अखण्डता के लिए बहुत बड़ा ख़तरा मानतें थे। उनकी ये सोच वर्षों पुरानी है लेकिन मोहम्मद अय्यूब की हत्या को देखकर यह अवश्य कहा जा सकता है की उनकी ये सोच शत् प्रतिशत सत्य थी।  23 जून आधी रात श्रीनगर में डीएसपी मोहम्मद अय्यूब को कुछ हिंसक भीड़ ने अपना शिकार बना लिया और उसे पीट-पीट कर मार डाला। यह वारदात उस वक्त की है जब मोहम्मद अय्यूब पंडित कश्मीर की सबसे बड़ी मस्जिद जामिया की सुरक्षा में तैनात थे। हिंसक भीड़ ने पत्थरों से मार-मार कर हत्या ही नही की अपितु मोहम्मद अय्यूब के शव को 300 मीटर से भी ज़्यादा घसीटते रहे। मोहम्मद अय्यूब पंडित हमले से पहले नमाज़ पढ़कर निकले थे और मस्जिद की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मस्जिद में आने-जानें वालों की तस्वीर ले रहे थे लेकिन वंही पास में खड़े कुछ असामाजिक तत्व पत्थरबाजों ने अय्यूब से इस बात की बहस करनें लगें की तुम मुसलमान नही हो बल्कि एक हिन्दू हो जो मस्जिद की मुखबिरी कर रहा है। और उन्ही गद्दारों में से एक ने चिल्ला कर भीड़ को इकट्ठा कर लिया की एक हिन्दू मस्जिद की मुखबिरी कर रहा है और 150 से भी ज़्यादा मुसलमान एकत्रित हो गए और मोहम्मद अय्यूब पर हमला कर दिया।
जब ये सब चल रहा था तब अलगाववादी नेता मीरवाईज उमर फारुख मस्जिद के अंदर लोगों को तक़रीर दे रहे थे । ये वही अलगाववादी नेता है जो हाल हीं में भारत-पाकिस्तान के मैच पर पाकिस्तान के जीतनें पर बधाई देता है और पटाखें फोड़ कर उत्सव मनाता है। मोहम्मद अय्यूब के हत्या की पुष्ठी होनें के बाद साफ हो गया है की अय्यूब पर जिन्होंने हमला किया था वें सब मीरवाईज के कार्यकर्ता थे। जिन्होंने ख़ुद के मुस्लिम भाई को इस तरह पीट-पीट कर मार डाला है की मोहम्मद अय्यूब के शव को आसानी से पहचाना भी नही जा सकता था अगर आप इस शव को देख लेते तो आपकी रूह काँप उठती। आप बिल्कुल यह कह सकतें है जैसे हमारें जवानों को पाकिस्तानी आतंकवादी द्वारा जिस तरह बेदर्दी से जवानों के अंगो को काट दिया जाता है कुछ इसी प्रकार से हिंसक भीड़ ने अय्यूब को भी मारा है। जरा सोचिये जब 3 दिनों बाद रमजान और ईद का त्योहार आनें वाला हो और उस घर का चाँद हमेशा के लिए छुप गया हो तो उस परिवार के लिए इससे बुरा दिन और क्या हो सकता है।

‌मोहम्मद अय्यूब की भतीजी ने कहा की " हमारें बेकसूर अंकल को मारा इन्होंने,हमारें ईमानदार अंकल को मारा। हम इंडियन है,हाँ हम इंडियन है। इंडियन है हम । हाँ हम इंडियन है....

  अय्यूब के रिश्तेदार ने भी कहा की "मीरवाईज से जाकर पूँछो। हमारा जिगर जल रहा है। कश्मीरी-कश्मीरी को मार रहा है,मुसलमान-मुसलमान को। कँहा गया तुम्हारा गिलानी"

पूरी घटना को देखकर वंहा की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने कहा की " अगर पुलिस के सब्र का पैमाना छलका तो लोगों के लिए बहुत मुश्किल होगी।"


कश्मीर घाटी में पिछले 4 महीनों में आतंकवादी हमलों में राज्य के 16 से ज्यादा पुलिसकर्मी शहीद हुए है। 16 जून को अंनतनाग में जम्मू कश्मीर पुलिस के 6 जवान शहीद हुए थे। जिनमें 32 वर्ष के फ़िरोज अहमद डार भी शामिल थे।


 पिछले माह 22 वर्ष के लेफ्टिनेंट उमर फयाज के शरीर को भी,आतंकवादियों ने गोलियों से छलनी कर दिया था। इन सुरक्षा कर्मियों को देश के संविधान में पूर्णतः विश्वास था, देश के हित में काम कर रहे थे इसलिए इन्हें मार दिया गया। डीएसपी अय्यूब की हत्या को भीड़ का हमला मानकर रफ़ा-दफ़ा नही किया जा सकता है। भीड़ को किसी की हत्या करनें का लाइसेंस नही दिया जा सकता है इस भीड़ पर कड़ी कार्यवाही होनी ही चाहिये.

अब पूरी दुःखद घटना पर विश्लेषण कीजिए और मेरें अंतर्मन में जो सवाल तूफ़ान फैला रहें है उन सवालों पर आप भी आत्ममंथन कीजिए...
1.अगर डीएसपी मोहम्मद अय्यूब हकीकत में हिन्दू होता तो क्या कुछ असामाजिक तत्व द्वारा हिसंक भीड़ का नाम देकर मस्जिद के बाहर उस हिन्दू को मारा जाना वाज़िब होता ?
2. अगर मोहम्मद अय्यूब अपनें मुस्लिम होनें का सबूत देनें में सफ़ल होते क्या हिसंक भीड़ उनकी हत्या ना करती?


     धर्म की बात करके क्यों एक दूसरे को डर देते हैं
धर्मों की बात भुलाकर चलो इंसानियत की बात कर लेतें हैं।
                                                                             (शुभांक शुक्ला)
                        




मानव जीवन में पिता की महत्वपूर्ण भूमिका

पृथ्वी में दिखाई देनें वाले भगवान हैं माता-पिता

‌ जब भी हमारें मनुसमृति में पिता शब्द का ज़िक्र होता है तब-तब हमारें आसपास स्वाभिमान ,संघर्ष,ईमानदारी,मान-सम्मान,त्याग,प्रतिष्ठा,विवेक ,आदर्श ,जिम्मेदारी जैसे महत्वपूर्ण शब्दों का संग्रह हो जाता है।क्योंकि ये सारे शब्द पिता के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है और पिता जैसे महत्वपूर्ण शब्द को
सुपरिभाषित करतें है। हमारें बचपन के अच्छे और सच्चे संस्कार का संचार पिता के द्वारा ही दिया जाता है। पिता द्वारा ही हमें समाज की गरिमा को समझाकर सामजिक व्यक्ति की पहचान दिलाई जाती है।  संसार में किसी भी धर्म ,जाति, समुदाय या किसी भी वर्ग का मानव जीवन हो उसके लिए  पिता का महत्व सभी रिश्तों में श्रेष्ठ होता है। क्योंकि पिता के जीवन का एकमात्र उद्देश्य होता है ख़ुद के बच्चों की अच्छी परवरिश करके बच्चों के भविष्य का निमार्ण करना। पिता हमेशा से ही चाहता है की जितनी सफ़लता उसनें प्राप्त की है उससे 10 गुना ज़्यादा सफ़लता उसका पुत्र प्राप्त करें।बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए पिता हमेशा दिन दुगनी और रात चौगनी ईमानदारी से मेहनत करता है इसीलिए तो हमारें पुराणों और धर्मों में कहा गया है की पिता का कद आसमान से भी ऊँचा है और पिता का कंधा पर्वत से भी मजबूत होता है। हमारें धर्म में बताया गया है की जो पुत्र सुबह उठकर अपनें माता-पिता के पैरों को छूता है वह कभी भी भाग्यहीन नही हो सकता और जीवन में हमेशा सफ़लता अर्जित करता रहता है।  संपूर्ण संसार को चलाने की जिम्मेदारी है इसलिए ईश्वर परमपिता कहलातें है। ईश्वर हर क्षण विश्व के लिए चुनौती लाता है। पिता भी तो ऐसे ही कठोर नियम बनाकर बच्चों को श्रेष्ठ बनाता है। पिता हमेशा न्यायसंगत होतें है कुछ भी बच्चों को ऐसे ही नही सौंप देते। बल्कि उन्हें इस योग्य बनातें है की वह स्वयं के पैरों में खड़ा हो सके।

धर्मों में माता-पिता का महत्व

इस्लाम में भी माता-पिता की भूमिका को बताया गया है की माता पिता का आज्ञापालन और उनका आदर एवं सम्मान करना, स्वर्ग में प्रवेश करने का कारण है। हिन्दू धर्म के शुभ कार्य के पूर्व हम श्री गणेश जी की प्रार्थना

और पूजा करतें है क्योंकि सर्वप्रथम गणेश जी द्वारा ही माता-पिता स्वरूपी सृष्टि की परिक्रमा  करके स्वयं की श्रेष्ठता सिद्ध की तथा माता-पिता को समस्त ब्रम्हाण्ड में सर्वश्रेष्ठ बताया और मायारूपी संसार को माता-पिता के महत्व के विषय में बताया। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य के पूर्व हम श्री गणेश जी की वंदना करता हैं। महाभारत
के वनपर्व में यक्ष-युधिष्ठिर संवाद में भी माता व पिता के विषय में प्रश्नोत्तर हुए हैं जिसमें इन दोनों मूर्तिमान चेतन देवों के गौरव का वर्णन है। यक्ष युधिष्ठिर से प्रश्न करते हैं कि
 "कास्विद्गुरुतराभूमेःस्विदुच्चतरंचखात्।
 किंस्विच्छीघ्रतरंवायोःकिंस्विद्बहुतरंतृणात्।।"
अर्थात् पृथ्वी से भारी क्या है? आकाश से ऊंचा क्या है? वायु से भी तीव्र चलनें वाला क्या है? और तृणों से भी असंख्य (असीम-विस्तृत) एवं अनन्त क्या है?इसके उत्तर में युधिष्ठिर ने यक्ष से बताया की
"मातागुरुतराभूमेःपिताचोच्चतरंचखात्।
मनःशीघ्रतरंवाताच्चिन्ताबहुतरीतृणात्।।"
अर्थात् माता पृथ्वी से भारी है। पिता आकाश से भी ऊंचा है। मन वायु से भी अधिक तीव्रगामी है और चिन्ता तिनकों से भी अधिक विस्तृत एवं अनन्त है।महाभारत में पिता को आकाश से भी ऊंचा माना है,अथार्त् पिता के हृदय–आकाश में अपने पुत्र के लिए जो असीम प्यार होता है,वह अवर्णनीय है।

जिंदगी की हर एक बात ,आप हमें बताते हो
ख़ुद के जीवन के तज़ुर्बे ,आप हमें सिखाते हो।
सच्चाई और ईमानदारी का हमेशा पाठ पढ़ाते हो
पिता जी आप ही दुनियाँ में मेरें आदर्श कहलाते हो।।

हमेशा की तरह बीजेपी अथवा काँग्रेस सरकार नही है किसानों के साथ

किसान आन्दोलन में किसानों के साथ नही है सरकार

किसान आन्दोलन की आग भले ही कम पड़ गई हो लेकिन सरकार की मुश्किलें कम नही हुई है।मध्यप्रदेश किसान आन्दोलन सरकार के ख़िलाफ़ अत्याधिक वृहद आन्दोलन की उपज बनकर सामने खड़ा है।मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लेकर उज्जैन ,नीमच,मंदसौर तक किसान आन्दोलन भयानक ज्वालामुखी की तरह जल रही है।मौजूदा समस्या अनाज,दलहन,प्याज और सोयाबीन में उत्पादन अधिक होनें और बाज़ार में भाव न मिलनें से उपजा है।इस पूरे आंदोलन के दौरान दूधों के दाम बढ़ने पर किसानों द्वारा हज़ारो लीटरों में दूध सड़क पर बहाया गया तथा सब्जियों को भी सड़क में फेकां गया।किसान आन्दोलन किसानों के कर्जमाफी पे आधारित है जिसमें किसानों द्वारा राज्य सरकार के सामने कुछ शर्त रखीं गई है और कर्जमाफी की अपील भी की गई है।
6 जून को किसान आन्दोलन के दौरान किसानों के ख़िलाफ़ कार्यवाही करनें और पुलिस द्वारा गोलीबारी से 6 किसानों की मृत्यु हो गई जिससे किसानों में हिसां की आग बढ़ गई और किसान आन्दोलन का तूफ़ान चारों तरफ फ़ैल गया। किसानों के साथ-साथ मंडी व्यापारी भी सरकार से भड़क गए है जिससे मंडियों में ख़रीदी नही हो पा रही है।किसान आन्दोलन के दौरान अलग-अलग शहरों में 10 से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुकें हैं लेकिन फिर भी सरकार नींद से जगनें का नाम भी नही ले रही है और किसानों का साथ ना देकर ठीक विपरीत बयानबाज़ी की जा रही है जो किसानों के घाव में मरहम की बजाय जहर का काम कर रही है जैसे कृषि मंत्री गौरीशंकर बेसन का यह कहना की "किसान आत्महत्या कर रहे है तो हम क्या कर सकतें है?"जबकि मेरा मानना है की जो किसान आत्महत्या करनें पर मजबूर हुए हैं उनकी जिंदगी को एक दिन जी कर देखिये तब आपको पता चलेगा की हमारें अन्नदाता किसान का जीवन कितना संघर्ष से भरा हुआ होता है। जो किसान आत्महत्या किये है उनमें से एक किसान ज़मीन बेचकर कर्ज़ चुका रहा था।वह अपनें 15 एकड़ ज़मीन में 9 एकड़ ज़मीन बेचकर भी क़र्ज़ नही चुका पाया था और तकरीबन 5.5 लाख रूपये का ऋण बाँकी था। जब देश का हर नेता रात को चैन की गहरी नींद ले रहा होता था तब हमारें देश का यह किसान पूरी रात इस कारण से जगता था की हम अपना क़र्ज़ कैसे चुका पाएँगे?और एक दिन सुबह 4 बजे खेत जाकर पेड़ में लटकर आत्महत्या कर ली और ख़ुद को सुकून की नींद दे गया।
 जब हमारें देश में अन्नदाता को लेकर किसान आन्दोलन चल रहा था तब इस बात से अनजान भीलवाड़ा का एक किसान कपास की खेती कर रहा है और 150 फिट कुँए में पानी कम है फिर भी 2 बीघा जमीन में कपास के पौधे तैयार कर रहा है और बाल्टी में पानी लेकर लोटे से थोड़ा-थोड़ा पानी  पौधों को दे रहा है इस उम्मीद से की कुछ समय तक सिंचाई करके स्वयं उन्हें जीवित रख लेगा फिर मानसून आएगा तो अच्छी बढ़ावर होगी। तस्वीरें किसानों के वर्तमान हालात को बयाँ कर रहीं है।
दुर्भाग्य से भड़की हुई भावनाओं को शांत करनें की बजाय राजनीतिक दल ठीक इसके विपरीत चल रहें है और आग में घी डालनें का काम कर रहे है।और हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा की तरह ही पूरी घटना को देखकर केवल इस की सांत्वना दी है की गाँव,गरीब,किसान,मजदूर,महिला और युवा उनकी सरकार की शीर्ष प्राथमिकताएं है।
उपर्युक्त बयानों को सुनकर काँग्रेस द्वारा शिवराज सिंह चौहान से इस्तीफा माँगना काँग्रेस की दिवालिया सोच को दर्शाता है क्योंकि मध्यप्रदेश में ही आज से 19 वर्ष पूर्व 12 जनवरी 1998 को बैतूल ज़िले के मुलताई में दिग्विजय सिंह के शासन में किसान आंदोलन हुआ था और गोलीबारी में 24 किसान मारे गए थे। उस वक्त किसान संघर्ष मोर्चा के बैनर तले आन्दोलन हुआ था। किसान बाढ़ में हुई फसलों की बर्बादी के लिए 5000 रुपये प्रति हेक्टेयर मुआवजे की मांग कर रहे थे।उस वक्त काँग्रेस की सरकार थी और दिग्विजय सिंह ने इस्तीफ़ा नही दिया था।तब क्या काँग्रेस नें इस्तीफ़ा माँगा था?क्या सोनिया गाँधी वहाँ गई थी?इसीलिए काँग्रेस का शिवराज सिंह चौहान से इस्तीफ़ा माँगना काँग्रेस की दिवालिया सोच को दर्शाता है।

शिवराज सिंह चौहान का उपवास पहले से था "फिक्स"

किसानो को लेकर कई वादा करके लंबे-लंबे पुल बनाने वाली बीजेपी सरकार भी अन्य राजनीतिक पार्टियों की तरह किसान के साथ ढ़ोंग, दिखावा,छल कर रही है। गोलीबारी में किसानों और किसान के बेटों की हुई मौत के 10 दिन बाद शिवराज सिंह चौहान मृतकों के परिवार से मिलनें जातें है तथा किसानों से यह कहना की ज़ल्द ही आपके बैंक खाते में पैसे आएँगे शिवराज सिंह चौहान के तुच्छ राजनीति संज्ञा को प्रदर्शित करता है। हालांकि 9
जून शाम को शिवराज द्वारा अगलें दिन यानि 10 जून सुबह से भोपाल के दशहरा मैदान में किसानों के लिए उपवास रखनें के लिए कहना और 10 जून की सुबह मंदसौर से 305 किलोमीटर भोपाल की दूरी तय करके 6 मृतक परिवारों में से 4 मृतक परिवार का भोपाल पंहुचकर दशहरा मैदान के मंच में जाकर शिवराज सिंह का उपवास तोड़नें वाली बात हजम नही होती है।
इसी बात की हक़ीक़त को जाननें के लिये एबीपी न्यूज़ के सवांदाता जैनेन्द्र कुमार द्वारा मृतक किसानों के घर जाकर उनसे बात करना और उनकें परिवार द्वारा यह बताया जाना की" हमें बीजेपी नेता द्वारा भोपाल में मंत्री नरोत्तम मिश्रा के घर में ले जाया गया और कहा गया की दशहरा मैदान में मंच में जाकर शिवराज सिंह चौहान का उपवास तोड़ने के लिए कहना है और सभा में मीडिया के सामनें नौकरी,पैसे या मृतक किसान या मृतक बेटे की बात नही करना है।" इस तरह का कार्य बीजेपी द्वारा कराया जाना और उपवास पहलें से फिक्स करना, किसानो के साथ न्याय करना नही हुआ बल्कि किसानों के प्रति ढोंग और छल करना है तथा मृतक किसानों के साथ अन्याय करना है।हालांकि पूरी घटना से यह स्वच्छ दर्पण की तरह साफ़ हो गया है कि शिवराज सिंह चौहान द्वारा किसानों के लिए उपवास करना पहले से "फिक्स" था जोकि गन्दी राजनीति की परिभाषा हैं।



धांसू है रणबीर कपूर का एनिमल फिल्म में अवतार, बाप-बेटे की कहानी रोंगटे खड़े कर देगी

फिल्म एनिमल में रणबीर कपूर का अवतार धांसू है। यह 2023 की बड़ी फिल्मों में से एक साबित होगी। फिल्म का ट्रेलर काफी शानदार है और रणबीर कपूर का ...