Saturday, 16 December 2017

आखिर क्यों


विश्वास है आज का दिन आपको नही याद होगा
क्योंकि आपका खुद का हँसी परिवार होगा
कैसे हम तोड़,अपने उसूल गए
कैसे हम 16 दिसम्बर भूल गए
आज के दिन ही तो,उसने दम तोड़ा था।
बेवजह हैवानियत का शिकार होकर,घर छोड़ा था
आज से पाँच साल पहले की बात है
आँसू से निकल रहे,मेरे जज़्बात है
जब देश के पाँच शैतानो ने
माँ की कोख के बेइमानो ने
निर्भया के साथ किया था बलात्कार
मरणोपरांत हुआ उसका,अंतिम संस्कार
आज के दिन राजधानी हुई थी शर्मसार
झुक गई थी दिल्ली की सरकार
दामिनी के स्वर्ग जैसे घर का,उजड़ गया था सारा संसार
अपराधियों को सजा की,लगी थी गुहार
फिर भी आज क्यों नही है
लड़कियों को स्वतंत्रता का अधिकार
क्यों उनको घर में छुपना पड़ता है
क्यों उनको हैवानियत के सामने झुकना पड़ता है
क्यों बलात्कार के गलियारों में,घूम रहे दरिदों से
शिक्षा के आधे पथ पर,उनको रुकना पड़ता है
आखिर कब पहुंचेगी , निर्भया की चीख पुकार
आखिर कब टूटेगा,दरिंदों का अंहकार
"अच्छे दिन" के नारे ,देश में खूब लगे थे
तो फिर कब जागेगी अपनी,भारत सरकार?
                                               
                                                मेरा ज़िक्र
                                                ( शुभांक शुक्ला)

7 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर कविता । सच में आपकी लेखनी का तो कोई जवाब ही नही है । वाकई अब हम सबको ये सोचने की बहुत जरुरत है कि अभी कितनी निर्भया इस देश को और देखना बाकी है??

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  2. बहुत बढिया शुभांक जी

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    1. आपका ह्र्दयतल से आभार पांडेय जी🙏😊

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