Sunday, 5 November 2017

एक बार फिर मासूम बेटी के साथ-साथ सरकार और समाज का गैंगरेप


हमारे भारत देश में जंहा बेटीयों को देवी का दर्जा देकर पूजा जाता है और भारत को स्वर्णिम भारत बनाये जाने का सपना देखा जाता है वही दूसरी ओर 16 दिसम्बर 2012 में मासूम दामिनी के साथ गैंगरेप के साथ दरिंदगी की सारी हदे पार कर दी जाती है और भारत के इतिहास को काले अक्षरों में तब्दील कर जाता है। यही वारदात मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 31 अक्टूबर को बलात्कार के काले उदाहरण का काला दाग हमेशा के लिये अंकित हो जाता है। 19 वर्षीय छात्रा पीएससी की कोंचिग करने के बाद शाम 7 बजे घर लौट रही थी लेकिन घर पहुँचने से पहले ही  हैवानियत से लिप्त चार नशेड़ियों ने अपनी हवस का शिकार बना लिया और लड़की के साथ मारपीट कर उसे बेहाल कर दिया और 3 घंटे तक लगातार दुष्कर्म करते रहे। लड़की का मोबाइल, कान की बूंदे और घड़ी लूट ली। लड़की को मरा समझकर बेहोशी की हालत में छोड़कर आरोपी वंहा से भाग निकले। जब लड़की को होश आया तो आरपीएफ थाने पहुंची और अपने पिता को फोन कर पूरा वाकया बताया। इस सनसनीखेज में वारदात को लेकर न जीआरपी गंभीर नजर आई और न ही जिला पुलिस के अफसर। आपको पढ़कर हैरानी होगी की जिस जगह वारदात को अंजाम दिया गया वंहा से हबीबगंज सीआरपीएफ,जीआरपी थाना महज 100 मीटर और एमपी नगर की पुलिस चौकी 500 मीटर के दायरे में है। जब लड़की रिपोर्ट दर्ज करवाने mp नगर थाने पहुंची तो उसे हबीबगंज थाने का मामला बताकर भगा दिया गया। हबीबगंज पुलिस ने जीआरपी थाने में जाने की सलाह दी और लड़की जब अपने परिवार के साथ दूसरे पुलिस चौकी पहुंची और अपने साथ हुई वारदात को बता रही थी तब अंहकार के सिंहासन में बैठे कुछ पुलिस कर्मियों ने लड़की की बातों को फ़िल्मी बताकर उसे भगा दिया। कानून की इस गैरकानूनी काम को क्या समाज भुला पायेगा ये सवाल हमेशा के लिए खड़ा हो गया है? हालांकि जिन पुलिस अधिकारी द्वारा रिपोर्ट दर्ज नही की गई उन्हे सस्पेंड कर दिया गया है। लड़की के माता-पिता दोनों पुलिस सेवा में है फिर भी रिपोर्ट तब लिखी गई जब पिता ने वारदात के 24 घंटे बाद तीन आरोपी को पकड़कर थाने पहुंचा। अहम सवाल यह उठता है कि समाज में जब किसी व्यक्ति के साथ वारदात होगी तो क्या पहले उस पीड़ित व्यक्ति को आरोपी को पकड़कर लाना होगा तभी रिपोर्ट दर्ज करवाई जा सकेगी? पिता द्वारा आरोपियों को पकड़वाए जाने पर पता चलता है कि आरोपी रेलवे ट्रेक पर पन्नी,बोतल बीनने वाले है। इन आरोपी के नाम गोलू बिहारी,अमर, राजेश और रमेश है। फिल्मों में कहते है कि कानून अँधा होता है पर आजतक किसी ने नही बताया था कि कानून दिमाग से अँधा होता है। जी हाँ भोपाल पुलिस ने आरोपी राजेश की जगह इंदौर के बेगुनाह राजेश को पकड़ लेती है और उसे सवालो के घेरो में खड़ा कर देती है लेकिन इंदौर के निर्दोष राजेश को तब छोड़ा जाता है जब भोपाल में वारदात के समय निर्दोष राजेश इंदौर में रहता है और उसकी छवि की पुष्टि सीसीटीवी से होती है। कुछ घंटों बाद चौथा आरोपी भी पकड़ा जाता है और सभी आरोपियों में भीड़ के द्वारा आशंका के चलते उन्हें सेंट्रल जेल भेज दिया गया है। लेकिन भीड़ में अभी भी आक्रोश देखने को मिल रहा है। शनिवार को जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि हम मामले की जांच एसआईटी से करवा रहे हैं। किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। "मुख्यमंत्री ने हमेशा की तरह कहा, 'मैं इस घटना से बहुत दुखी हूं। रात भर सो नहीं पाया।"
पीड़िता और उसकी माँ द्वारा सरकार से न्याय में आरोपियों को फाँसी की सज़ा की मांग की जा रही है लेकिन क्या हमारे देश की बेटी और उसकी माँ को इंसाफ मिल पायेगा? क्या सरकार हर बार की तरह केवल सांत्वना ही देगी? क्या फिर कोई वक़ील पैसो की लालच के लिए आरोपियो के पक्ष में केस लड़ेगा और पीड़िता को इंसाफ के लिए कई वर्ष लग जायेंगे? 
इन्ही बोझिल सवालो के साथ पूरे देश को "शक्ति" के साथ हुए दुष्कर्म को न्याय मिलने का इंतजार है।
राजधानी की छात्राओं का है कहना-
जब राजधानी भोपाल में बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ और लाडली लक्ष्मी योजना की तरह कई योजनाओ का बेटियों को लाभ प्राप्त होता है। उसी राजधानी में अगर "शक्ति" जैसी बेटी के साथ दुष्कर्म की बात सामने आती है तो सरकार की सभी योजनाएं और कानून असफ़ल हो जाते है और सभी बेटियाँ असुरक्षित महसूस करने लगती है।  -- अक्षिका यादव

हाल ही में हुए सामूहिक बलात्कार ने ये साबित कर दिया है कि, चाहे कितने भी कानून बने , चाहे कितनी भी सभाएं हो, कैंडल मार्च हो किन्तु उससे कुछ भी नही होने वाला। लड़कियां कहीं से भी सुरक्षित नही है। उन्हें अपनी रक्षा खुद करनी होगी और बलात्कार जैसे घिनौने कार्य करने वाले पुरुषों को सीधा फांसी होनी चाहिए!  --  अनामिका पाण्डेय 

क्या करते हैं हम उन लड़कियों के लिए जिनके साथ ये सब होता हैं?हम किसी सड़क पर जाकर मोमबत्तियां जलाते हैं। हम उस लड़की की जिंदगी के उन दर्दनाक पलो को अखबार के पहले पन्ने पर जगह देते हैं।उसके घर जाकर बार बार इसके जख्मो को कुरेदते हैं और सालो साल कोर्ट में उसे बुला बुला कर इस घटना को उसकी पूरी जिंदगी का हिस्सा बना देते हैं। जब सरकार बेटियों को न्याय दिलाने में सक्षम नही है और ऐसे कानून और ऐसे कानून के रखवालो पर जिन्होंने  समाज की रक्षा का ठेका लिया है,अगर तुम लोगो को कुछ नही करना तो सारा हक जनता को सौंप दो और आराम करो तुम जैसे लोगो के जागने का भी कोई फायदा नही है, कुछ करना है तो समस्या से पहले करो किसी की जिंदगी बर्बाद होने के बाद नही।  --  शिवानी यादव

भोपाल मे जो सामूहिक बलात्कार की वारदात हुई हैं। इससे तो यही पता चलता हैं,की लड़कियाँ आज भी सुरक्षित नही हैं। अब ऐसा लगता हैं कि लडकियो को अपनी सुरक्षा खुद करनी होगी.हमारे देश में बलात्कारियों के लिए कानून में सिर्फ फाँसी की सजा होनी चाहिए।  --  प्रिया सिंह रघुवंशी   

   भोपाल में हुए सामूहिक बलात्कार की खबर दिल दहला देने वाली है। इससे हम यह आंकलन लगा सकते है कि ना हम लड़कियाँ इस देश के किसी गाँव में सुरक्षित है और न ही भोपाल जैसे विकसित राजधानी में। मैं यही कहूँगी कि भविष्य में हमारे देश के किसी बेटी के साथ दुष्कर्म ना हो इसके लिए इन हैवानो को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिये।    --  सोनाली सिंह

शक्ति ने आखिरी तक हार नही मानी और चार दरिंदों के साथ संघर्ष करती रही। जी हाँ "शक्ति" देश की जनता ने उस छात्रा को काल्पनिक नाम दिया है। जो 31 अक्टूबर की शाम हबीबगंज स्टेशन के पास चार दरिंदों का शिकार हुई और उसके साथ हैवानियत की तमाम हदों को पार करते हुए ,छह बार ज्यादती की गई। लेकिन इन तीन घंटो में शक्ति ने ख़ुद का नियंत्रण खोये बिना हौसला बनाये रखा।और खुद पुलिस स्टेशन पहुंचकर चारो दरिंदो के नाम और कपड़ो का कलर हुबहु बताया और बाद में आरोपी को ख़ुद की पकड़कर पुलिस के हवाले भी किया। शक्ति की पूरी कहानी एक मिसाल है,जिसमे एक बहादुर बेटी की निर्भयता,जीवटता,संघर्ष और विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत न हारने का सबक मिलता है। पूरा देश "शक्ति" के इस हौसले का सम्मान करता है। 

2 comments:

  1. देखिये जनाब, हमारी सरकार और शासन के पास रेप से ज़्यादा गंभीर मुद्दे हैं, जिनपर वह कर्मठता से कार्य कर रही है। कहाँ आप रेप जैसे छोटे मोटे मुद्दों पर बहस कर रहे हैं। अभी हमें धर्म के नाम पर लड़ना है, हिन्दू और मुसलमानों को अलग करना है, घोटाले करने हैं, गन्दी राजनीति से अपने हाथ मैले करने हैं, कश्मीर की लड़ाई लड़नी है, दूसरों पर दोषारोपण करना है। ये सारे मामले क्या आपको नहीं लगता एक लड़की के साथ हुए दुष्कर्म से ज़्यादा ज़रूरी हैं? उसके साथ जो हुआ वह तो होना ही था। क्या ज़रूरत थी उसे शाम के छह बजे घर से बाहर निकलने की? उसने जीन्स पहनी हुई थी, चेहरा दुप्पटे से ढंका था पर हाथ तो दिख ही रहे थे ना जनाब। आईएएस बनने का सपना ही क्यों देखा उसने? चार दीवार के भीतर होती तो सुरक्षित होती।
    दरअसल हमारा समाज संकीर्ण मानसिकता का समाज है। यदि एक एफआईआर दर्ज करने में 24 घंटों से ज़्यादा लग गए तो शायद कोई फैसला आने में शायद 24 साल लग जाएँ।

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  2. शुभी आपका गुस्सा जायज़ है, और आपके मन की पीड़ा मैं समझ सकता हूँ। और मेरे साथ-साथ सभी को समझ में आ रहा है कि देश में जो महत्वपूर्ण मुद्दा होता है उसे हमेशा ही दबा दिया जाता है और जिन मुद्दों से देश में असहिष्णुता बढ़ती है,धर्मो में विभाजन होता है ऐसे मुद्दों को ही देश में फ़ैलाया जा रहा है। लेकिन ये बदलाव तभी होगा जब नेता हमारे पास वोट मांगने आते है तो हमे वोट के बदले वादे नही चाहिए बल्कि महिला सुरक्षा के लिए स्टाम्प में हस्ताक्षर चाहिये ताकि कल के दिन कोई भी घटना हो तो नेता से हम तुरन्त इस्तीफा ले सके और दोबारा कभी भी चुनाव में लड़ने का उसे मौका ना दे तभी देश का मौहोल बदलेगा। इसकी शुरुआत हमे और आपको आज से ही करनी होगी.

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