Wednesday, 15 November 2017

फ़ोटोग्राफी वाला प्यार : शुभांक शुक्ला

जंहा हम पहली बार मिले थे,क्या तुम आज शाम उस जगह पर आ सकते हो? मेरे मोबाइल ऑन करतें ही प्रिया का मैसेज पड़ा था। मेरे मन में ख़ुशी के साथ-साथ हैरानी ने भी दस्तक दे दी थी. आख़िर 8 महीनों बाद प्रिया ने मुझे क्यों मैसेज किया और मिलने के लिए बुला रही है।  प्रिया ठीक तो है ना? क्या कोई बड़ी प्रॉब्लम हो गई है? मन में लिए इन्ही बोझिल सवालों के साथ माथे में शिकन लिए मैंने उसे मैसेज किया और उससे मिलने के लिए हाँ कर दिया। जैसे ही मैं घर से निकल रहा था कि अचानक कोनें में पड़ी मेरी "यादों की डायरी"  दिखाई दी,जिसे मैं सपनों के शहर बनारस में, मन की बातों को,जीवन की यादों को लिखा करता था. मैनें जाने से पहले उस डायरी को उठाकर कवर का पहला पेज ही पलटाया था कि उसमें एक बोलती हुई हँसती सी तस्वीर लगी थी,जिसमें एक लड़की भूखे ग़रीब बच्चों को खाना खिलाते हुए उन्हें भारत का तिरंगा दे रही थी तभी मैंने तस्वीर खींच ली थी,उस तस्वीर में कोई और लड़की नही बल्कि प्रिया थी। पहली नज़र में ही मुझे एकतरफ़ा प्यार हो गया था,वो उसी वक़्त मेरी जिंदगी बन गई थी। ये वही तस्वीर थी जब 15 अगस्त के दिन नेशनल फोटोग्राफी प्रतियोगिता में अपनी बेस्ट फ़ोटो देना चाहता था। और मुझे अच्छी तस्वीर ही नही बल्कि जिंदगी जीने का नया मकसद मिल गया था। मैंने कैमरें में उस तस्वीर को कैद के साथ दिल के कैमरे में भी उसकी तस्वीर क़ैद कर ली थी। पहली नज़र में उसकी खूबसूरती ने मुझ पर जादू कर दिया था। मन को प्रिया की शरारती आँखों ने चुरा लिया था। उसकी सादगी,मुझे दीवाना कर गई थी।
और दूर से आ रही हल्की-हल्की मध्यम आवाज़ का नशा मुझ पर चढ़ गया था। मै उससे बात करना चाहता था,पर शायद मुझमे हिम्मत नही थी,उससे जाकर बात करने के लिए इसीलिए उसकी इन्ही यादों और अदाओं को लिए मैं घर लौट आया। दूसरे दिन उस तस्वीर को प्रतियोगिता के लिए भेज दिया। मुझे यकीन था कि मेरी खींची हुई तस्वीर बेस्ट फ़ोटो ऑफ़ द ईयर का अवार्ड जरूर पायेगी क्योंकि कहते है "दिल से किया गया काम" और "दिल के लिये किया गया काम" हमेशा ही अच्छा होता है। और ठीक वही हुआ जिसका मुझे यकीन था, मुझे मेल आया और पता चला की इस बार का अवॉर्ड मुझे मिला है। मेरे मन में ख़ुशी तो हुई लेकिन साथ-साथ उससे मिलकर उसे शुक्रिया कहने का भी मन कर रहा था। और मैं कई टीवी चैनलों में इंटरव्यू देकर,सीधे उसी जगह गया जंहा मैंने फोटो खींची थी ,जब मै वंहा गया तो मुझे पता चला कि प्रिया एक NGO में काम करती है और उसका नाम प्रिया है,मेरा प्यार कई गुना तब बढ़ गया है जब लोगों ने बताया कि प्रिया हमेशा सब ग़रीबो की मदद करती है। सभी बच्चो की देखभाल करती है और उन्हे कभी-कभी पढ़ाती भी है। मैंने लोगों से उसका एड्रेस लेकर उससे मिलने चला गया। रास्ते में जाते वक़्त मेरे मन में कई सवालों का घेरा बन गया जो मुझे कमज़ोर कर रहा था,क्योंकि मुझे पता नही था कि मैं प्रिया से मिलकर उसे क्या कहूंगा,उससे क्या बातें करूँगा? उसकी तस्वीर को बिन पूँछे मैे प्रतियोगिता में भेज दिया था इस बात से कंही वो नाराज़ तो नही होगी? सवाल कई थे ,लेकिन दिल जवाब ढूंढ नही पा रहा था.कुछ सोच नही पा रहा था। चंद घंटों में ही मैं उसकी ऑफिस पहुँच गया था। लेकिन ऑफ़िस के बाहर कई घंटों खड़ा रहा। दिल कहता की जाकर उससे मिलूँ ...लेकिन दिमाग,जिसका प्यार से दूर-दूर का संबंध नही है वो कहता कि वापस लौट जाओ,मत मिलो....ऐसा कई बार होता है जब हम दिल और दिमाग़ की गलियों में भटकते रहते है,लेकिन रास्ता नही मिलता। लेकिन आज मैं दिल की आवाज़ सुनना चाहता था,प्रिया का प्यार पाना चाहता था। इसीलिये बिना देर किए मैं प्रिया की ऑफिस के अंदर चला गया,और देखते ही मैं चौक गया..अंदर कई लोग प्रिया को घेरे खड़े हुए थे और प्रिया केक काट रही थी..सभी लोग उसे जन्मदिन की बधाइयाँ दे रहे थे। मैं भी उसकी जिंदगी में सभी लोगो की तरह शामिल होना चाहता था,लेकिन उसकी जिंदगी में कुछ स्पेशल बनकर। इसी चाहत के साथ मैं उसके पास गया और हाथ बढ़ाकर "हैप्पी बर्थडे प्रिया" इस तरह बोला जैसे मै प्यार का इज़हार कर रहा हूँ। उसने थैंक्स बोला और मुझसे कहा 'माफ़ कीजिये ,मैं आपको पहचान नही पाई..आप कौन? मैं इस सवाल का कुछ जवाब दे पाता,इससे पहले ही पीछे से एक जोर से आवाज़ आई कि "प्रिया जल्दी आओ,हॉल में...प्रिया को मैं कुछ कह पाता,इससे पहले ही प्रिया जाने लगी और मैं उसके पींछे जाने लगा..अंदर जाने पर मैंने देखा कि ऑफिस के सभी लोग,टीवी देख रहे है और उसमें प्रिया की वही फोटो दिखाई जा रही है जो मैंने खींची थी और
मेरा इंटरव्यू चल रहा था...मैं अपनी बेताब भरी नजरों से प्रिया को देखने लगा और प्रिया पूरी तरह से "सरप्राइस" थी कि आखिर हो क्या रहा और कुछ पल टीवी की चमचमाहट में नजरे टिकाकर मेरी तरफ देखने लगी.और मेरी तरफ छोटे-छोटे कदमो को बढ़ाते हुए आने लगी..इन्ही कुछ सेकंडों में मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी जिंदगी मेरे पास आ रही है..जैसे मेरा प्यार मुझे हाथ बढ़ाकर जिंदगी जीने के लिए कह रहा हो..पास आकर उसने ख़ुशी और प्यार के साथ मुझसे कहा कि "आज मेरा जन्मदिन है और कई तोहफे मिले है लेकिन आपने मुझे जो तोहफ़ा दिया है,इतना खूबसूरत तोहफा,मैं कभी नही भूलूँगी।" हाथ बढ़ाते हुए उसने थैंक यू" बोला.....मै उसकी आँखों में देखते हुए कहा कि मै आपसे दोस्ती करना चाहता हूँ, क्या आप मेरी दोस्त बनेगी.उसने एकदम से 'हाँ' कह दिया..और हम दोस्ती के नए रिश्तों का ताना-बाना बुनने लगे थे.हम रोज मिलने लगे थे,घूमने लगे थे..फिल्में  साथ-साथ देखने लगे थे,व्हाट्सएप पर बाते करने लगे और फेसबुक में साथ में आइसक्रीम खाते हुए,फोटो अपलोड करने लगे थे और बचपन की कई किस्सो को आपस में सुनाने लगे थे,जवानी की कहानियां बताने लगे थे। एक दिन प्रिया ने बताया कि तुम मुझे बहुत अच्छे लगने लगे हो,तूम्हारी बातो में खोने लगी हो,तुम्हारे साथ और घूमना चाहती हूँ,जिंदगी के सारे क़दम मैं तुम्हारे साथ चलना चाहती हूँ, तुम्हारे साथ सात फेरे लेकर, सात जन्मों के बंधन में ख़ुद को बाँधना चाहती हूँ। लेकिन......इतना कहकर प्रिया अचानक से शान्त हो गई। उसका चेहरा शाम को ढ़लते सूरज की तरह बुझ गया। मेरे दिल की धड़कन जोर से धड़कने लगी और कई सवाल मन में चलने लगे आखिर "लेकिन" के आगे प्रिया क्या बोलेगी? लेकिन शब्द जीवन में बहुत मायने रखता है। दो लोगों को मिलवा भी देता है और जुदा भी कर देता है। कुछ देर रुकने के बाद प्रिया ने कहा कि 'मेरे पापा ने मेरा रिश्ता कई साल पहले अपने दोस्त के बेटे के साथ कर दिया था और इस समय मेरे घर में उससे शादी की बाते चलने लगी है।" और फिर से शांत हो गई। "हाँ" सुनने की चाहत में मैंने प्रिया से कहा कि तो अब तुम्हारा क्या फ़ैसला है? प्रिया की आँखे नम थी,उसके होंठ कुछ कहने से पहले

‌थरथरा रहे थे। लेकिन उसने ना चाहते हुए भी अपने मन की बात रखी और बोली की जितना प्यार मैं तुमसे करने लगी हूँ, उससे भी ज्यादा प्यार मैं अपने मम्मी और पापा से करती हूँ। और पापा की बात को आखिर मैं कैसे मना कर दूँ? आखिर "लेकिन" जैसे हल्के शब्द ने हम दोनों के प्यार को जुदा कर दिया था। मेरे कुछ समझ में नही आ रहा था। मै उसकी मन की बात और उसके फैसले को समझ चुका था लेकिन मैं उसे अपने प्यार को एक और मौका देने के लिए मनाना नही चाहता हूँ। क्योंकि उसके मन में अपने परिवार के लिए ,देश के लिए जो प्यार था। उसी प्यार से तो मुझे प्यार हुआ था। तो आखिर मैं अपने प्यार को पाने के लिए उस प्यार को बदलने के लिए कैसे कह सकता हूँ जिस प्यार से मैं बेइंतहा प्यार करने लगा था। और उसके इस फैसले का ना चाहते हुए भी,मैंने अपना लिया था। और उसने जाने से पहले मुझे कभी ना मिलने का वादा किया था। तो आखिर आज इतने महीनों बाद उसने मैसेज करके मुझे क्यों बुलाया है? मै उस डायरी को साथ में लेकर और उसकी बातों में डूब करके उससे मिलने चला गया। और जहाँ हम पहली बार ना मिलकर भी मिले थे,उसी जगह पहुँच गया और देखा कि प्रिया कई गरीब बच्चो के साथ खेल रही थी और खेलते-खेलते उसकी नज़र मेरी तरफ़ पड़ी और मेरे पास आई। आते ही प्रिया,मुझे गले से लगा ली और रोने लगी। मैंने उसके सिर में हाथ फेरते हुए पूंछा की आखिर क्या हुआ? उसने अपने आप को संभालते हुए बोली कि अभी तक मेरे जिंदगी में तुम ही ऐसे दोस्त हो जो मुझे अच्छी तरह से समझते हो और मैं तुम्हे कभी नही भुला पाऊँगी लेकिन मेरे शादी कुछ ही दिनों में होने वाली है और जिससे मेरी शादी होने वाली है वो लड़का मुझसे कई दिनों से बात कर रहा था और अचानक उसने एक दिन फेसबुक में अपलोड मेरी और तुम्हारी तस्वीर का ज़िक्र करने लगा और मेरे बार-बार समझाने के बाद भी मुझसे झगड़ा कर लिया है.इसलिए प्लीज़ अभिषेक अपने फेसबुक से मेरी फोटो हटा दो और मेरी जिंदगी से दूर चले जाओ। अगर तुम्हारा नाम मेरी जिंदगी में बार-बार आता रहेगा तो मेरी जिंदगी मुश्किल हो जायेगी।
 मै उससे और कुछ कह पाता कि इससे पहले ही मै समझ चुका था कि वो पगली लड़की आज भी मुझसे प्यार करती है। लेकिन अपने मम्मी और पापा के लिए ख़ुद के प्यार को छोड़ रही है। दुःखी होते हुए भी मुझे ख़ुशी थी कि मुझे प्रिया जैसी लड़की प्यार करती है।मैं ख़ुद को हारकर भी उसे जीत चुका था। "जो मिल जाये केवल उसे प्यार नही कहते है बल्कि प्यार होकर भी ना मिले उसे भी प्यार कहते है। क्योंकि ईश्वर मिलते नही है लेकिन ईश्वर के लिए सभी के मन में प्यार सबसे ज्यादा पवित्र होता है।"


‌"मेरी हर बात में लिखा मेरा ज़िक्र है,तू दूर हुआ तो क्या हुआ,मेरी हर बात में तेरी फ़िक्र है!
                                                                                                                              "शुभांक शुक्ला"


Friday, 10 November 2017

जन्मदिन विशेष : श्री आशुतोष राणा

मध्यप्रदेश की पावन वसुंधरा में अनेक  वीर,योद्धा,कवि,साहित्यकार,नेता और अभिनेता ने जन्म लिया है। इन्ही सर्वश्रेष्ठ महापुरुषों में है अभिनेता आशुतोष राणा रामनारायण नीखरा उर्फ़ "आशुतोष राणा" का जन्म 10 नवंबर 1964 नरसिंह के गाडरवारा मध्यप्रदेश में हुआ था। आशुतोष जी का लालन-पोषण बचपन से ही सांस्कारिक परिवार में हुआ है। जिसके कारण आशुतोष जी ने भारत की संस्कृति को अपनाकर  व अध्यात्म को जीवन का आदर्श बनाया। पवित्र रामायण के श्रवण कुमार की तरह माता-पिता की सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बनाकर सन्मार्ग में चलते रहे और सफ़लता की अनन्त बुलंदियों को प्राप्त किया। इन्होंने गाडरवारा से ही शुरुआती बचपन की शिक्षा ग्रहण की। व बचपन की शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत सागर जिले के डॉ॰ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय से कॉलेज अध्ययन प्रारम्भ किया तथा इसी दौरान रामलीला नाट्य समारोह में रावण का क़िरदार निभाया,जिसे देश के हर कोने में सराहा गया। इन्होंने करियर की शुरुआत छोटे पर्दे से की थी और काफ़ी हिट शोज़ किये। आशुतोष जी का विवाह सन 2001 में अभिनेत्री "रेणुका शाहने" जी से हुआ है। इनके दो बेटे है-शौर्यमान और सत्येंद्र।
शास्त्रों में कहा गया है की मोह,माया रूपी जगत में जन्म लेने वाला व्यक्ति अगर धरती में ही अपना भगवान "गुरु" को बनाता है और गुरु ज्ञान की दिशा में अग्रसर रहता है तो पृथ्वी में उसका जन्म सार्थक होता है और उसे जीवनपथ में हमेशा सफलताएँ प्राप्त होती। शास्त्र के इसी बात का अनुसरण करते हुए आशुतोष जी ने परमपूज्यनीय पंडित देव प्रभाकर शास्त्री जी को अपना भगवान रूपी गुरु बनाया। आशुतोष जी ,गुरूजी को प्रेम से श्री दद्दा जी कहकर पुकारतें है।  दद्दा जी के आशीर्वाद व स्वयं की प्रतिभा की वज़ह से आशुतोष जी आज फिल्मों की रंगीन दुनिया के चमकते हुए सितारें है। और आशुतोष जी से जब भी सवाल किया जाता है कि " कँहा फ़िल्मी दुनिया की चमक-धमक व रंगीन जिंदगी और कँहा ईश्वर की भजन भक्ति..आखिर कैसे दोनों मंचों में ख़ुद को ढाल पाते है आप? तब आशुतोष जी इस बारे में स्वयं के विचार को प्रस्तुत करतें है और कहते है कि " मैं अपने गुरु के कहने पर ही फ़िल्म जगत में आया था और अबतक 32 से अधिक फिल्में तथा अनेक टीवी धारावाहिकों में काम कर चुका हूं। आशुतोष राणा जी कहते है कि वे मध्यप्रदेश के रहने वाले सामान्य से छात्र थे और एलएलबी की पढ़ाई के बाद वक़ालत में अपना करियर बनाने की सोच रहे थे,लेकिन उनके गुरु दद्दा जी का आदेश हुआ की मैं फिल्मों में जाऊँ और इसके लिए मैं एनएसडी से अभिनय प्रशिक्षण लूँ।' आशुतोष जी कहते है कि प्रशिक्षण के बाद उन्हें एनएसडी में ही नौकरी का ऑफ़र हुआ और वह भी मोटी सैलरी पर,लेकिन उन्होंने फ़िल्म जगत में आने का रास्ता चुना। वे कहते है कि वे चाहे शूटिंग में कितने ही व्यस्त क्यों ना हो लेकिन हर सुबह और शाम श्री दद्दा जी से आशीर्वाद अवश्य लेतें है।आशुतोष जी के जीवन का गुरुर उनके गुरु है। आशुतोष जी स्वयं के जीवन रोचक किस्सा हमेशा सुनाते है और कहते है कि " मुझे फिल्म निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट से मिलने को कहा गया। मैं भट्ट से मिलने गया और जाकर भारतीय परंपरा के अनुसार उनके पाँव छू लिए। पांव छूते ही वे भड़क उठे क्योंकि उन्हें पैर छूने वालों से बहुत नफ़रत थी। उन्होंने मुझे अपने सेट से बहार निकलवा दिया तथा सहायक निर्देशकों पर भी काफ़ी गुस्सा हुए की आख़िर उन्होंने मुझे सेट के अंदर जाने कैसे दिया? आशुतोष जी के उच्च व्यक्तिव का अनुमान आप यंही से लगा सकतें है कि इतने अपमान के बाद भी उन्होंने हिम्मत नही हारी और जब भी महेश भट्ट जी से मिलते या कंही देखते तो तुरंत संस्कृति का मान रखते हुए उनके पैर छू लेते और वह
गरम होते। आशुतोष जी बताते है कि '" आखिर भट्ट जी  ने एक दिन मुझसे पूँछ ही लिया की तुम मेरे पैर क्यों छूते हो जबकि मुझे इससे नफ़रत है। मैंने जवाब दिया कि "बड़ो के पैर छूना मेरे संस्कार में है,जिसे मैं नही छोड़ सकता।" इस वाक्य को सुनकर भट्ट जी ने मुझे गले से लगा लिया और टीवी सीरियल स्वाभिमान में मुझे पहला रोल ऑफ़र किया। बाद में मैंने महेश भट्ट जी के साथ कई फ़िल्मो में काम किया। आशुतोष राणा जी ने हिंदी फिल्मों के अलावा तमिल,तेलुगु,मराठी और कन्नड़ फ़िल्मो में भी अपनी प्रतिभा की गहरी छाप छोड़ी है। इनकी प्रमुख फिल्में बंगारम,कलयुग,शबनम मौसी,चोट,जहर,अब के बरस,जानवर,दुश्मन,गुलाम,ज़ख्म इत्यादि है। इन्हें सन 1999 में फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार दुश्मन फ़िल्म में और सन 2000 में फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार फिल्म संघर्ष में श्रेष्ठ अभिनय के लिए प्राप्त हुआ। आजतक न्यूज़ चैनल के प्रोग्राम साहित्य आजतक में सोशल मीडिया में चले रहे क्रांतिकारी आंदोलन के विषय में आशुतोष जी ने करारा व्यंग प्रस्तुत किया और बताया कि कैसे समाज में अदृश्य क्रांतिकारी आंदोलन चलाये जा रहे है,जंहा हर दिन किसी ना किसी मुद्दे पर जुलूस और रैलियाँ निकाली जाती है और विभिन्न समूह के लोग इस आंदोलन में भाग लेते है। तथा बताया कि " देश चलता नहीं मचलता है ,मुद्दा हल नहीं होता सिर्फ़ उछलता है। जंग मैदान पे नहीं मीडिया पे जारी है ,आज तेरी तो..कल मेरी बारी है।" आशुतोष जी विगत चार वर्षों से सोशल मीडिया पर गहरी चेतना और चिंतन के साथ-साथ स्वयं के दिव्य विचारों और सार्थक आलेखों को स्वयं के प्रसंशको के साथ साझा करते है,तथा स्वयं की प्रतिक्रिया द्वारा लोगों के सवालों और समस्याओं का समाधान करतें है। आशुतोष जी साहित्य प्रेमी है व स्वयं की मातृभाषा की गरिमा को विश्वभर में बनाये हुए है।और स्वयं की मातृभाषा के लिए कहते है कि अगर आप भाषा का स्वरुप बिगाड़ेंगे तो भाषा आपका स्वरुप बिगाड़ देगी परन्तु अगर आप भाषा की गरिमा देंगे तो भाषा आपकी गरिमा देगी। आशुतोष जी का साहित्य लेखन,देश के हर उम्र व हर वर्ग को प्रभावित करती है।
आज का दिन हम सभी देशवासियों के लिए उत्साह और ख़ुशी का दिन है क्योंकि आज के दिन ही आशुतोष राणा के रूप में बेहतरीन अभिनेता,प्रवक्ता,विचारक और शालीन,उदार तथा विद्वान दिव्य पुरुष का जन्म हुआ था। आशुतोष जी आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं। ईश्वर से प्रार्थना है,      आप उस सूरज की तरह रहें जिसके पास पश्चिम हो ही नहीं. आपकी आभा हमेशा अमिट रहे. आप स्वस्थ और दीर्घायु रहें!!                                                        शुभम् भवतु🙏🙏🙏

Sunday, 5 November 2017

एक बार फिर मासूम बेटी के साथ-साथ सरकार और समाज का गैंगरेप


हमारे भारत देश में जंहा बेटीयों को देवी का दर्जा देकर पूजा जाता है और भारत को स्वर्णिम भारत बनाये जाने का सपना देखा जाता है वही दूसरी ओर 16 दिसम्बर 2012 में मासूम दामिनी के साथ गैंगरेप के साथ दरिंदगी की सारी हदे पार कर दी जाती है और भारत के इतिहास को काले अक्षरों में तब्दील कर जाता है। यही वारदात मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 31 अक्टूबर को बलात्कार के काले उदाहरण का काला दाग हमेशा के लिये अंकित हो जाता है। 19 वर्षीय छात्रा पीएससी की कोंचिग करने के बाद शाम 7 बजे घर लौट रही थी लेकिन घर पहुँचने से पहले ही  हैवानियत से लिप्त चार नशेड़ियों ने अपनी हवस का शिकार बना लिया और लड़की के साथ मारपीट कर उसे बेहाल कर दिया और 3 घंटे तक लगातार दुष्कर्म करते रहे। लड़की का मोबाइल, कान की बूंदे और घड़ी लूट ली। लड़की को मरा समझकर बेहोशी की हालत में छोड़कर आरोपी वंहा से भाग निकले। जब लड़की को होश आया तो आरपीएफ थाने पहुंची और अपने पिता को फोन कर पूरा वाकया बताया। इस सनसनीखेज में वारदात को लेकर न जीआरपी गंभीर नजर आई और न ही जिला पुलिस के अफसर। आपको पढ़कर हैरानी होगी की जिस जगह वारदात को अंजाम दिया गया वंहा से हबीबगंज सीआरपीएफ,जीआरपी थाना महज 100 मीटर और एमपी नगर की पुलिस चौकी 500 मीटर के दायरे में है। जब लड़की रिपोर्ट दर्ज करवाने mp नगर थाने पहुंची तो उसे हबीबगंज थाने का मामला बताकर भगा दिया गया। हबीबगंज पुलिस ने जीआरपी थाने में जाने की सलाह दी और लड़की जब अपने परिवार के साथ दूसरे पुलिस चौकी पहुंची और अपने साथ हुई वारदात को बता रही थी तब अंहकार के सिंहासन में बैठे कुछ पुलिस कर्मियों ने लड़की की बातों को फ़िल्मी बताकर उसे भगा दिया। कानून की इस गैरकानूनी काम को क्या समाज भुला पायेगा ये सवाल हमेशा के लिए खड़ा हो गया है? हालांकि जिन पुलिस अधिकारी द्वारा रिपोर्ट दर्ज नही की गई उन्हे सस्पेंड कर दिया गया है। लड़की के माता-पिता दोनों पुलिस सेवा में है फिर भी रिपोर्ट तब लिखी गई जब पिता ने वारदात के 24 घंटे बाद तीन आरोपी को पकड़कर थाने पहुंचा। अहम सवाल यह उठता है कि समाज में जब किसी व्यक्ति के साथ वारदात होगी तो क्या पहले उस पीड़ित व्यक्ति को आरोपी को पकड़कर लाना होगा तभी रिपोर्ट दर्ज करवाई जा सकेगी? पिता द्वारा आरोपियों को पकड़वाए जाने पर पता चलता है कि आरोपी रेलवे ट्रेक पर पन्नी,बोतल बीनने वाले है। इन आरोपी के नाम गोलू बिहारी,अमर, राजेश और रमेश है। फिल्मों में कहते है कि कानून अँधा होता है पर आजतक किसी ने नही बताया था कि कानून दिमाग से अँधा होता है। जी हाँ भोपाल पुलिस ने आरोपी राजेश की जगह इंदौर के बेगुनाह राजेश को पकड़ लेती है और उसे सवालो के घेरो में खड़ा कर देती है लेकिन इंदौर के निर्दोष राजेश को तब छोड़ा जाता है जब भोपाल में वारदात के समय निर्दोष राजेश इंदौर में रहता है और उसकी छवि की पुष्टि सीसीटीवी से होती है। कुछ घंटों बाद चौथा आरोपी भी पकड़ा जाता है और सभी आरोपियों में भीड़ के द्वारा आशंका के चलते उन्हें सेंट्रल जेल भेज दिया गया है। लेकिन भीड़ में अभी भी आक्रोश देखने को मिल रहा है। शनिवार को जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि हम मामले की जांच एसआईटी से करवा रहे हैं। किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। "मुख्यमंत्री ने हमेशा की तरह कहा, 'मैं इस घटना से बहुत दुखी हूं। रात भर सो नहीं पाया।"
पीड़िता और उसकी माँ द्वारा सरकार से न्याय में आरोपियों को फाँसी की सज़ा की मांग की जा रही है लेकिन क्या हमारे देश की बेटी और उसकी माँ को इंसाफ मिल पायेगा? क्या सरकार हर बार की तरह केवल सांत्वना ही देगी? क्या फिर कोई वक़ील पैसो की लालच के लिए आरोपियो के पक्ष में केस लड़ेगा और पीड़िता को इंसाफ के लिए कई वर्ष लग जायेंगे? 
इन्ही बोझिल सवालो के साथ पूरे देश को "शक्ति" के साथ हुए दुष्कर्म को न्याय मिलने का इंतजार है।
राजधानी की छात्राओं का है कहना-
जब राजधानी भोपाल में बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ और लाडली लक्ष्मी योजना की तरह कई योजनाओ का बेटियों को लाभ प्राप्त होता है। उसी राजधानी में अगर "शक्ति" जैसी बेटी के साथ दुष्कर्म की बात सामने आती है तो सरकार की सभी योजनाएं और कानून असफ़ल हो जाते है और सभी बेटियाँ असुरक्षित महसूस करने लगती है।  -- अक्षिका यादव

हाल ही में हुए सामूहिक बलात्कार ने ये साबित कर दिया है कि, चाहे कितने भी कानून बने , चाहे कितनी भी सभाएं हो, कैंडल मार्च हो किन्तु उससे कुछ भी नही होने वाला। लड़कियां कहीं से भी सुरक्षित नही है। उन्हें अपनी रक्षा खुद करनी होगी और बलात्कार जैसे घिनौने कार्य करने वाले पुरुषों को सीधा फांसी होनी चाहिए!  --  अनामिका पाण्डेय 

क्या करते हैं हम उन लड़कियों के लिए जिनके साथ ये सब होता हैं?हम किसी सड़क पर जाकर मोमबत्तियां जलाते हैं। हम उस लड़की की जिंदगी के उन दर्दनाक पलो को अखबार के पहले पन्ने पर जगह देते हैं।उसके घर जाकर बार बार इसके जख्मो को कुरेदते हैं और सालो साल कोर्ट में उसे बुला बुला कर इस घटना को उसकी पूरी जिंदगी का हिस्सा बना देते हैं। जब सरकार बेटियों को न्याय दिलाने में सक्षम नही है और ऐसे कानून और ऐसे कानून के रखवालो पर जिन्होंने  समाज की रक्षा का ठेका लिया है,अगर तुम लोगो को कुछ नही करना तो सारा हक जनता को सौंप दो और आराम करो तुम जैसे लोगो के जागने का भी कोई फायदा नही है, कुछ करना है तो समस्या से पहले करो किसी की जिंदगी बर्बाद होने के बाद नही।  --  शिवानी यादव

भोपाल मे जो सामूहिक बलात्कार की वारदात हुई हैं। इससे तो यही पता चलता हैं,की लड़कियाँ आज भी सुरक्षित नही हैं। अब ऐसा लगता हैं कि लडकियो को अपनी सुरक्षा खुद करनी होगी.हमारे देश में बलात्कारियों के लिए कानून में सिर्फ फाँसी की सजा होनी चाहिए।  --  प्रिया सिंह रघुवंशी   

   भोपाल में हुए सामूहिक बलात्कार की खबर दिल दहला देने वाली है। इससे हम यह आंकलन लगा सकते है कि ना हम लड़कियाँ इस देश के किसी गाँव में सुरक्षित है और न ही भोपाल जैसे विकसित राजधानी में। मैं यही कहूँगी कि भविष्य में हमारे देश के किसी बेटी के साथ दुष्कर्म ना हो इसके लिए इन हैवानो को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिये।    --  सोनाली सिंह

शक्ति ने आखिरी तक हार नही मानी और चार दरिंदों के साथ संघर्ष करती रही। जी हाँ "शक्ति" देश की जनता ने उस छात्रा को काल्पनिक नाम दिया है। जो 31 अक्टूबर की शाम हबीबगंज स्टेशन के पास चार दरिंदों का शिकार हुई और उसके साथ हैवानियत की तमाम हदों को पार करते हुए ,छह बार ज्यादती की गई। लेकिन इन तीन घंटो में शक्ति ने ख़ुद का नियंत्रण खोये बिना हौसला बनाये रखा।और खुद पुलिस स्टेशन पहुंचकर चारो दरिंदो के नाम और कपड़ो का कलर हुबहु बताया और बाद में आरोपी को ख़ुद की पकड़कर पुलिस के हवाले भी किया। शक्ति की पूरी कहानी एक मिसाल है,जिसमे एक बहादुर बेटी की निर्भयता,जीवटता,संघर्ष और विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत न हारने का सबक मिलता है। पूरा देश "शक्ति" के इस हौसले का सम्मान करता है। 

धांसू है रणबीर कपूर का एनिमल फिल्म में अवतार, बाप-बेटे की कहानी रोंगटे खड़े कर देगी

फिल्म एनिमल में रणबीर कपूर का अवतार धांसू है। यह 2023 की बड़ी फिल्मों में से एक साबित होगी। फिल्म का ट्रेलर काफी शानदार है और रणबीर कपूर का ...