जंहा हम पहली बार मिले थे,क्या तुम आज शाम उस जगह पर आ सकते हो? मेरे मोबाइल ऑन करतें ही प्रिया का मैसेज पड़ा था। मेरे मन में ख़ुशी के साथ-साथ हैरानी ने भी दस्तक दे दी थी. आख़िर 8 महीनों बाद प्रिया ने मुझे क्यों मैसेज किया और मिलने के लिए बुला रही है। प्रिया ठीक तो है ना? क्या कोई बड़ी प्रॉब्लम हो गई है? मन में लिए इन्ही बोझिल सवालों के साथ माथे में शिकन लिए मैंने उसे मैसेज किया और उससे मिलने के लिए हाँ कर दिया। जैसे ही मैं घर से निकल रहा था कि अचानक कोनें में पड़ी मेरी "यादों की डायरी" दिखाई दी,जिसे मैं सपनों के शहर बनारस में, मन की बातों को,जीवन की यादों को लिखा करता था. मैनें जाने से पहले उस डायरी को उठाकर कवर का पहला पेज ही पलटाया था कि उसमें एक बोलती हुई हँसती सी तस्वीर लगी थी,जिसमें एक लड़की भूखे ग़रीब बच्चों को खाना खिलाते हुए उन्हें भारत का तिरंगा दे रही थी तभी मैंने तस्वीर खींच ली थी,उस तस्वीर में कोई और लड़की नही बल्कि प्रिया थी। पहली नज़र में ही मुझे एकतरफ़ा प्यार हो गया था,वो उसी वक़्त मेरी जिंदगी बन गई थी। ये वही तस्वीर थी जब 15 अगस्त के दिन नेशनल फोटोग्राफी प्रतियोगिता में अपनी बेस्ट फ़ोटो देना चाहता था। और मुझे अच्छी तस्वीर ही नही बल्कि जिंदगी जीने का नया मकसद मिल गया था। मैंने कैमरें में उस तस्वीर को कैद के साथ दिल के कैमरे में भी उसकी तस्वीर क़ैद कर ली थी। पहली नज़र में उसकी खूबसूरती ने मुझ पर जादू कर दिया था। मन को प्रिया की शरारती आँखों ने चुरा लिया था। उसकी सादगी,मुझे दीवाना कर गई थी।
और दूर से आ रही हल्की-हल्की मध्यम आवाज़ का नशा मुझ पर चढ़ गया था। मै उससे बात करना चाहता था,पर शायद मुझमे हिम्मत नही थी,उससे जाकर बात करने के लिए इसीलिए उसकी इन्ही यादों और अदाओं को लिए मैं घर लौट आया। दूसरे दिन उस तस्वीर को प्रतियोगिता के लिए भेज दिया। मुझे यकीन था कि मेरी खींची हुई तस्वीर बेस्ट फ़ोटो ऑफ़ द ईयर का अवार्ड जरूर पायेगी क्योंकि कहते है "दिल से किया गया काम" और "दिल के लिये किया गया काम" हमेशा ही अच्छा होता है। और ठीक वही हुआ जिसका मुझे यकीन था, मुझे मेल आया और पता चला की इस बार का अवॉर्ड मुझे मिला है। मेरे मन में ख़ुशी तो हुई लेकिन साथ-साथ उससे मिलकर उसे शुक्रिया कहने का भी मन कर रहा था। और मैं कई टीवी चैनलों में इंटरव्यू देकर,सीधे उसी जगह गया जंहा मैंने फोटो खींची थी ,जब मै वंहा गया तो मुझे पता चला कि प्रिया एक NGO में काम करती है और उसका नाम प्रिया है,मेरा प्यार कई गुना तब बढ़ गया है जब लोगों ने बताया कि प्रिया हमेशा सब ग़रीबो की मदद करती है। सभी बच्चो की देखभाल करती है और उन्हे कभी-कभी पढ़ाती भी है। मैंने लोगों से उसका एड्रेस लेकर उससे मिलने चला गया। रास्ते में जाते वक़्त मेरे मन में कई सवालों का घेरा बन गया जो मुझे कमज़ोर कर रहा था,क्योंकि मुझे पता नही था कि मैं प्रिया से मिलकर उसे क्या कहूंगा,उससे क्या बातें करूँगा? उसकी तस्वीर को बिन पूँछे मैे प्रतियोगिता में भेज दिया था इस बात से कंही वो नाराज़ तो नही होगी? सवाल कई थे ,लेकिन दिल जवाब ढूंढ नही पा रहा था.कुछ सोच नही पा रहा था। चंद घंटों में ही मैं उसकी ऑफिस पहुँच गया था। लेकिन ऑफ़िस के बाहर कई घंटों खड़ा रहा। दिल कहता की जाकर उससे मिलूँ ...लेकिन दिमाग,जिसका प्यार से दूर-दूर का संबंध नही है वो कहता कि वापस लौट जाओ,मत मिलो....ऐसा कई बार होता है जब हम दिल और दिमाग़ की गलियों में भटकते रहते है,लेकिन रास्ता नही मिलता। लेकिन आज मैं दिल की आवाज़ सुनना चाहता था,प्रिया का प्यार पाना चाहता था। इसीलिये बिना देर किए मैं प्रिया की ऑफिस के अंदर चला गया,और देखते ही मैं चौक गया..अंदर कई लोग प्रिया को घेरे खड़े हुए थे और प्रिया केक काट रही थी..सभी लोग उसे जन्मदिन की बधाइयाँ दे रहे थे। मैं भी उसकी जिंदगी में सभी लोगो की तरह शामिल होना चाहता था,लेकिन उसकी जिंदगी में कुछ स्पेशल बनकर। इसी चाहत के साथ मैं उसके पास गया और हाथ बढ़ाकर "हैप्पी बर्थडे प्रिया" इस तरह बोला जैसे मै प्यार का इज़हार कर रहा हूँ। उसने थैंक्स बोला और मुझसे कहा 'माफ़ कीजिये ,मैं आपको पहचान नही पाई..आप कौन? मैं इस सवाल का कुछ जवाब दे पाता,इससे पहले ही पीछे से एक जोर से आवाज़ आई कि "प्रिया जल्दी आओ,हॉल में...प्रिया को मैं कुछ कह पाता,इससे पहले ही प्रिया जाने लगी और मैं उसके पींछे जाने लगा..अंदर जाने पर मैंने देखा कि ऑफिस के सभी लोग,टीवी देख रहे है और उसमें प्रिया की वही फोटो दिखाई जा रही है जो मैंने खींची थी और
मेरा इंटरव्यू चल रहा था...मैं अपनी बेताब भरी नजरों से प्रिया को देखने लगा और प्रिया पूरी तरह से "सरप्राइस" थी कि आखिर हो क्या रहा और कुछ पल टीवी की चमचमाहट में नजरे टिकाकर मेरी तरफ देखने लगी.और मेरी तरफ छोटे-छोटे कदमो को बढ़ाते हुए आने लगी..इन्ही कुछ सेकंडों में मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी जिंदगी मेरे पास आ रही है..जैसे मेरा प्यार मुझे हाथ बढ़ाकर जिंदगी जीने के लिए कह रहा हो..पास आकर उसने ख़ुशी और प्यार के साथ मुझसे कहा कि "आज मेरा जन्मदिन है और कई तोहफे मिले है लेकिन आपने मुझे जो तोहफ़ा दिया है,इतना खूबसूरत तोहफा,मैं कभी नही भूलूँगी।" हाथ बढ़ाते हुए उसने थैंक यू" बोला.....मै उसकी आँखों में देखते हुए कहा कि मै आपसे दोस्ती करना चाहता हूँ, क्या आप मेरी दोस्त बनेगी.उसने एकदम से 'हाँ' कह दिया..और हम दोस्ती के नए रिश्तों का ताना-बाना बुनने लगे थे.हम रोज मिलने लगे थे,घूमने लगे थे..फिल्में साथ-साथ देखने लगे थे,व्हाट्सएप पर बाते करने लगे और फेसबुक में साथ में आइसक्रीम खाते हुए,फोटो अपलोड करने लगे थे और बचपन की कई किस्सो को आपस में सुनाने लगे थे,जवानी की कहानियां बताने लगे थे। एक दिन प्रिया ने बताया कि तुम मुझे बहुत अच्छे लगने लगे हो,तूम्हारी बातो में खोने लगी हो,तुम्हारे साथ और घूमना चाहती हूँ,जिंदगी के सारे क़दम मैं तुम्हारे साथ चलना चाहती हूँ, तुम्हारे साथ सात फेरे लेकर, सात जन्मों के बंधन में ख़ुद को बाँधना चाहती हूँ। लेकिन......इतना कहकर प्रिया अचानक से शान्त हो गई। उसका चेहरा शाम को ढ़लते सूरज की तरह बुझ गया। मेरे दिल की धड़कन जोर से धड़कने लगी और कई सवाल मन में चलने लगे आखिर "लेकिन" के आगे प्रिया क्या बोलेगी? लेकिन शब्द जीवन में बहुत मायने रखता है। दो लोगों को मिलवा भी देता है और जुदा भी कर देता है। कुछ देर रुकने के बाद प्रिया ने कहा कि 'मेरे पापा ने मेरा रिश्ता कई साल पहले अपने दोस्त के बेटे के साथ कर दिया था और इस समय मेरे घर में उससे शादी की बाते चलने लगी है।" और फिर से शांत हो गई। "हाँ" सुनने की चाहत में मैंने प्रिया से कहा कि तो अब तुम्हारा क्या फ़ैसला है? प्रिया की आँखे नम थी,उसके होंठ कुछ कहने से पहले
थरथरा रहे थे। लेकिन उसने ना चाहते हुए भी अपने मन की बात रखी और बोली की जितना प्यार मैं तुमसे करने लगी हूँ, उससे भी ज्यादा प्यार मैं अपने मम्मी और पापा से करती हूँ। और पापा की बात को आखिर मैं कैसे मना कर दूँ? आखिर "लेकिन" जैसे हल्के शब्द ने हम दोनों के प्यार को जुदा कर दिया था। मेरे कुछ समझ में नही आ रहा था। मै उसकी मन की बात और उसके फैसले को समझ चुका था लेकिन मैं उसे अपने प्यार को एक और मौका देने के लिए मनाना नही चाहता हूँ। क्योंकि उसके मन में अपने परिवार के लिए ,देश के लिए जो प्यार था। उसी प्यार से तो मुझे प्यार हुआ था। तो आखिर मैं अपने प्यार को पाने के लिए उस प्यार को बदलने के लिए कैसे कह सकता हूँ जिस प्यार से मैं बेइंतहा प्यार करने लगा था। और उसके इस फैसले का ना चाहते हुए भी,मैंने अपना लिया था। और उसने जाने से पहले मुझे कभी ना मिलने का वादा किया था। तो आखिर आज इतने महीनों बाद उसने मैसेज करके मुझे क्यों बुलाया है? मै उस डायरी को साथ में लेकर और उसकी बातों में डूब करके उससे मिलने चला गया। और जहाँ हम पहली बार ना मिलकर भी मिले थे,उसी जगह पहुँच गया और देखा कि प्रिया कई गरीब बच्चो के साथ खेल रही थी और खेलते-खेलते उसकी नज़र मेरी तरफ़ पड़ी और मेरे पास आई। आते ही प्रिया,मुझे गले से लगा ली और रोने लगी। मैंने उसके सिर में हाथ फेरते हुए पूंछा की आखिर क्या हुआ? उसने अपने आप को संभालते हुए बोली कि अभी तक मेरे जिंदगी में तुम ही ऐसे दोस्त हो जो मुझे अच्छी तरह से समझते हो और मैं तुम्हे कभी नही भुला पाऊँगी लेकिन मेरे शादी कुछ ही दिनों में होने वाली है और जिससे मेरी शादी होने वाली है वो लड़का मुझसे कई दिनों से बात कर रहा था और अचानक उसने एक दिन फेसबुक में अपलोड मेरी और तुम्हारी तस्वीर का ज़िक्र करने लगा और मेरे बार-बार समझाने के बाद भी मुझसे झगड़ा कर लिया है.इसलिए प्लीज़ अभिषेक अपने फेसबुक से मेरी फोटो हटा दो और मेरी जिंदगी से दूर चले जाओ। अगर तुम्हारा नाम मेरी जिंदगी में बार-बार आता रहेगा तो मेरी जिंदगी मुश्किल हो जायेगी।
मै उससे और कुछ कह पाता कि इससे पहले ही मै समझ चुका था कि वो पगली लड़की आज भी मुझसे प्यार करती है। लेकिन अपने मम्मी और पापा के लिए ख़ुद के प्यार को छोड़ रही है। दुःखी होते हुए भी मुझे ख़ुशी थी कि मुझे प्रिया जैसी लड़की प्यार करती है।मैं ख़ुद को हारकर भी उसे जीत चुका था। "जो मिल जाये केवल उसे प्यार नही कहते है बल्कि प्यार होकर भी ना मिले उसे भी प्यार कहते है। क्योंकि ईश्वर मिलते नही है लेकिन ईश्वर के लिए सभी के मन में प्यार सबसे ज्यादा पवित्र होता है।"
मै उससे और कुछ कह पाता कि इससे पहले ही मै समझ चुका था कि वो पगली लड़की आज भी मुझसे प्यार करती है। लेकिन अपने मम्मी और पापा के लिए ख़ुद के प्यार को छोड़ रही है। दुःखी होते हुए भी मुझे ख़ुशी थी कि मुझे प्रिया जैसी लड़की प्यार करती है।मैं ख़ुद को हारकर भी उसे जीत चुका था। "जो मिल जाये केवल उसे प्यार नही कहते है बल्कि प्यार होकर भी ना मिले उसे भी प्यार कहते है। क्योंकि ईश्वर मिलते नही है लेकिन ईश्वर के लिए सभी के मन में प्यार सबसे ज्यादा पवित्र होता है।"
"मेरी हर बात में लिखा मेरा ज़िक्र है,तू दूर हुआ तो क्या हुआ,मेरी हर बात में तेरी फ़िक्र है!
"शुभांक शुक्ला"
"शुभांक शुक्ला"