कैंसर से भी बड़ी इश्क़ की बीमारी होती है जो जिंदगी को ना तो जीने देती है और ना चैन से मरने देती है..आप कई दफ़ा कोशिश करके भी इस बीमारी से दूर नहीं हो पाते हैं। दिन-रात बस उसी के ख्वाबों में डूबे रहते हैं। पलकें बंद करते ही उसका चेहरा आपके सामने आ जाता है। उसकी हर बातें आपके दिलो-ओ-दिमाग में दौड़ने लगती हैं। आप लाख कोशिश करके भी उसके ख्यालों के बिना एक पल के लिए नहीं सो पाते हैं। जब वो आपके अलावा किसी और को अपनी जिंदगी में ज्यादा इम्पॉर्टेन्स देती है तो आप हज़ार बार मरकर भी ख़ुद को जिंदा रखने की कोशिश करते हैं। आप कतरा-कतरा उसके प्यार को तरसते ही नहीं बल्कि कतरा-कतरा ख़ुद की जिंदगी में बिखरते भी जाते हैं। आप हज़ार दफ़ा ख़ुद के मासूम दिल को समझाते हैं कि वो सिर्फ़ आपकी है...... लेकिन उसके दूर जाने का डर आपकी जिंदगी का सबसे बड़ा दुश्मन बनकर बैठा होता है। आप उसके ज़िस्म को छूकर गुजरी हवा से भी बैर पालने लगते हैं। आप ख़ुद को कई बार मारकर भी उसकी खुशियों को पूरा करने की कोशिश करते हैं। आप उसके बिना कामयाबी पाकर भी ख़ुद को असफ़ल मानते हैं और हर वक्त गम के साये में जीते हैं लेकिन उसके साथ रहने पर आप ख़ुद को सबसे ज़्यादा क़ामयाब मानकर जिंदगी के हर पल को मोहब्बत में जीते हैं। आप रात को सोने से लेकर सुबह जागने तक बस उसी के लिए हर साँस लेते हैं। आप खुशियों के बाजार में ख़ुद की धड़कनों को नीलाम करके भी उसकी खुशियों को मांगते हैं। आप बस दिन-रात उसके ख्यालों में,उसकी बातों में व उसकी घायल कर देने वाली अदाओं में डूबे रहते हैं। आप उसके बिना जिंदगी में एक कदम चलने का ही नहीं बल्कि एकपल जीने की भी कल्पना नहीं करते हैं। शायद दुनिया में इसी को सच्चा प्यार कहते हैं। "भले ही इश्क़ की बीमारी ,कैंसर से भी ज़्यादा खतरनाक हो लेकिन आप इश्क़ के कैंसर में भी ईश्वर का रूप देखते हैं। शायद इसी लिए इश्क को भगवान का रूप कहा जाता है। " शायद इसी लिए दुनिया में सबसे ज्यादा अनमोल इश्क़ का एहसास होता है।
मेरा ज़िक्र
मेरा ज़िक्र
( शुभांक शुक्ला)