महाशिवरात्रि पर शिव के बोल....
आज महाशिवरात्रि का पर्व है। आज के दिन ही शिव-पार्वती के दांपत्य जीवन की शुरुआत हुई थी। हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार दुनिया का प्रथम प्रेम विवाह शिव-पार्वती का हुआ था,जिन्होंने आज के शुभ दिन ही एक-दूसरे के प्रेम को दांपत्य बन्धनों के सूत्र में बांध दिया था।
कुछ दिन पूर्व मेरे द्वारा " कलयुग बोल रहा..." नामक कविता लिखी गई थी जिसमे कलयुग का पाप, सत्य पर विजय पाने का प्रयास करता है। उसी कविता के दूसरे भाग में महाशिवरात्रि के शुभ-दिन मे शिव द्वारा स्वयं के सत्य का बखान किया जा रहा है।
आज महाशिवरात्रि का पर्व है। आज के दिन ही शिव-पार्वती के दांपत्य जीवन की शुरुआत हुई थी। हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार दुनिया का प्रथम प्रेम विवाह शिव-पार्वती का हुआ था,जिन्होंने आज के शुभ दिन ही एक-दूसरे के प्रेम को दांपत्य बन्धनों के सूत्र में बांध दिया था।
कुछ दिन पूर्व मेरे द्वारा " कलयुग बोल रहा..." नामक कविता लिखी गई थी जिसमे कलयुग का पाप, सत्य पर विजय पाने का प्रयास करता है। उसी कविता के दूसरे भाग में महाशिवरात्रि के शुभ-दिन मे शिव द्वारा स्वयं के सत्य का बखान किया जा रहा है।
पाप का सर्वनाश करके , पुण्य को बढ़ाता हूँ
इस धरा से दानव को ,वध करके मै भागता हूँ
है नही इस भूमी में ,जो कि मुझको ठग सके
सत्य के सच्चे भक्त को , हृदय से बुलाता हूँ
पुण्य को बढ़ाता हूँ , पुण्य को बढ़ाता हूँ
जो क्रोध मुझको दिलाता है,उसके लिए काल हूँ
जो प्रेम से बुलाता है , उसके लिए महाकाल हूँ
भस्म को लपेटकर , हर-जगह मैं व्याप्त हूँ
ॐ का मैं जापकर, ताँडव में बेमिसाल हूँ
मैं ही महाकाल हूँ, मैं ही महाकाल हूँ
सबके ह्रदय में बसता हूँ, कण-कण में सवार हूँ
नंदी मेरा है सारथी ,मैं उसका आधार हूँ
मिल जाता उसको मैं, जो ह्रदय से है ढूढ़ता
मुझसे ही ब्रम्हांड है, पूरे सृष्टि का मैं ही सार हूँ
कण-कण में मैं सवार हूँ, कण-कण में मैं सवार हूँ
शुभांक शुक्ला
(मेरा ज़िक्र)
इस धरा से दानव को ,वध करके मै भागता हूँ
है नही इस भूमी में ,जो कि मुझको ठग सके
सत्य के सच्चे भक्त को , हृदय से बुलाता हूँ
पुण्य को बढ़ाता हूँ , पुण्य को बढ़ाता हूँ
जो क्रोध मुझको दिलाता है,उसके लिए काल हूँ
जो प्रेम से बुलाता है , उसके लिए महाकाल हूँ
भस्म को लपेटकर , हर-जगह मैं व्याप्त हूँ
ॐ का मैं जापकर, ताँडव में बेमिसाल हूँ
मैं ही महाकाल हूँ, मैं ही महाकाल हूँ
सबके ह्रदय में बसता हूँ, कण-कण में सवार हूँ
नंदी मेरा है सारथी ,मैं उसका आधार हूँ
मिल जाता उसको मैं, जो ह्रदय से है ढूढ़ता
मुझसे ही ब्रम्हांड है, पूरे सृष्टि का मैं ही सार हूँ
कण-कण में मैं सवार हूँ, कण-कण में मैं सवार हूँ
शुभांक शुक्ला
(मेरा ज़िक्र)
Shaandar..👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद छोटे भाई😊
Delete😘😘😘😘
ReplyDelete🙏🙏🙏😊😊😊
Delete😃😃
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